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महाकुंभ 2025 : 144 साल बाद बना है अद्भुत संयोग, धरती और आकाश दोनों में कुंभ स्नान

महाकुंभ 2025 : 144 साल बाद बना है अद्भुत संयोग, धरती और आकाश दोनों में कुंभ स्नान
सीएन, प्रयागराज।
संगम नगरी प्रयागराज महाकुंभ स्नान शुरू हो गया है। 2025 में 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। आज से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलने वाले महाकुंभ में इस बार 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होने का अनुमान है। पहले दिन से ही तीर्थ राज प्रयाग में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटना शुरू हो गई है। वैसे तो कुंभ में सभी दिन भक्तों की भारी भीड़ लगने की संभावना है, लेकिन शाही स्नान वाले दिन ये भीड़ कई गुना ज्यादा तक बढ़ सकती है। हर 12 साल में भारत के चार पवित्र शहर हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह मेला लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। 144 साल बाद ऐसा अद्भुत संयोग बना है जब धरती और आकाश दोनों में कुंभ स्नान होगा। प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले का महत्व बेहद खास है। यह पूर्ण कुंभ है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। पिछला पूर्ण कुंभ 2013 में आयोजित हुआ था। इसके बाद 2019 में अर्ध कुंभ का आयोजन हुआ। इस बार के कुंभ में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। अनुमान है कि अकेले संगम में 10 करोड़ लोग स्नान करेंगे। सबसे खास बात यह है कि 144 साल बाद ऐसा संयोग बना है, जब धरती पर इंसान ही नहीं बल्कि आसमान में देवता भी कुंभ स्नान करेंगे। पूर्ण कुंभ हर 12 साल में आयोजित होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार देवताओं के 12 दिन इंसानों के 12 साल के बराबर होते हैं, जबकि महाकुंभ हर 144 साल में आयोजित होता है। कूर्म पुराण के अनुसार कुंभ होते हैं, जिनमें से चार पृथ्वी पर और शेष आठ देवलोक में आयोजित होते हैं। इस मान्यता के अनुसार प्रयागराज में हर 144 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है, जो अन्य कुंभों से अधिक महत्वपूर्ण है। कूर्म पुराण के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों के बीच बारह दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ था। देवताओं के ये बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होते हैं। इस युद्ध में देवताओं की विजय हुई और अधर्म का नाश हुआ, इसलिए युद्ध के बाद देवताओं ने देवलोक में ही स्नान किया, इसीलिए इस पौराणिक मान्यता के अनुसार हर बारह साल में कुंभ मेला लगता है। साथ ही कूर्म पुराण में बताया गया है कि जिस तरह पृथ्वी पर गंगा एक पवित्र नदी है, उसी तरह देवलोक में भी कई पवित्र नदियां हैंए,जिनमें सिर्फ देवता ही स्नान कर सकते हैं। जब पृथ्वी पर महाकुंभ का आयोजन होता हैए तो देवलोक के द्वार खुल जाते हैं और सभी देवता देवलोक में ही कुंभ स्नान करते हैं। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि कुंभ मेला का आयोजन 850 साल से भी ज्यादा पुराना है। आदि शंकराचार्य द्वारा महाकुंभ की शुरुआत की गई थी। कुछ कथाओं में बताया गया है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही किया जा रहा है। जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि गुप्त काल के दौरान से ही इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन सम्राट हर्षवर्धन से इसके प्रमाण देखने को मिलते हैं। इसी के बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी। हालांकि कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य यह भी मिलते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्य काल में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग जब अपनी भारत यात्रा के बाद उन्होंने कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया था। इसी के साथ उन्होंने राजा हर्षवर्धन का भी जिक्र किया है। उनके दयालु स्वभाव के बारे में भी उन्होंने जिक्र किया था। ह्वेनसांग ने कहा था कि राजा हर्षवर्धन लगभग हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे। जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे।

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