संस्कृति
बकरा-ईद की तैयारियां जोरों पर! अजमेर, राजस्थान से पहुंचे बकरे
बकरा-ईद की तैयारियां जोरों पर! अजमेर, राजस्थान से पहुंचे बकरे
सीएन, हल्द्वानी/नैनीताल। ईद-उल-अजहा (बकरीद) के लिए बकरों के बाजार सज चुके हैं। बकरीद पर मुस्लिम समाज के द्वारा बकरा, भैंस, दुमबा पर कुर्बानी की जाती हैं। शहर की लाइन नं 8 इन दिनों शाम से ही गुलजार नजर आ रही है और लोग कुर्बानी के लिए बकरों का चयन करने बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। मुस्लिम समुदाय के सबसे खास त्योहारों में से एक बकरा ईद आगामी 29 जून को है हर कोई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बकरे खरीद रहा है। इसके लिए शहर के लाइन नंबर 8 में बकरा मंडी लगने से अलग-अलग नस्लों के बकरे यहां पर बिकने के लिए पहुंच चुक हैं। अजमेर,राजस्थान और यूपी से तमाम पशुपालक यहां अपने बकरों को लेकर पहुंचे हैं, जबकि कुमाऊं भर के लोग यहा बकरा खरीदने पहुंच रहे हैं। बकरा ईद पर बकरों की बढ़ती मांग से बकरा पालकों के वारे भी न्यारे हो रहे हैं। आमतौर पर देखा जाए तो एक बकरा करीब 10 से 12 हजार में आ जाता है, लेकिन बकरा ईद त्यौहार पर इसकी कीमत इसके वजन और कद काठी के अनुरूप बढ़ जाती है। जिस पर बकरा पालकों की भी अच्छी कमाई हो जाती है। बकरा पालकों ने बताया कि एक बकरा-बकरी को तैयार करने के लिए लगभग 1 वर्ष लगता है। यहां आपको 12 हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे मिल जाएंगे। फिलहाल सुल्तान नामक बकरे की एक लाख की किमत लग चुकी है जबकि इससे नीचे करीब बीस से 50 हजार तक के बकरों की ज्यादा मांग है। ख्वाजा मस्जिद के इमाम मोहम्मद दानिश का कहना है कि रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद ईद-उल-अजहा मनाया जाता है। मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार इस दिन हलाल जानवर की कुर्बानी दी जाती है। इसके पीछे की कहानी यह है कि हज़रत इब्राहिम को अल्लाह ने आदेश दिया था कि वो अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुर्बान कर दें। हज़रत इब्राहिम अल्लाह का यह हुक्म माना और अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। हालांकि, जब हज़रत इब्राहिम कुर्बानी दे रहे थे तब बीच में बकरा आ गया और कुर्बान हो गया। इस वाकये के बाद इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है।
