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आज है बैसाखी : मुख्य रूप से सिखों का पवित्र और कृषि से जुड़ा है पर्व

आज है बैसाखी : मुख्य रूप से सिखों का पवित्र और कृषि से जुड़ा है पर्व
सीएन, नईदिल्ली।
बैसाखी मुख्य रूप से सिखों का बेहद पवित्र और कृषि से जुड़ा पर्व है, जो पंजाब के अलावा हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के तमाम शहरों में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘नबा बर्शा’ अथवा ‘बंगाली नववर्ष’ के रूप में मनाया जाता है। कहीं इसे ‘वैशाखी’ तो कहीं ‘बसोआ’ पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तरी भारत में मनाया जाता है, जो वसंत फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस वर्ष बैसाखी 14 अप्रैल 2023, शुक्रवार को मनाई जाएगी। सिख धर्म की मान्यताओं के अनुसार 1699, बैसाख माह में सिखों के10 वें गुरू गुरू गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। पंजाब चूंकि कृषि प्रधान प्रदेश है, और इन दिनों रबी की फसल पककर आती है, तब क्या शहर क्या गांव सभी जगह इस दोहरी खुशी के कारण उत्सव जैसा माहौल रहता है। इस दिन गुरुद्वारों में रबी की फसल के सम्मान हेतु विशेष प्रार्थना आयोजित किया जाता है। लोगों को शरबत पिलाया जाता है और गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन होता है। इस दिन का सनातन धर्म में भी विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में गोचर करते हैं। इसलिए इस दिन को ‘सौर नववर्ष’ के रूप में मनाया जाता है। असम में इस दिन को ‘बिहु’, बंगाल में ‘पोइला’ और केरल में ‘विशु’ के नाम से यह पर्व मनाया जाता है। जिस तरह मकर संक्रांति का पर्व 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है, उसी तरह बैसाखी का त्यौहार 13 या 14 अप्रैल की किसी एक तिथि में मनाया जाता है। दरअसल इसी दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है, जिसे बैसाखी संक्रांति कहते हैं, इसी आधार पर बैसाखी पर्व की तिथि घोषित की जाती है। द्रिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष सूर्य का यह राशि परिवर्तन 14 अप्रैल 2023, शुक्रवार के दिन हो रहा है, इसलिए इस बार 14 अप्रैल को ही बैसाखी मनाई जाएगी। द्रिक पंचांग के अनुसार इस दिन दोपहर 03.12 बजे तक बैसाखी संक्रांति का शुभ मुहूर्त रहेगा। सिख समुदाय के लोग इस पर्व को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। इसी बैसाखी के दिन यानी 13 अप्रैल 1699 में सिख धर्म की स्थापना भी हुई थी। इस दिन गुरुद्वारों को एवं सिख परिवार अपने घरों को सजाते हैं, गुरुद्वारे में भजन-कीर्तन होते हैं। जगह-जगह शरबत एवं लंगर वितरित किये जाते हैं। ढोल-नगाड़ों पर लोग भांगड़ा करते हैं, एक दूसरे को नये वर्ष की बधाई देते हैं। घरों में पकवान बनाए जाते हैं। यूं तो यह पर्व पूरे भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बैसाखी का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व का एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है।
नई नवेली दुल्हन बैसाखी पर जरूर करें ये काम
बैसाखी के दिन नवविवाहिता को अपने हाथों पर मेंहदी जरूर लगाना चाहिए। मेहंदी सुहाग का प्रतीक होता है। पति की लंबी उम्र के लिए मेंहदी हाथों पर जरूर रचाएं। नवविवाहिता को इस दिन अनाज खास कर गेंहू जरूर दान करने चाहिए। इससे घर में अन्न धन का भंडार हमेशा रहेगा। कभी भी लक्ष्मी घर से दूर नहीं जाएगी। शादी के बाद पहली बैसाखी को महिलाओं को चने से बनी सत्तू और गुड़ दान करना चाहिए। पूरे उत्तर भारत में बैसाखी को सतुआनी कहते हैं। इस दिन सत्तू और गुड़ दान और खाने की अहमियत होती है। ज्योतिष में सत्तू का संबंध सूर्य, मंगल और गुरु से माना गया है। इसे दान करने से वैवाहिक जीवन पर अच्छा असर होता है। बैसाखी के दिन पति-पत्नी को गुरुद्वारे जरूर जाना चाहिए। दीप जलाकर नए वैवाहिक जीवन में खुशहाली की कामना करना चाहिए। बैसाखी के दिन नवविवाहित स्त्री को सुबह स्नान करके पीले मीठे चावल बनाने चाहिए और भगवान को भोग लगाने चाहिए। इससे ससुराल में पति समेत अन्य रिश्तों के साथ मिठास बनी रहती है। बैसाखी के दिन आटे का दीपक बनाए और उसमें दीया जलाएं। दीया में गेहूं के दाने डालकर ईशान कोण पर रखें। इससे घर में लक्ष्मी का वास रहेगा। खुशहाल मैरेड लाइफ होगी।

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