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उत्तराखंड : राजस्व क्षेत्र में हत्या, रेप जैसे जघन्य अपराधों की नियमित पुलिस करेगी जांच

उत्तराखंड : राजस्व क्षेत्र में हत्या, रेप जैसे जघन्य अपराधों की नियमित पुलिस करेगी जांच
सीएन, देहरादून/नईदिल्ली।
उत्तराखंड के ऋषिकेश में अंकिता भंडारी केस से चर्चा में आए पुलिस-पटवारी प्रणाली को उत्तराखंड सरकार समाप्त करने के लिए तैयार हो गई है। अब हत्या, रेप जैसे जघन्य अपराधों की जांच नियमित पुलिस ही करेगी। सब केसों की फाइल तुरंत पुलिस को दी जाएगी। अन्य अपराधों को मामले भी चरणबद्ध तरीके से पुलिस के पास भेजे जाएंगे। उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैबिनेट बैठक का ब्योरा पेश किया और कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2018 के फैसले को लागू किया जाएगा। राज्य सरकार के इस बयान के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई समाप्त कर दी। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि चूंकि सरकार ने 12 अक्तूबर को हुई कैबिनेट बैठक का ब्योरा दिया है, इसमें वह हाईकोर्ट के फैसले को लागू करने को तैयार हो गई है। इसलिए अब मामले में दखल देने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और अन्य सभी याचिकाओं /अर्जियों का निपटारा कर दिया। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 2018 में राज्य सरकार को आदेश दिया था कि पर्वतीय क्षेत्रों में अपराधों की जांच का काम पटवारियों से कराने की परंपरा छह महीने में बंद की जाए। जांच औपचारिक रूप से पुलिस से करवाई जाए। इस आदेश के खिलाफ उत्तराखंड सरकार 2019 में सुप्रीम कोर्ट आ गई थी और यह मामला चार साल से यहां लबित था। इस बीच अंकिता भंडारी कांड हो गया और एक अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई जिसमें उत्तराखंड में पुलिस पटवारी प्रणाली खत्म करने की मांग की गई थी। अर्जी में कहा गया था कि अंकिता के परिजन शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस और पटवारी के बीच दौड़ते रहे थे। लेकिन समय से शिकायत नहीं ली गई जिसके कारण अंकिता की जान चली गई। इस अर्जी में देहरादून स्थित एक पत्रकार ने कहा है कि पूरे कांड के लिए पटवारी प्रणाली जिम्मेदार है। क्योंकि इस प्रणाली में शिकायतें दर्ज होने और फिर उस पर कार्रवाई होने में काफी समय लग जाता है। अंकिता के पिता अपनी शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास गए थे, लेकिन उनको पटवारी के पास शिकायत की संस्तुति के लिए भेज दिया गया। अंकिता के परिजन शिकायत दर्ज कराने को लेकर पुलिस और पटवारी के बीच दौड़ लगाते रहे। अर्जी में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य में सदियों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था प्रचलित है। कानूनगो, लेखपाल और पटवारी जैसे राजस्व अधिकारियों को अपराध दर्ज करने और जांच करने के लिए पुलिस अधिकारी की शक्ति और कार्य दिया गया है। उत्तराखंड राज्य को तीन क्षेत्रों में बांटा गया है, जिसमें तीन अलग कानून लागू होते हैं जो राजस्व अधिकारियों को गिरफ्तार करने और जांच करने आदि की पुलिस की शक्तियां देते हैं।
गांवों में गरीब के लिए पटवारी ही होता है बड़ा साहब
पटवारी प्रणाली की शुरूआत सर्वप्रथम शेर शाह सूरी के शासनकाल के दौरान हुई और बाद में अकबर ने इस प्रणाली को बढ़ावा दिया। ब्रितानी शासनकाल के दौरान इसमें मामूली परिवर्तन हुये लेकिन प्रणाली जारी रही। 1918 में सभी गाँवों में सरकार प्रतिनिधि के रूप में लेखापाल नियुक्त किये। राजा टोडरमल जो अकबर के दरबार में भू-अभिलेख का मन्त्री था, के द्वारा जमीन संबंधी कार्यो के सम्पादन के लिये पटवारी पद की स्थापना की गयी थी। पटवारी शासन एवम निजी भूमियों के कागजात को सन्धारित करता है। ब्रिटिश राज में इसे सुदृढ़ कर जारी रखा गया। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान में पटवारी शब्द प्रचलित है। गुजरात-महाराष्ट्र में 1918 तक इन्हें कुलकर्णी कहा जाता था, जिसे खत्म कर तलाटी कहा जाने लगा। तमिलनाडु में पटवारी को कर्णम या अधिकारी कहा जाता है। गांवों में गरीब किसान के लिए पटवारी ही बड़ा साहब होता है। पंजाब में पटवारी को ‘पिंड दी मां’ (गांव की मां) भी कहा जाता है। राजस्थान में पहले पटवारियों को ‘हाकिम साहब कहा जाता था। पटवारियों के बारे में कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा नहीं है। राजस्थान में लगभग 12000 पटवारी पद हैं, तो मध्य प्रदेश में 11,622, छत्तीसगढ़ में 3,500, उत्तर प्रदेश में पटवारी के पद को चौधरी चरण सिंह के जमाने में ही समाप्त कर दिया गया था और अब उन्हें लेखपाल कहा जाता है, जिनकी संख्या 27,333 है। उत्तराखंड में इन्हें राजस्व पुलिस कहा जाता है और राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यों के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही संभाल रहे हैं।

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