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हिमाचल : दशहरा उत्सव में देवी-देवताओं के भव्य मिलन के साक्षी बने लोग, ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमे

हिमाचल : दशहरा उत्सव में देवी-देवताओं के भव्य मिलन के साक्षी बने लोग, ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमे
सीएन, कुल्लू।
हिमाचल में जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर मैदान में 7 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है। इस अवसर पर जिला कुल्लू में विभिन्न इलाकों के देवी.देवता पधारे हुए हैं। यहां लोगों को देवी.देवताओं के मिलन का भव्य नजारा देखने को मिल रहा है। इसके साथ ही देवी.देवताओं के साथ आए हरियान भी ढोल-नगाड़ों की थाप पर खूब झूम रहे हैं। जिससे दशहरा उत्सव की शोभा बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के तीसरे दिन सुबह सभी देवी-देवताओं के शिविर में आरती और पूजा.अर्चना की गई है। उसके बाद कई शिविरों में श्रद्धालुओं द्वारा नाटी भी डाली गई। विभिन्न इलाकों से आए लोग शिविरों में सभी देवी.देवताओं के दर्शन कर रहे हैं। भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर में भगवान रघुनाथ, माता सीता, शालिग्राम, नरसिंह, हनुमान जी का विधिवत स्नान, हार शिंगार के साथ विधिवत पूजा अर्चना की गई। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना की। वहीं भगवान रघुनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी और लोगों ने भगवान रघुनाथ के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष एवं सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर ने भी दशहरा मैदान में देवी.देवताओं के अस्थाई शिविरों में हाजिरी भरी। इस दौरान उन्होंने सभी देवी.देवताओं का आशीर्वाद लिया सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर ने कहा कि दशहरा कमेटी की तरफ से इस बार दशहरा उत्सव समिति के द्वारा कई देवी.देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है। देवी.देवताओं के इस महाकुंभ में उनके आदर में कोई कमी नहीं रहेगी। इस बार देवी.देवताओं के लिए 25 आधुनिक फायरप्रूफ टेंट दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में सभी देवी.देवताओं को आधुनिक फायर प्रूफ टेंट दिए जाएंगे। मालूम हो कि हिमाचल प्रदेश के इस अनोखे दशहरे की शुरुआत भी तब होती है, जब बाकी सारी दुनिया दशहरा मना लेती है। बाकी जगहों की तरह एक दिन का दशहरा भी नहीं होता, उत्सव 7 दिन तक चलता है। इस बार कुल्लू दशहरा की शुरुआत 13 अक्टूबर से हो चुकी है और यह 19 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। कुल्लू का दशहरा हिमाचल की संस्कृति परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक नजर से बेहद अहम है। भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा से दशहरा शुरू होता है और सभी स्थानीय देवी.देवता ढोल.नगाड़ों की धुनों पर देव मिलन में आते हैं। इस बार 332 देवी.देवताओं को निमंत्रण दिया है। दरअसल हिमाचल के लगभग हर गांव का अलग देवता होता है और लोग उन्हें कर्ता-धर्ता मानते हैं। उनका मानना है कि बर्फीली ठंड और सीमित संसाधनों के बावजूद वे इन पहाड़ों पर देवताओं की कृपा से शान से रह पाते हैं। कुल्लू के ढालपुर मैदान में दशहरा पहली बार 1662 में मनाया गया था तो उस समय सिर्फ देव परंपराओं से ही यह पर्व शुरू हुआ था। न तो कोई व्यापार था और ना ही किसी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम। कहा जाता है कि 1650 के दौरान कुल्लू के राजा जगत सिंह को भयंकर बीमारी हो गई थी। ऐसे में बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाकर उसके चरणामृत से ही इलाज होगा। कई संघर्षों के बाद रघुनाथजी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जिन्होंने भगवान रघुनाथजी को सबसे बड़ा देवता मान लिया। देव मिलन का प्रतीक दशहरा उत्सव आरंभ हुआ और यह आज तक जारी है।

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