संस्कृति
अगस्त में छाछ-माखन की होली वाला उत्तराखंड का अनोखा त्यौहार
अगस्त में छाछ-माखन की होली वाला उत्तराखंड का अनोखा त्यौहार
सीएन, उत्तरकाशी। उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहाँ के निवासियों का और प्रकृति का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रकृति यहाँ के लोगो को एक आदर्श जीवनचर्या के लिए एक माँ की तरह सारी सुविधाएँ देती है। बदले में उत्तराखंड के निवासी समय समय पर प्रकृति की रक्षा और उसके सवर्धन से जुड़े पर्व एउत्सव मना कर प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना नहीं भूलते। प्रकृति माँ के प्रति आभार प्रकट करने का उत्सव है अंढूड़ी उत्सव या बटर फेस्टिवल। उत्तरकाशी में रैथल ग्रामवासी, मखमली बुग्याल दायरा में भाद्रपद की संक्रांति को अपने मवेशियों के ताजे दूध, दही, मठ्ठा और मक्खन प्रकृति को अर्पित करके उत्सव मनाते हैं। जिसे अंढूड़ी उत्सव या बटर फेस्टिवल कहते हैं। गर्मियां शुरू होते ही रैथल के ग्रामीण अपने अपने मवेशियों को लेकर दायरा बुग्याल पहुंच जाते हैं। दायरा बुग्याल समुद्रतल से 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। और यह बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला हुवा है। रैथल के ग्रामीण दायरा बुग्याल और गोई, चिलपाड़ा में बनी अपनी छानियों में ग्रीष्मकाल में निवास के लिए अपने मवेशियों को वहाँ पंहुचा देते हैं। बुग्यालों की मखमली और औषधीय घास और अनुकूलित वातावरण से मवेशियों का दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है। अगस्त अंतिम सप्ताह और सितम्बर से पहाड़ों में ठण्ड का आगमन हो जाता है। ठण्ड बढ़ने से पहले सभी गावंवासी अपने-अपने मवेशियों को वापस अपने घरों को लाने के लिए जाते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि लगभग 5 माह प्रकृति उनके पशुधन की रक्षा और पालन पोषण करती है। पशुधन को घर लाने से पहले वह प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इस उत्सव का आयोजन करते हैं। लोगो का मानना है कि प्रकृति के इस खूबसूरत बुग्याल के कारण उनके पशु गुणवत्ता युक्त दूध का उत्पादन कर रहे हैं। इसलिए उस गुणवत्ता युक्त उत्पादन का कुछ भाग प्रकृति को चढ़ा कर ए प्रकृति की गोद में खुशियां मनाकर प्रकृति और सर्वशक्तिमान ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए। बटर फेस्टिवल, अंढूड़ी उत्सव प्रतिवर्ष भाद्रपद की संक्रांति यानि 16-17 अगस्त को मनाया जाता है। पशुधन के घर आने की ख़ुशी में बटर फेस्टिवल अंढूड़ी उत्सव के दिन ग्रामीण अपने घरों को सजाते हैं। इसकी तैयारियां हफ़्तों पहले से शुरू हो जाती हैं। लोग अपने संबंधियों को आमंत्रित करते हैं। इस उत्सव के दिन लोग दूध दही, ढोल-दमाऊ आदि पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ दायरा बुग्याल पहुंच जाते हैं। वहां एक दूसरे पर दूध मट्ठा फेक कर और एक दूसरे को मक्खन लगाकर मक्खन की होली मनाई जाती है। महाराष्ट्र की जन्माष्टमी की तरह दही हांड़ी उत्सव का आयोजन भी किया जाता है। ब्रज की होली की तरह राधा .कृष्ण बने पात्र आपस में मक्खन की होली खेलते हैं। पारंपरिक पहनावे के साथ पारम्परिक लोक संगीत का आयोजन किया जाता है। पारम्परिक लोक गीत रासो का आयोजन भी किया जाता है। मट्ठे से भरी पिचकारियों से एक दूसरे को खूब भिगाते हैं। उत्तराखंड पर्यटन विभाग के त्योहारों में शामिल होने के बादए बटर फेस्टिवल अंढूड़ी उत्सव में कई प्रकार की विविधताएं देखने को मिल रही हैं। पहले यह त्यौहार गाय के गोबर को एक दूसरे पर फेंक कर मनाया जाता था। बाद में इसमें गोबर की जगह दूध मक्खन और छाछ का प्रयोग करने लगे। दूध दही माखन के प्रयोग से इसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी है। दायरा बुग्याल जाने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन व् हवाई अड्डा देहरादून है। देहरादून से सड़क मार्ग द्वारा उत्तरकाशी के रैथल गावं तक आसानी से टाटा सूमो या कार से पंहुचा जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन की बसें भी उपलब्ध हैं। रैथल गावं से दायरा बुग्याल 11 किलोमीटर दूर पड़ता है। रैथल से दायरा बुग्याल जाने के लिए पैदल ट्रैकिंग करनी पड़ती है। रैथल में ठहरने के लिए जीमविनि का पर्यटक आवास गृह के साथ गांव में एक दो होमस्टे भी उपलब्ध है। इसके अलावा बुग्यालों में टेंट लगा कर भी रह सकते हैं।