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नेत्रदान के बाद भगवान जगन्नाथ का एकांतवास होगा समाप्त, रथ यात्रा की तैयारी पूरी

नेत्रदान के बाद भगवान जगन्नाथ का एकांतवास होगा समाप्त, रथ यात्रा की तैयारी पूरी
सीएन, पुरी।
उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर से लोगों की खास आस्था जुड़ी है, जहां रोजाना बड़ी संख्या में भक्तजन दर्शन करते हैं। जगन्नाथ मंदिर को हिंदुओं के पवित्र धामों में से एक माना जाता है। हर साल आषाढ़ महीने में यहां पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस बार 26 जून से 27 जून 2025 के बीच ये यात्रा निकाली जाएगी। पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि 26 जून आज दोपहर 1रू24 बजे से शुरू होकर 27 जून को सुबह 11रू19 बजे तक रहेगी। इसी तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर मौसी का घर के लिए रवाना होते हैं। हालांकि यात्रा से पहले कई खास परंपराएं निभाई जाती हैं।रथ यात्रा से करीब 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैंए जिसे अनवसर कहा जाता है। इस दौरान मंदिर के पट भक्तों के लिए बंद हो जाते हैं। जगन्नाथ जी का जड़ी.बूटियों और औषधियों से उपचार किया जाता है। यात्रा से एक दिन पहले महाप्रभु जगन्नाथ के नेत्र दर्शन होते हैं। जिस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन भक्तों को पुनः होते हैं, उस दिन होने वाले आयोजन को नेत्र दर्शन कहा जाता है। नेत्र दर्शन को नवयुवन दर्शन और नेत्र उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महाप्रभु जगन्नाथ को सजाया जाता है और उनके नेत्रों को फिर से चित्रित किया जाता है, जिससे वो भक्तों को देख सकें। लेकिन इसका आयोजन भगवान जगन्नाथ से रथ यात्रा की आज्ञा लेने के बाद ही होता है। नेत्र दर्शन को देवताओं की पुनः उपस्थिति और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक माना जाता है। ये दिन भक्तों को नई शुरुआत और आध्यात्मिक जागरण का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा इस दिन को भक्तों के लिए आशीर्वाद और दिव्य कृपा का संकेत भी माना जाता है। इस बार 26 जून 2025 को महाप्रभु जगन्नाथ के नेत्र दर्शन होंगे। जबकि रथ यात्रा 27 जून 2025 को निकाली जाएगी। रथ यात्रा से पूर्व भगवान जगन्नाथ को स्नान पूर्णिमा के दिन 108 कलशों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है और वे 15 दिनों तक अनासर गृह में विश्राम करते हैं। इस अवधि में भगवान के दर्शन नहीं होते। भक्त इस समय को भगवान के उपचार और विश्राम का समय मानते हैं। रथ यात्रा का सबसे भावुक दृश्य होता है जब लाखों श्रद्धालु भगवान के विशाल रथ की रस्सियों को खींचते हैं। मान्यता है कि रथ को खींचना पुण्य अर्जन का कार्य है, जो जन्मों के पापों को धो देता है। आमतौर पर जगन्नाथ मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन रथ यात्रा के दौरान भगवान खुद बाहर आते हैं और हर जाति, धर्म, वर्ग के लोगों को दर्शन देते हैं।

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