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फूलों की सजावट से महक उठा केदारनाथ मंदिर, 2 मई से दर्शन शुरू, सजावट और भक्तों की आस्था

फूलों की सजावट से महक उठा केदारनाथ मंदिर, 2 मई से दर्शन शुरू, सजावट और भक्तों की आस्था
सीएन, रूद्रप्रयाग
। उत्तराखंड के सबसे पवित्र मंदिर केदारनाथ के लिए भव्य उद्घाटन की तैयारियां चल रही हैं। 30 अप्रैल से चार धाम यात्रा शुरू हो रही है और केदारनाथ मंदिर का उद्घाटन 2 मई को किया जाएगा। इस मौके पर मंदिर को फूलों से सजाया जा रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें मंदिर को फूलों से सजाते हुए दिखाया गया। उन्होंने लिखा श्री केदारनाथ धाम को फूलों से सजाया जा रहा है। 2 मई से भक्तों को बाबा का दर्शन मिलेगा। 2 मई से केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी शुरू हो जाएगी। चार धाम यात्रा के तहत श्रद्धालु हेलीकॉप्टर से केदारनाथ तक यात्रा कर सकेंगे। इस यात्रा के लिए ऑनलाइन बुकिंग 8 अप्रैल से शुरू हो गई थी। साथ ही, ऑनलाइन धोखाधड़ी रोकने के लिए उत्तराखंड सरकार और साइबर पुलिस विशेष सतर्कता बरत रहे हैं। यूसीएडीए की सीईओ सोनिका ने कहा कि यदि कोई अवैध रूप से टिकट बेचता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखंड सरकार ने श्रद्धालुओं के लिए स्वास्थ्य संबंधी सलाह भी जारी की है। सरकार का कहना है कि श्रद्धालु यात्रा शुरू करने से पहले स्वास्थ्य परीक्षण करवाएं और शरीर को तैयार करने के लिए चलने, प्राणायाम और हृदय को मजबूत करने वाले व्यायाम करें। सरकार ने यात्रियों से पंजीकरण करवाने की भी अपील की है।
बद्रीनाथ और केदारनाथ.ये दो प्रधान तीर्थ
उत्तराखंड में बद्रीनाथ और केदारनाथ दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण.मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12-13 वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनाया हुआ है जो 1076-99 काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण एवं दक्ष प्रजापति के समय से इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं। पांडवों के पोत्र राजा जनमेजय ने उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया था एवं संपूर्ण केदार क्षेत्र दान में दिया था और वे तब से यहां पर तीर्थयात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं। शुक्ल यजुर्वेद अथवा बाज सेन संहिता का पाठ करने के कारण ये लोग शुक्ला अथवा बाजपेयी कहलाते हैं, शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के अनुयायी होने के कारण इनके गोत्र शांडिल्य, उपमन्यु, धौम्य आदि हैं। गुरु शंकराचार्य जी के समय से यहां पर दक्षिण भारत से जंगम समुदाय के रावल व पुजारी मंदिर में शिवलिंग की पूजा करते हैं जबकि यात्रियों की ओर से पूजा इन तीर्थ पुरोहित ब्राह्मणों द्वारा की जाती है। मंदिर के सामने पुरोहितों की अपने यजमानों एवं अन्य यात्रियों के लिये पक्की धर्मशालाएं हैं, जबकि मंदिर के पुजारी एवं अन्य कर्मचारियों के भवन मंदिर के दक्षिण की ओर हैं ।

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