संस्कृति
पहाड़ ठंडो पानी…. सुण कति मीठी वाणी… छोड़नि नि लागनी हो…
पहाड़ ठंडो पानी सुण कति मीठी वाणी छोड़नि नि लागनीहो…
सीएन, नैनीताल। पिछले दो दशक में कुमाऊं में होने वाली मंचीय प्रस्तुत में गाया जाने वाला एक है – पहाड़ ठंडो पानी. स्कूल कालेज के मंच हों या राजनीतिक सामजिक मंच इस गीत को अनेक कलाकार गा चुके हैं. इस गीत को लिखा था स्वं. भानुराम सुकोटी जी ने. पिथौरागढ़ के रहने वाले भानुराम सुकोटी जी के इस गीत को संभवतः पहली बार लोकगायिका स्व. कबूतरी देवी ने गाया था. लोकगायिका कबूतरी देवी ने अलग-अलग मंच से भानुराम सुकोटी का यह गीत खूब गाया. यहां प्रस्तुत की गयी यह रिकार्डिंग कबूतरी देवी के एक इन्टरव्यू का हिस्सा है. अपने जीवन पर बात-चीत करते हुए कबूतरी देवी यह गीत गाना नहीं भूलती. इस गीत के बोल कुछ इस तरह हैं–
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ में हिमालय
वा देवता रूनी
पहाड़ में हिमालय
वा देवता रूनी
देवी देव वास करनी देव भूमि कुनी..
देवी देव वास करनी देव भूमि कुनी..
देव भूमि छोड़ी बेर जाणि नि लागनी
छोड़नि नि लागनी
हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो… छोड़नि नि लागनी
कति बसी शम्भू नाथ
कति नंदा माई
कति बसी शम्भू नाथ
कति नंदा माई
कति बसी दुर्गा मैया,
कति महाकाली
कति बसी दुर्गा मैया,
कति महाकाली
देव भूमि छोड़ि बेर जाणि नि लागनी
देव भूमि छोड़ि बेर
जाणि नि लागनी…
छोड़नि नि लागनी
हो हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो हो… छोड़नि नि लागनी
चौमास को हरियो परियो
पानी की बौछार
चौमास को हरियो परियो
पानी की बौछार
आई रैछे ग्रीष्म ऋतु
फूलों की बहार
आई रैछे ग्रीष्म ऋतु
फूलों की बहार
जन्मभूमि छोड़ि बेर जाने नि लागनि
छोड़नि नि लागनी
हो हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो हो… छोड़नि नि लागनी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
पहाड़ ठंडो पानी
सुण कति मीठी वाणी
छोड़नि नि लागनी
हो हो… छोड़नि नि लागनी
काफल ट्री से साभार
