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उत्तराखंड में महिलाओं के आर्थिक अधिकार निश्चित करने वाली अनूठी परम्पराः ज्वाड़

उत्तराखंड में महिलाओं के आर्थिक अधिकार निश्चित करने वाली अनूठी परम्पराः ज्वाड़

सीएन, चमोली। गरीब और पिछले समझे जाने वाले ग्रामीण इलाकों में अनेक ऐसी परंपराएं हैं जो महिलाओं को आर्थिक अधिकार निश्चित करती हैं। महिलाओं के लिए निश्चित आर्थिक अधिकार की बात भले ही नई पीढ़ी के लोगों के लिए आश्चर्यजनक हो परंतु ग्रामीण समाज महिलाओं के आर्थिक अधिकारों का विशेष ख्याल रखता है। इस प्रकार के आर्थिक अधिकार सामान्यतः ग्रामीण समाज में बतौर परंपरा चलते हैं। उत्तराखंड के समाज के विषय में कहा जाता है कि यह एक समय मातृसत्तात्मक रहा है इस विषय में विद्वानों के मध्य मतांतर हैं। उत्तराखंड के ग्रामीण समाज में आज भी ऐसी अनेक परंपराएं देखने को मिलती हैं जिससे इस तथ्य की पुष्टि होती है की यह समाज कभी ना कभी मातृसत्तात्मक रहा होगा। मसलन गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जनपद में यमुना के तटवर्ती क्षेत्र जौनपुर की एक परंपरा को ही लिया जाए। इस क्षेत्र में एक परम्परा का नाम है ज्वाड़। ज्वाड़ का अर्थ है स्त्री धन। इस परंपरा के अनुसार विवाह के समय लड़की को स्त्री धन के रूप में जो नकद धनराशि प्राप्त होती है और माता.पिता के द्वारा उसकी व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में जो पशुधन जैसे गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी आदि दिए जाते हैं उसे ज्वाड़ कहा जाता है। इस तरह ज्वाड़ किसी महिला कि वह संपत्ति है जिसे वह अपने विवाह के दौरान अपने मायके वालों से प्राप्त करती है। इस संपत्ति पर ससुराल वालों का कोई भी अधिकार नहीं होता है। महिला चाहे तो अपने मायके में ही उसे रख सकती है या चाहे तो ससुराल में भी ले जा सकती है। इससे प्राप्त आय को व्यय करने का केवल महिला को ही अधिकार है। इस परंपरा के माध्यम से यह पता चलता है कि पहाड़ के समाज में परंपराओं के माध्यम से किस प्रकार महिलाओं के आर्थिक अधिकार निश्चित थे। इस परंपरा में यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के ज्वाड़ की पूंजी से धन उधार लेता है तो उसे उसको ब्याज सहित लौटना होता है। भले ही वह व्यक्ति महिला का पति ही क्यों ना हो। ज्वाड़ से प्राप्त पशुधन विशेष कर बकरी, मुर्गी आदि से होने वाली कमाई और उनके विक्रय का अधिकार भी केवल और केवल उस महिला का होता है जिसे वह प्राप्त होता है। इस परंपरा के कारण यमुना तट पर स्थित इस क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना होता है। ज्वाड़ उसकी व्यक्तिगत पूंजी है जिसका उपयोग वह अपनी इच्छा अनुसार कभी भी कर सकती है। काफल ट्री से साभार ग्रामीण समाज में बतौर परंपरा चलते हैं। उत्तराखंड के समाज के विषय में कहा जाता है कि यह एक समय मातृसत्तात्मक रहा है इस विषय में विद्वानों के मध्य मतांतर हैं। उत्तराखंड के ग्रामीण समाज में आज भी ऐसी अनेक परंपराएं देखने को मिलती हैं जिससे इस तथ्य की पुष्टि होती है की यह समाज कभी ना कभी मातृसत्तात्मक रहा होगा। मसलन गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जनपद में यमुना के तटवर्ती क्षेत्र जौनपुर की एक परंपरा को ही लिया जाए। इस क्षेत्र में एक परम्परा का नाम है ज्वाड़। ज्वाड़ का अर्थ है स्त्री धन। इस परंपरा के अनुसार विवाह के समय लड़की को स्त्री धन के रूप में जो नकद धनराशि प्राप्त होती है और माता.पिता के द्वारा उसकी व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में जो पशुधन जैसे गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी आदि दिए जाते हैं उसे ज्वाड़ कहा जाता है। इस तरह ज्वाड़ किसी महिला कि वह संपत्ति है जिसे वह अपने विवाह के दौरान अपने मायके वालों से प्राप्त करती है। इस संपत्ति पर ससुराल वालों का कोई भी अधिकार नहीं होता है। महिला चाहे तो अपने मायके में ही उसे रख सकती है या चाहे तो ससुराल में भी ले जा सकती है। इससे प्राप्त आय को व्यय करने का केवल महिला को ही अधिकार है। इस परंपरा के माध्यम से यह पता चलता है कि पहाड़ के समाज में परंपराओं के माध्यम से किस प्रकार महिलाओं के आर्थिक अधिकार निश्चित थे। इस परंपरा में यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के ज्वाड़ की पूंजी से धन उधार लेता है तो उसे उसको ब्याज सहित लौटना होता है। भले ही वह व्यक्ति महिला का पति ही क्यों ना हो। ज्वाड़ से प्राप्त पशुधन विशेष कर बकरी, मुर्गी आदि से होने वाली कमाई और उनके विक्रय का अधिकार भी केवल और केवल उस महिला का होता है जिसे वह प्राप्त होता है। इस परंपरा के कारण यमुना तट पर स्थित इस क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना होता है। ज्वाड़ उसकी व्यक्तिगत पूंजी है जिसका उपयोग वह अपनी इच्छा अनुसार कभी भी कर सकती है। काफल ट्री से साभार

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