धर्मक्षेत्र
उत्तराखंड के इस पावन भाग में पितरों का तर्पण करने से होता है सम्पूर्ण जगत का तर्पण
सीएन, रूद्रप्रयाग। जनपद रूद्रप्रयाग के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित कालीमठ व विहंगम पर्वतों की चोटी में स्थित कालीशिला का महत्व आध्यात्मिक दृष्टि से बडा ही अद्भूत व निराला है, कालीतीर्थ के इन क्षेत्रों की महिमां का न आदि है और न ही अन्त। यही वह स्थान है जहां ब्रहमा आदि देवता सिद्वि को प्राप्त हुए थे , जो इस पावन भाग में पितरों ,देव ऋषियों का तर्पण करता है वह चराचर सहित सम्पूर्ण जगत का तर्पण कर लेता है यहां की महामहिमा यह है जो देवगणों से घिरे हुए इस क्षेत्र में प्राणों को छोडता है उसके मरने पर काशी या गया में श्राद्व की आवश्यकता नही है *योअत्रप्राणान्विमुच्येत क्षेत्रे देवगणावृते। मरणेन हि किं काश्यां किं गयायां हि श्राद्वत श्लोक के पाठ से वह मुक्त हो जाता है उसका पुर्नजन्म नही होता है सरस्वती व इन्दीवर नदी के तट पर किया जाने वाला स्नान सनातन मुक्ति को प्रदान करता है। कालीक्षेत्र में स्थित महालिंग केदारनाथ से भी अधिक पुण्यदायक माना गया है यहां पर शिव का पूजन करने वाला परम पद को पाता है यह लिंग कालीश्वर नाम से प्रसिद्व है पुराणों में काली क्षेत्र की अद्भुत महिमा गायी गयी है यह प्रत्यक्ष फलदायक स्थान माना गया है। यहां आज भी शंख ढोल मृदंग के शब्द सुनाई पडते है माता अरून्धती को काली क्षेत्र की महिमा बताते हुए प्रभु श्री रामचन्द्र के गुरू वशिष्ठ कहते है कलियुग में मोक्षदायिनी काली के बिना मनुष्य को सर्वथा भोग और मोक्ष देने वाली कोई नही है जो मनुष्य एकाग्रचित होकर देवी का यहा लम्बे प्रवास में ध्यान लगाता है उसके सामने वरदायिनी देवी प्रत्यक्ष हो जाती है। यहां की मतंग नामक शिला पर मंतग मुनी ने कठोर तपस्या की। इस पावन स्थान पर दूर पर्वत पर रणमण्डना महादेवी विराजमान है तपस्या की सिद्वी देने वाला इससे उत्तम स्थान संसार में दूसरा नही है इस पर्वत पर सिद्व, गन्धर्व, और किन्नर देवी के साथ सुखपूर्वक विचरण करते है ,जिन्हें कोई भाग्यशाली मनुष्य आज भी देखते है । इसके उत्तर भाग में खौनू गांव में कोटिमाहेश्वरी माता का मन्दिर सकल पापों का हरण करने के लिए जगत में प्रसिद्व है।कालीशिला के आगे मनणा माई के मन्दिर के दर्शन सकल पापों का हरण करने वाला कहा गया है। कालीमठ से कालीशिला को जाते समय रास्ते में स्थित भीम का चूला पाण्डवकालीन याद को दर्शाता है। कुण्जेठी का शिवालय शिव भक्तों के लिए अलौकिक सौगात है कालीमठ पहुंचने के लिए देहरादून से श्रीनगर होते हुए रूद्रप्रयाग मार्ग से अगस्त्यमुनि गुप्तकाशी के दर्शनकर इस स्थान पर पहुचां जा सकता है। कालीमठ से कालीशिला तक पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर की जटिल पैदल यात्रा करनी पडती है कुल मिलाकर कालीक्षेत्र का महात्म्य शब्दों से परे है।