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महाशिवरात्रि : किया गया व्रत व जलाभिषेक कष्टों से मुक्ति दिलाकर करता है सांसारिक सुख प्रदान
महाशिवरात्रि : किया गया व्रत व जलाभिषेक कष्टों से मुक्ति दिलाकर करता है सांसारिक सुख प्रदान
सीएन, हरिद्वार। महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण पर्व है, महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल महाशिवरात्रि की फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को दिन में 11.08 बजे से शुरू होकर 27 फरवरी को सुबह में 08.54 बजे खत्म होगी। महाशिवरात्रि को शिव की महान रात के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि का उपवास रखने की प्रथा काफी सालों से चली आ रही है। कुछ लोग इस व्रत के दौरान पूरा दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं करते। शिवपुराण में बताया गया है कि जो शिव भक्त शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर व्रत रखते हैं और भगवान भोलेनाथ की भक्ति भाव के साथ पूजा अर्चना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन किया गया व्रत और भोलेनाथ की जलाभिषेक तमाम कष्टों से मुक्ति दिलाकर सांसारिक सुख प्रदान करता है। हिन्दू धर्म में व्रत कठिन होते है। भक्तों को उन्हें पूर्ण करने हेतु श्रद्धा व विश्वास रखकर अपने आराध्य देव से उसके निर्विघ्न पूर्ण होने की कामना करनी चाहिए। शिव पुराण में महाशिवरात्रि के व्रत को लेकर कुछ खास नियम बताए गए हैं। इन नियमों में यह भी बताया गया है कि शिवजी की पूजा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। महाशिवरात्रि व्रत निराहार, फलाहार किया जाता है। ऐसे में महाशिवरात्रि का व्रत गर्भवती महिला, बुजुर्ग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रेग्नेंट महिला और बुजुर्गों को संतुलित आहार की जरुरत होती है। वहीं पीरियड्स में महाशिवरात्रि का व्रत स्त्रियों को करने की मनाही होती है। शिवरात्रि के एक दिन पहले मतलब त्रयोदशी तिथि के दिन भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्रत के दिन पाचन तन्त्र में कोई अपचित भोजन शेष न रहा गया हो। शिवरात्रि के दिन, सुबह नित्य कर्म करने के पश्चात्, भक्त गणों को पुरे दिन के फलाहार या निराहार व्रत का संकल्प लेना चाहिए। उपवास के समय भक्तों को सभी प्रकार के भोजन से दूर रहना चाहिये। इस दिन स्नान के जल में काले तिल डालने का सुझाव दिया गया है। यह मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन किये जाने वाले पवित्र स्नान से न केवल देह, अपितु आत्मा का भी शुद्धिकरण भी हो जाता है। यदि संभव हो तो, इस दिन गङ्गा स्नान करना चाहिये। प्रदोष काल, निशिता काल या फिर रात्रि के चारों प्रहर में घर पर अभिषेक-पूजन करने हेतु मिट्टी के शिवलिंग बनाएं, फिर जल और पंचामृत से अभिषेक करें। दुग्ध, गुलाब जल, चंदन का लेप, दही, शहद, घी, चीनी, बेलपत्र, मदार के फूल भस्म, भांग, गुलाल तथा जल आदि सामग्रियों का प्रयोग करें। पूजा के समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करना चाहिये। व्रत के समापन का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात् का बताया गया है।
