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मंदिरों में नहीं लगेगी आरएसएस की शाखा, हाई कोर्ट ने लगा दी रोक

मंदिरों में नहीं लगेगी आरएसएस की शाखा, हाई कोर्ट ने लगा दी रोक
सीएन, तिरुवनंतपरुम।
केरल में मंदिरों में शाखा लगाने को लेकर जारी विवाद में अब हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि तिरुवनंतपरुम के सरकारा देवी मंदिर के कैंपस में किसी भी तरह के सामूहिक अभ्यास या हथियारों की ट्रेनिंग की अनुमति नहीं दी जाए। इस मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर देवासम बोर्ड टीडीबी के हाथ में है। कुछ महीने पहले ही टीडीबी ने मंदिरों में आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था। दो श्रद्धालुओं की याचिका का निस्तारण करते हुए हाई कोर्ट ने यह आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस या इसके सदस्यों को मंदिर परिसर का अवैध उपयोग करने और अनधिकृत रूप से उस पर काबिज होने से रोकने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मंदिर परिसर में शाम के 5 बजे से रात के 12 बजे तक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है जिससे श्रद्धालुओं को दिक्कत होती है। अदालत ने पुलिस को टीडीबी को उसके पहले के आदेश के अनुपालन में जरूरी सहायता मुहैया कराने का निर्देश दिया। बोर्ड ने अपने धर्मस्थल क्षेत्रों में आरएसएस पर शाखा लगाने और सामूहिक अभ्यास करने पर रोक लगाई थी। जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी जी अजीत कुमार की पीठ ने हाल में एक आदेश में कहा, त्रावणकोर देवासम बोर्ड के प्रबंधन वाले उक्त मंदिर के परिसर में किसी सामूहिक अभ्यास या हथियार चलाने के अभ्यास की अनुमति नहीं होगी। चिरायिनकीझू थाने के प्रभारी प्रशासनिक अधिकारी को पाबंदी का कठोर अनुपालन सुनिश्चित करने में जरूरी सहायता करेंगे। केरल में मंदिरों का प्रबंधन करने वाले बोर्ड ने 18 मई को नया परिपत्र जारी कर अपने अधिकारियों से पहले के आदेश का कड़ाई से अनुपालन करवाने को कहा था। पिछले आदेश में बोर्ड के अंतर्गत आने वाले धर्मस्थल क्षेत्रों में आरएसएस के शाखा लगाने या सामूहिक अभ्यास पर रोक लगाई गई थी।
आरएसएस की शाखा में क्या होता है
बहुत से लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में दूसरों से सुनकर सही या गलत धारणा बना लेते हैं और सत्य जानने के लिए कभी स्वयं किसी शाखा में पधारने का कष्ट नहीं करते। संघ को समझने का सबसे सरल और पक्का उपाय स्वयं शाखा में जाना है। बहुत से लोग इच्छा रहते हुए भी कई कारणों से शाखा नहीं आ पातेए इसलिए उनको भी संघ शाखा के सही स्वरूप का ज्ञान नहीं होता। यहाँ मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ कि संघ की शाखा क्या है और उसमें क्या.क्या होता है।
किसी एक क्षेत्र के स्वयंसेवकों के दैनिक एकत्रीकरण को संघ की शाखा कहा जाता है। यह एकत्रीकरण एक पूर्व निर्धारित स्थान पर निर्धारित समय पर होता है। उस स्थान को संघ स्थान कहा जाता है। यह कोई भी सार्वजनिक या निजी स्थान हो सकता हैए जिसमें स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण पर उस स्थान के स्वामी को आपत्ति न हो। सामान्यतया किसी सार्वजनिक पार्क के किसी कोने पर संघ शाखा लगायी जाती है। यह प्रातःकाल हो सकती है या सायंकाल भी। सामान्यतया तरुणों अर्थात् वयस्कों की शाखा प्रातःकाल तथा बच्चों या विद्यार्थियों की शाखा सायंकाल लगायी जाती है। हालांकि किसी भी शाखा में किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति आ सकता है। शाखा का समय प्रायः एक घंटा होता है। आवश्यकता के अनुसार इसे कम या अधिक किया जा सकता है। किसी शाखा का प्रमुख व्यक्ति मुख्यशिक्षक होता है। शाखा लगाने, शाखा में सभी कार्यक्रम कराने और शाखा क्षेत्र के स्वयंसेवकों से सम्पर्क करने का दायित्व मुख्य शिक्षक का ही होता है। हालांकि इन कार्यों में उसकी सहायता कोई भी स्वयंसेवक कर सकता है। निर्धारित समय पर जब कुछ स्वयंसेवक आ जाते हैं तो सबसे पहले संघ स्थान पर एक निर्धारित जगह पर भगवा ध्वज लगाया जाता है। सभी लोग ध्वज को प्रणाम करते हैं और शाखा प्रारम्भ हो जाती है। जो लोग देर से आते हैंए वे पहले ध्वज को प्रणाम करते हैंए फिर मुख्य शिक्षक को प्रणाम करके शाखा में सम्मिलित होने की आज्ञा लेते हैं। संघ में भगवा ध्वज को ही गुरु माना जाता है, किसी व्यक्ति को नहीं। इसलिए जब ध्वज लगा होता है, तो स्वयंसेवक आपस में नमस्कार नहीं करते। ध्वज उतर जाने के बाद ही आपस में नमस्कार किया जा सकता है। शाखा में कई कार्यक्रम होते हैं, जैसे प्रातःस्मरण या एकात्मता स्तोत्र, व्यायाम, योग, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, खेलकूद आदि। स्वयंसेवकों की उम्र के अनुसार ही व्यायामों और खेलों का चयन किया जाता है। इनको शारीरिक कार्यक्रम कहा जाता है। ये सभी कुल मिलाकर लगभग 40 मिनट तक होते हैं। फिर पास.पास गोल घेरे में या पंक्तियों में जमीन पर बैठकर बौद्धिक कार्यक्रम होते हैं, जैसे गीत, सुभाषित, प्रेरक प्रसंग, प्रवचन आदि। गीत और सुभाषित सामूहिक होते हैं। समय होने पर सामयिक विषयों पर चर्चा भी होती है। सभी बौद्धिक कार्यक्रम लगभग 20 मिनट होते हैं।
अन्त में संघ की प्रार्थना होती है, जिसे एक स्वयंसेवक बोलता है और बाकी सब दोहराते हैं। प्रार्थना के बाद सभी लोग ध्वज प्रणाम करते हैं और प्रार्थना बोलने वाला स्वयंसेवक ध्वज उतार लेता है। उसके बाद विकिर अर्थात् शाखा का समापन किया जाता है। शिविर के बाद स्वयंसेवक अपने.अपने घर जा सकते हैं।

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