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महाकुंभ की खप्पर तपस्या: बसंत पंचमी से शुरू होगी कठिन तपस्या 350 साधु रोज करेंगे 16 घंटे का कठोर तप

महाकुंभ की खप्पर तपस्या: बसंत पंचमी से शुरू होगी कठिन तपस्या 350 साधु रोज करेंगे 16 घंटे का कठोर तप
सीएन, कुंभनगरी।
प्रयागराज में बसंत पंचमी के दिन सबसे कठिन तपस्या शुरू होने जा रही है।वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पचंमी से कुंभ नगरी में परंपरागत कठिन साधना आरंभ करेंगे। खाक चौक में इसको लेकर तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं। इस दफा करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी धूनी साधना की खप्पर तपस्या करेंगे। यह तपस्या सबसे आखिरी श्रेणी की होती है। इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय होती है।  350 साधक इस तपस्या को करेंगे। प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम बरकरार है। देश.दुनिया से श्रद्धालुओं का गंगा स्नान के लिए आना लगा हुआ है। इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पचंमी से कुंभ नगरी में परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू करने वाले हैं। खाक चौक में इसे लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। 350 साधक इस बार खप्पर तपस्या करेंगे। धूनी साधना की खप्पर तपस्या सबसे आखिरी श्रेणी की होती है। इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय होती है। वैष्णव परंपरा में श्री संप्रदाय यानी रामानंदी संप्रदाय में धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है। पंचांग के मुताबिक यह तपस्या आरंभ होती है। तेरह भाई त्यागी आश्रम के परमात्मा दास ने बताया कि सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से यह तपस्या आरंभ की जाती है। तपस्या से पहले साधक निराजली व्रत रखता है। इसके बाद धूनी में बैठते हैं। छह चरण में तपस्या पूरी होती है। इन छह चरणों में पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि एवं खप्पर श्रेणी होती है। हर श्रेणी तीन साल में पूरी होती है। इस तरह तपस्या पूरी करने में 18 साल का समय लगता है। दिगंबर अखाड़े के सीताराम दास का कहना है सभी छह श्रेणी में तपस्या की अलग.अलग रीति होती है। सबसे प्रारंभिक पंच श्रेणी होती है। साधुओं के दीक्षा लेने के बाद उनकी यह शुरुआती तपस्या होती है। इसमें साधक पांच स्थान पर आग जलाकर उसकी आंच के बीच बैठकर तपस्या करते हैं। दूसरी श्रेणी में सात जगह पर आग जलाकर उसके बीच बैठकर तपस्या करनी होती है। इसी तरह द्वादश श्रेणी में 12 स्थान 84 श्रेणी में 84 स्थान और कोटि श्रेणी में सैकड़ों स्थान पर जल रही अग्नि की आंच के बीच बैठकर तपस्या करनी होती है। खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन होती है। परमात्मा दास के मुताबिक सिर के ऊपर मटके में रखकर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इसकी आंच के मध्य में साधक को रोजाना 6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है। बसंत से गंगा दशहरा तक यह चलती है। तीन साल तक यह क्रम चलता है। इसके पूरा होने के बाद साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी मानी जाती है। उनका कहना है अखाड़ा, आश्रम समेत खालसा में इसकी तैयारियां आरंभ हो गई हैं, दिगम्बर, निर्मोही एवं निर्वाणी समेत खाक चौक में करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी यह कठिन साधना करेंगे जबकि अन्य साधक अपने अन्य चरण की तपस्या करेंगे। खाक चौक के तपस्वियों में इस साधना के साथ ही उनकी वरिष्ठता भी संत समाज के बीच तय होती है। तमाम साधक महाकुंभ से अपनी साधना आरंभ करते हैं। उनकी शुरुआत पंच धूना से होती है। इसी तरह क्रम आगे बढ़ने पर खप्पर श्रेणी आती है। खप्पर श्रेणी के साधक को ही सबसे वरिष्ठ मानते हैं। कई साधक खप्पर तपस्या पूरी होने के बाद दोबारा से भी तपस्या आरंभ करते हैं।

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