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भूमिया देवता : उत्तराखंड में फसलों और प्रत्येक क्षेत्र के क्षेत्रपाल देवता

भूमिया देवता: उत्तराखंड में फसलों और प्रत्येक क्षेत्र के क्षेत्रपाल देवता
सीएन, नैनीताल।
देवभूमि उत्तराखंड में लगभग हर गांव में भूमिया देवता की पूजा होती है।  इन्हें भूमि मे उगने वाली फसलों को जंगली जानवरों और प्राकृतिक आपदाओ से बचाने व रक्षा करने के लिए भूमि देवता के रुप मे पूजा जाता है। भूमिया देवता के मंदिर आपको हर गाँव में मिलेगा। भूमिया देवता को भूमि का रक्षक देवता माना जाता है। भूमि के देवता के रूप में जिमदार, भूमियाँ व क्षेत्रपाल, इन तीन नामों से पूजा जाता है। भूमिया जो भूमि का स्वामी, गाँव का रक्षक, पशुओं तथा खेती की देखभाल करने वाला ग्राम देवता है, इसी को कुछ लोग जिमदार के रूप में मानते हैं। प्रत्येक लोकदेवता को संतुष्ट करने के लिए विशेष अवसरों, पर्वों, समारोहों के आयोजन में इनकी विशेष पूजा की जाती हैं। उत्तराखंड संस्कृति के अनुसार पौराणिक परंपरा रही है कि जहां भी कोई गांव और शहर बसाया जाता या बसता है तो सबसे पहले भूमि पूजन किया जाता है और सबसे पहले नगर पवित्र भूमिया मंदिर ;ग्राम देवता का मंदिर बनाया जाता है। इस मंदिर में गांव पवित्र भूमिया देवता मंदिर को ग्राम देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। इस क्षेत्रपाल का नाम भी पौराणिक ग्रंथों शोस्त्रों.पुराणों में भी वर्णित है। जब भी गांव या नगर में जब शुभ कार्य होता है तो पहले भूमिया देवता ;ग्राम देवता की पूजा की जाती है। ताकि गांव में सुख.समृद्धि शांति बनी रहे। मान्यता है कि भूमिया देवता की इजाजत के बिना कोई दैवीय शक्ति या बाहरी शक्ति गांव में प्रवेश नहीं कर सकती। उत्तराखंड मे खेतो से उपजे अनाज या कोई भी फल सबसे पहले भूमिया देवता को अर्पित की जाती है। उसके बाद गांव वाले इसको कहते है खेतों में बुवाई किया जाने से पहले पहाड़ी किसान बीज के कुछ दाने भूमिया देवता के मंदिर में बिखेर देते हैं। विभिन्न पर्व.उत्सवों के फसल पक जाने के बाद भी भूमिया देवता की पूजा अवश्य की जाती है। फसल पक जाने पर फसल की पहली बालियाँ भूमिया देवता को ही चढ़ाई जाती हैं और फसल से तैयार पकवान भी। सभी मौकों पर पूरे गाँव द्वारा सामूहिक रूप से भूमिया देवता का पूजन किया जाता है। मैदानी इलाकों में इन्हें भूमसेन देवता के नाम से भी जाना जाता है। भूमिया देवता की पूजा एक प्राकृतिक लिंग के रूप में की जाती है। भूमिया देवता के जागर भी आयोजित किये जाते हैं। इनकी पूजा मे विशेष रूप से पूवे पकाये जाते है। बता दें कि भूमिया देवता के नाम से नैनीताल शहर से सटे एक गांव का नाम ही भूमियाधार रखा गया है। यहां पुरखों ने देवता का मंदिर स्थापित किया है। तुलेरा बिष्ट व कुरिया धड़े के साथ भूमियाधार व आसपास के ग्रामीण नियमित पूजापाठ करते हैं।

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