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तुम्हारे नाम की हो रही है लूट हे राम!  तुम्हारे नाम को जप रहा है झूठ, हे राम!

तुम्हारे नाम की हो रही है लूट हे राम!  तुम्हारे नाम को जप रहा है झूठ, हे राम!
कृष्ण प्रताप सिंह, अयोध्या
। जब भी रामनवमी आती हैए अयोध्या में भगवान राम के नाम और उनसे जुड़े स्थलों की महिमा बताने और उसका गान करने वालों की बहार आ जाती है। लेकिन उनके नाम का जैसा महात्म्य अवध की एक पुरानी लोककथा में वर्णित किया गया है, अन्यत्र दुर्लभ है। इस लोककथा के अनुसार, राम का राज खत्म होने के बाद लोगों को नाना प्रकार के दैहिक-दैविक और भौतिक ताप सताने लगे तो एक संत अपनी सिद्धियों के सहारे उनके तारणहार बनकर सामने आए। जिस किसी को भी, कोई ताप या संताप सताता, निजात का कोई और उपाय काम न आने पर वह त्राहिमाम करता हुआ संत के पास आता और संत जहां तक संभव होता, उसकी पीड़ा हरते। इसको लेकर चल रही एक बतकही के दौरान एक दिन एक किसान आया जो अपने बैलों के खुर पक जाने से बहुत परेशान था। उसे बताया गया कि वह वह उन्हीं संत के दरबार में जाए और प्रार्थना करे। जब किसान वहां गया तो तो पाया कि वह तीर्थाटन पर गए हुए हैं और महीनों बाद लौटेंगे। किसान ने खाली हाथ लौटने के बजाय संत के शिष्य को जोहारने का फैसला किया। शिष्य के पास जाकर निवेदन किया और कहा कि राम ते अधिक राम कर दासा की परंपरा के अनुसार, वह उसके लिए अपने गुरु से भी बढ़कर हैं। इसलिए कोई उपाय बता दें। शिष्य ने दो भोजपत्रों पर पांच-पांच बार राम का नाम लिखा और कहा ये लो, जाओ, दोनों भोजपत्रों को साफ कपड़े में अलग-अलग गठियाकर दोनों बैलों के गले में बांध दो। भगवान राम ने चाहा तो जल्दी ही कीड़े तुम्हारे बैलों का पीछा छोड़ देंगे। घर लौटकर किसान ने वैसा ही किया और मनोवांछित फल पाया। इसलिए जुताई-बुआई खत्म करने के बाद कृतज्ञता ज्ञापित करने दोबारा संत के दरबार गया। वे तीर्थाटन से लौट आए थे और उससे यह जानकर बहुत प्रसन्न हुए कि अब उनका शिष्य भी लोगों के ताप और संताप हरने लगा है। उन्होंने किसान के सामने ही शिष्य को बुलाया और पूछा, तुमने इस किसान का संताप कैसे दूर किया। शिष्य ने सब कुछ बता दिया और वहीं खड़ा रहा। इस उम्मीद में कि संत उसे भरपूर शाबाशी देंगे। लेकिन संत ने कहा कि उसने शिष्यत्व की पात्रता खो दी है, फिर कड़ा प्रायश्चित करने की आज्ञा दे डाली। शिष्य ने उनकी आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य कर ली, लेकिन यह निवेदन किए बिना नहीं रह सका कि वह उसे उसका अपराध तो बता दें। संत ने कहा, ष्तुमने राम नाम का घोर दुरुपयोग किया है। सोचो जरा, जिस राम नाम की ऐसी महिमा है कि तुलसी रा के कहत ही निकसत पाप पहाड़, फिरि आवन पावत नहीं, देत मकार किवाड़, एक साधारण.से संताप से निजात दिलाने में तुम उसका उपयोग करने चले, तो तुम्हें उसकी महिमा में ऐसा संदेह हुआ कि भोजपत्र पर उसे एक बार लिखना पर्याप्त नहीं लगा और उसे पांच.पांच बार लिखा। फिर पूछा, तुमने इस तरह विवेक क्यों खो दिया कि राम नाम का ऐसा दुरुपयोग तुम्हें तनिक भी अनुचित नहीं लगा, ग्लानिग्रस्त शिष्य के पास कोई जवाब नहीं था, इसलिए चुप  रह गया। करता भी क्या।  अफसोस की बात है कि पिछले कई दशकों से कभी सत्ता पाने, तो कभी उसकी उम्र लंबी करने के लिए भगवान राम के नाम का घोर दुरुपयोग करते आ रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के लोग इस लोककथा से अभी भी, कतई  कुछ भी सीखने को तैयार नहीं हैं। इसके उलट वे उनके नाम पर रोज.ब.रोज कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं जो उनकी घट-घटवासी, दीनदयालु, निर्बलों के बल, आराध्य और आदर्श की विविधवर्णी और बहुआयामी छवियों को गंभीर से गंभीर आघात पहुंचाने की हिमाकत से कम नहीं है। निस्संदेह अपने स्वर्णकाल से गुजर रहे संघ परिवारिओं को लगता होगा कि उनकी यह हिमाकत एक दिन भगवान राम के सच्चे भक्तों, संतों और अनुयायियों के हृदयों में बसी, परंपरा से चली आती और हर किसी के लिए आश्वस्तिकारी छवियों को उनकी जगह से बेदखल करने में सफल हो जाएगी। लेकिन क्या वे वाकई अपना यह मंसूबा पूरा कर सकेंगे, ऐसा सिर्फ वही कह सकता है जो उनकी हिमाकत के पीछे छुपे उनके डर की शिनाख्त या पहचान न कर पा रहा हो। अन्यथा किसे नहीं मालूम कि भगवान राम के भक्तों, संतों और अनुयायियों के हृदयों में उनकी कोई भी छवि जबरदस्ती नहीं बसाई जा सकती। क्योंकि इन सहृदयों को उनकी ओर से इसकी अगाध छूट हासिल है कि वे उनमें से जिस भी छवि को चाहें, उसी के हो लें। अपनी भावनाओं के अनुसार अपने राम की कोई नई मूरत गढ़ लें, तो भी कोई हर्ज नहीं। इसीलिए भगवान राम किसी के लिए रघुपति राघव राजा राम हैं, तो किसी के लिए धनुर्धर, वल्कलवस्त्रधारी या वनवासी और किसी  के लिए पतितपावन। इतना ही नहीं वह किसी के पिउ हैं तो कोई उनकी बहुरिया। संत कबीर तो कभी एलानिया कहते हैं कि हरिमोर पिउ मैं राम की बहुरिया और कभी उनके हरि उनकी जननी हो जाते है. हरि जननी मैं बालक तोरा। दरअसल यह संत और आराध्या के बीच का मामला है, जिसमें किसी और को दखल देने का अधिकार नहीं। अयोध्या में तो एक ऐसा संप्रदाय भी है जो सखा और सखी भाव से राम की उपासना किया करता है। ईश्वर अल्ला तेरो नाम का उद्घोष करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात करें, तो उनके निकट वह पतित पावन भी हैं और सबको सन्मति प्रदान करने वाले भी। समाजवादी विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया अपने बहुचर्चित निबंध राम, कृष्ण और शिव में  शिव और कृष्ण के साथ राम को भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्नों में ऐसे ही शामिल नहीं करते। वह कहते हैं कि उनमें भारत की उदासी और रंगीन सपने एक साथ प्रतिबिंबित होते हैं। आज की भूमंडलीकृत दुनिया में सब कुछ अपनी मुट्ठी में करने की होड़ में फंसी पीढ़ी के लिए यह जानना दिलचस्प है कि भगवान राम का जीवन किसी का कुछ भी हड़पे बिना फलने की कहानी है। तभी तो अल्लामा इकबाल कहते हैं कि है राम के वजूद पै हिन्दोस्ताँ को नाज़, अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम-ए-हिन्द तो सुनना अच्छा लगता है, लेकिन इकबाल के सबसे प्यारे दोस्त पंडित ब्रज नारायण चकबस्त द्वारा रामायण का एक सीन नाम से रची गई लंबी नज्म में राम के मुंह से कहलवाई गई यह बात देश की सीमाओं और धर्म की संकीर्णताओं से परे उनकी घट.घट व्यापकता से कहीं ज्यादा न्याय करती है-कहते हैं जिसको धरम, वो दुनिया का है चराग। प्रसंगवश अंग्रेजों ने 11 फरवरी 1856 को अवध के नवाब वाजिद अली शाह को अपदस्थ कर गिरफ्तार और निर्वासित कर दिया तो उनके कुशलक्षेम के लिए भगवान राम से प्रार्थनाएं की गईं। इसके पीछे वह गंगा-जमुनी तहजीब थी, जिसे नवाबों ने अपने समय में लगातार सींचा। उनमें से कई स्वयं राम के उपासक थे और उन्होंने अयोध्या के अनेक मंदिरों को दान और जागीरें वगैरह देने में खासी दरियादिली दिखाई थी। ऐसे में कहना मुश्किल है कि संत कवियों ने भगवान राम को कितने रूपों और भावों में भजा है। सच कहें तो उनके सिलसिले में इन संतों ने भक्ति की सगुण और निर्गुण और राम और कृष्ण शाखाओं, साथ ही हिन्दू और मुसलमान का भेद पूरी तरह मिटा डाला है। गोस्वामी तुलसीदास की पंक्ति जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन्ह तैसी को सार्थक करते हुए। तभी तो भजु मन रामचरन सुखदाई का आह्वान करते हुए गोस्वामी जी बेहद आत्मविश्वास पूर्वक पूछते हैं कि दुनिया में ऐसा कौन.सा आरत यानी दीन और दुखी जन है, जिसके पुकार लगाने पर उसकी आरति प्रभु न हरी। अब उन विडंबनाओं का जिक्र जो हाल के दशकों में राम के नाम का रट्टा मारने वाले बहुरूपियों ने पैदा कर दी हैं। वरिष्ठ कवि रामकुमार कृषक उनकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं तुम्हारे नाम की हो रही है लूट हे राम! तुम्हारे नाम को जप रहा है झूठी हे राम! तुम्हारे नाम पर डाकू भी है संत हे राम! तुम्हारे नाम की महिमा है अनंत हे राम! प्रदीपकांत तो इनसे भी आगे बढ़ जाते हैंरू क्या अजब ये हो रहा है राम जी, मोम अग्नी बो रहा है राम जी, आपका कुछ खो गया जिस राह में, कुछ मेरा भी खो रहा है राम जी।
कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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