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संस्कृति

155 साल पुरानी अल्मोड़ा की बाल मिठाई के स्वाद का कोई सानी नहीं, दीवाने थे अंग्रेज

155 साल पुरानी अल्मोड़ा की बाल मिठाई के स्वाद का कोई सानी नहीं, दीवाने थे अंग्रेज
सीएन, अल्मोड़ा।
कुमाऊं और बाल मिठाई तो अब जैसे एक-दूसरे के पर्याय ही बन चुके हैं। आप कुमाऊं कहिये बाल मिठाई का जिक्र अपने आप ही आ जाता है या बाल मिठाई कहिये तो कुमाऊं अपने आप उससे जुड़ जाता है। कुमाऊं के अल्मोड़ा की बाल मिठाई के स्वाद का कोई सानी नहीं पर एक दबी बात यह भी है कि अल्मोड़े में सबसे स्वाद बाल मिठाई किसकी है इस सवाल पर एक छोटा-मोटा अल्मोड़ा युद्ध कभी भी देखने को मिल सकता है। कुमाऊं के आंतरिक हिस्सों में प्रवेश के लिये पहले अल्मोड़ा मार्ग का ही प्रयोग हुआ करता था। अल्मोड़ा के बाद लोग एक, दो या तीन दिन पैदल चलकर ही अपने घर पहुंच पाते थे। पहले पहाड़ी गांव से बाहर केवल कमाने को ही निकला करते सो जब अल्मोड़ा में मोटर से उतरते तो अपने-अपने घरों के लिये कुछ न कुछ खरीद ले जाते। घर लौटते हुए आने दो आने मीठे पर खर्च करना संभवतः अल्मोड़ा बाज़ार से ही शुरु हुआ हो। ऐसा माना जाता है कि बाल मिठाई से पहले संपन्न लोग गांव जाते हुये बाज़ार से मिसरी ले जाया करते। एक अनुमान के तहत इससे पहले मिठाई केवल स्थानीय मेलों में मिला करती थी। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि थल, बागेश्वर, जौलजीबी आदि के मेलों में मिठाई बेचने मथुरा तक से हलवाई आया करते. बाल मिठाई लम्बे समय तक खराब नहीं होती। यह माना जाता है कि शुद्ध पहाड़ी खोये की बाल मिठाई महीने भर तक खराब नहीं होती। शायद यह एक महत्वपूर्ण कारण रहा जिसकी वजह से बाल मिठाई ने हर पहाड़ी के झोले में अपनी जगह बनाई. कभी पहाड़ी के झोले में बसने वाली बाल मिठाई अब हर पहाड़ी के दिल में बसती है।  

155 साल पहले हुआ बाल मिठाई और सिंगौड़ी का आविष्कार
अल्मोड़ा से ही बाल मिठाई और सिंगौड़ी का आविष्कार हुआ था. 1865 में सबसे पहले साह परिवार ने लाला बाजार में मिठाई बनाकर बेचना शुरू किया. दीपावली में तो यहां के मिठाई की बात ही क्या. देश और दुनियां में अल्मोड़ा की मिठाई की मांग रहती है. अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक यहां की बाल मिठाई, सिंगौड़ी, चॉकलेट और खेचुआ ले जाते हैं. 1865 में लाला बाजार के साह परिवार ने मिठाई का आविष्कार किया. महात्मा गांधी ने भी 1929 में अल्मोड़ा आजादी आंदोलन में मिठाई का स्वाद लिया था. 24 नवम्बर को तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने हरीश लाल शाह को दिल्ली तीन मूर्ति भवन में बुलाकर मिठाई का स्वाद लिया. आज भी वही स्वरुप में मिठाई बिकती है.
संस्कृति की भी पहचान है अल्मोड़ा की बाल मिठाई
अल्मोड़ा की बाल मिठाई सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं जानी जाती। बल्कि यह अल्मोड़ा के समाज, संस्कृति की एक झलक भी दिखाती है। कहा जाता है कि 1865 के आस-पास लाला बाजार में सबसे पहले बाल मिठाई ईजाद हुई थी। इसका श्रेय जोगा साह को जाता है। अंग्रेजों को भी इसका स्वाद खूब भाता था। ब्रिटिश राज में गर्मियों में गोरे पहाड़ पर छुट्टी मनाने आते तो इसका स्वाद लेते थे। आजादी के बाद अल्मोड़ा की बाल मिठाई यहां के लोगों की पहचान बन गई। बाल मिठाई, दुकान में बेचे जाने वाले व्यापारी तक ही सीमित नहीं रह गई थी। बल्कि इससे आस-पास के गांवों के लोगों का रोजगार भी जुड़ा हुआ था। पशुपालक अधिक मात्रा में दुग्ध उत्पादन करने लगे। जिससे आस-पास की आर्थिकी को भी मजबूत करने का काम किया। तीन दशक पहले तक लोग पशुपालन की ओर बहुत अधिक ध्यान देते थे। लेकिन धीरे-धीरे वह सिमटने लगा। अल्मोड़ा पहुंचते ही आपको बाल मिठाई की महक आने लगेगी। मुख्यालय में ही करीब 100 से अधिक बाल मिठाई की दुकानें होंगी। उत्तराखंड में एक जिला एक उत्पाद में भी बाल मिठाई को ही जगह दी गई है

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