धर्मक्षेत्र
पहाडों की रक्षक मां धारी देवी : मंदिर की है अभूतपूर्व मान्यता
पहाडों की रक्षक मां धारी देवी : मंदिर की अभूतपूर्व मान्यता
अमृता पांडे, रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड चार धामों का प्रदेश। धार्मिक मनोवृति यहां के निवासियों को आस्था से बांधे रखती है। चार धाम के अतिरिक्त कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी अभूतपूर्व मान्यता है। ऐसे ही एक मंदिर के दर्शन का सौभाग्य पिछले महीने अपनी गढ़वाल यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ, जिन्हें धारी देवी माता के नाम से जाना जाता है। रुद्रप्रयाग से श्रीनगर की तरफ बढ़ने पर लगभग 20 किलोमीटर आगे और श्रीनगर से 15 किलोमीटर पहले दिल्ली-नीति राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित इस मंदिर के सड़क से ही दर्शन हो जाते हैं। यह मंदिर श्रीनगर के अंतर्गत कलियासौंड़ नामक स्थान में जल परियोजना के बांध के बीचों-बीच स्थित है। मान्यता है कि देवी मां चार धामों की रक्षा करती है और प्राकृतिक प्रकोप के खतरे को भी रोकती हैं। क्षेत्र वासी इन्हें कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।
श्रीनगर जीवीके की 330 मेगावाट जल विद्युत परियोजना के अंतर्गत बांध निर्माण के दौरान अलकनंदा के किनारे स्थित यह मंदिर डूब क्षेत्र में आ गया था अतः मंदिर का स्थान परिवर्तन करने की जरूरत आन पड़ी थी। मंदिर से छेड़छाड़ के तुरंत बाद ही 2013 की आपदा आयी थी और इसे देवी के प्रकोप से जोड़कर देखा गया। इस दौरान हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के विरुद्ध लंबे समय तक धरना प्रदर्शन भी हुआ। इसी वजह से प्रोजेक्ट का काम अभी भी जारी है जबकि इसकी तय सीमा 2011 थी। विरोध के बीच प्रतिमा को हटाना पड़ा क्योंकि बाढ़ का खतरा बढ़ गया था। हालांकि कंपनी द्वारा मंदिर को उसी स्थान पर उठाकर ऊंचाई में स्थापित कर दिया गया है। मंदिर में देवी का ऊपरी भाग है। निचला भाग कालीमठ में स्थित होना बताया जाता है। धारी देवी मंदिर 108 शक्ति स्थलों में से एक है। कहा जाता है कि सच्चे मन से जाने वाले भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मां धारी के बारे में विशेष बात यह कही जाती है कि वह एक दिन में तीन बार रूप बदलती हैं। सुबह वह एक कन्या के रूप में दिखाई देती हैं, दिन में एक युवा स्त्री के रूप में और शाम को एक बूढ़ी स्त्री के रूप में। मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं जिनकी प्रमाणिकता नहीं मिलती। यह भी कहा जाता है कि एक बार भीषण बाढ़ में मंदिर बह गया था और देवी की मूर्ति बहकर धारी गांव के पास चट्टान में रुक गई। तब गांव वालों ने मिलकर यह मंदिर बनाया। जबकि पुजारियों का कहना है कि मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही प्रतिष्ठित है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क से नदी की तरफ सीढ़ियां भी बनी हैं। कुछ किलोमीटर आगे चलकर एचपीसीएल द्वारा बनाया गया मार्ग भी है, जिसकी दूरी लगभग एक -डेढ़ किलोमीटर होगी। चूंकि हमें उस रात श्रीनगर में ही ठहरना था अतः शाम की आरती का समय मंदिर जाने का उपयुक्त समय लगा। शाम ठीक सात बजे मंदिर में मां से क्षमा याचना करते हुए बहुत सुंदर आरती होती है। आरती में शामिल होने और प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य मिला। आरती के दौरान स्थानीय लोगों के साथ साथ बद्रीनाथ जाने वाले पर्यटक भी वहां पर थे। मंदिर तक पहुंचने के लिए पुल बनाया गया है। स्थानीय वाहन चालक कच्चे मार्ग से लाकर पर्यटकों को मंदिर के दर्शन कराते हैं। रात के समय बिजली की जगमगाहट जब पानी में पड़ती है तो एक विहंगम दृश्य उत्पन्न होता है।
