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आज से शुरू गुप्त नवरात्रि आषाढ़ 2023 : नौ स्वरूपों के साथ 10 महाविद्याओं की पूजा का विशेष महत्व  

आज से शुरू गुप्त नवरात्रि आषाढ़ 2023 : नौ स्वरूपों के साथ 10 महाविद्याओं की पूजा का विशेष महत्व  
सीएन, हरिद्वार।
मां शक्ति की कृपा पाने के लिए पूरे साल ही भक्ति भाव के साथ माता की पूजा आराधना की जाती है। माता के प्रति अपना विशेष आभार व्यक्त करने के लिए साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि में विशेष रूप से माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन इसके अलावा माघ और आषाढ़ माह में भी नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। माघ और आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। गुप्त नवरात्रि में माता शक्ति के नौ स्वरूपों के साथ 10 महाविद्याओं की पूजा का विशेष महत्व है। इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 19 जुलाई 2023 के दिन से शुरू होगी। गुप्त नवरात्रि 28 जुलाई को समाप्त होगी। गुप्त नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। जब वे भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या कर रही थी, तो माँ दुर्गा ने उन्हें अपार पवित्रता और सतीत्व अर्जित किया और इसी वजह से वे ब्रह्मचारिणी कहलाई गई। यह दुर्गा का उग्र रूप है जिसमें इन्होंने अपने दस हाथों में आठ शस्त्र धारण कर रखे हैं। सिंह पर सवार होने के कारण ये ‘धर्मा’ कहलाती है और चंद्रघंटा के नाम से जानी जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन मां के जिस अवतार की पूजा होती है। उन्हें कुष्मांडा रूप से जाना जाता है। उनका नाम दर्शाता है कि उन्होंने इस ब्रहमांड की उत्पत्ति की है और वे सूर्य के रूप में सभी के बीच में विद्यमान है। मां स्कंदमाता कार्तिकेय की माता है, जो कि शेर पर विराजित हैं। उनकी गोद में कार्तिकेय बैठे है, इस स्वरूप को ध्यान में रखते हुए इनकी पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के छठे दिन देवी के जिस रूप की पूजा की जाती है वो मां कात्यायनी के नाम से जानी जाती है। मां दुर्गा के इस रूप की उत्पत्ति महिषाषुर दानव का वध करने के लिए हुई थी। दुर्गा के इस भयंकर अवतार की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। जो गधे पर सवार हैं, उनकी चार भुजाएं हैं, तीन आंखे हैं और मुंह खुला हैं। श्याम रंग वाली ये देवी अपने भक्तों को अभय और सभी कष्टों से मुक्ति का आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है जो कि तब तक श्याम रंग की ही रही जब तक भगवान शिव उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न नहीं हुए और गंगा नदी के पवित्र जल से उनकी शुद्घि नहीं की। मां सिद्घिदात्री की पूजा नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन की जाती है। उनका नाम उनके महत्व को स्वयं दर्शाता है। ‘सिद्घि’ यानि अलौकिक शक्तियां’ और ‘दात्री’ यानि देना।
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि और दस महाविद्याएं
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में भी माता की पूजा चैत्र और शारदीय नवरात्रि की तरह ही की जाती है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के पहले दिन साधक घटस्थापना के साथ नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेता है। इसके बाद प्रतिदिन प्रातः काल दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर माता दुर्गा की पूजा की जाती है। इसके बाद अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का उद्यापन करके कन्याओं को पूजन और भोज करवाया जाता है। वहीं तंत्र साधना से जुड़े लोग गुप्त नवरात्रि के दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। इन दस महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी शामिल है। गुप्त नवरात्रि को महाविद्याओं की साधना और सिद्धि प्राप्ति के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है। इस दौरान व्यक्ति तंत्र – मंत्र की शक्तियों को बेहद सहजता से हासिल कर सकता है। ठीक इसी तरह गुप्त नवरात्रि के दौरान ज्योतिषीय उपायों का भी महत्व बढ़ जाता है। इस दौरान राशियों के अनुसार माता के विभिन्न स्वरूप और महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए यदि राशि के अनुसार उपाय किए जाएं तो उनका निश्चित फल मिलने की संभावना है।

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