धर्मक्षेत्र
एक जुलाई से अमरनाथ यात्रा : एलजी मनोज सिन्हा ने की बाबा बर्फानी की प्रथम पूजा
एक जुलाई से अमरनाथ यात्रा : एलजी मनोज सिन्हा ने की बाबा बर्फानी की प्रथम पूजा
सीएन, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने आज श्री अमरनाथ जी यात्रा की प्रथम पूजा की। उन्होंने कहा कि एक जुलाई से देश भर से तीर्थयात्री अमरनाथ के पवित्र गुफा मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ेंगे। मनोज सिन्हा ने कहा कि यह यात्रा 30 अगस्त को समाप्त होगी। उन्होंने कहा कि श्री अमरनाथ यात्रा के प्रबंधन में लगी सभी संस्थाएं इस यात्रा को सफल बनाने के लिए काम कर रही हैं। वार्षिक श्री अमरनाथ यात्रा की औपचारिक शुरुआत करने के लिए एलजी मनोज सिन्हा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये प्रथम पूजा में शामिल हुए। दुनिया भर के लाखों भक्तों के लिए बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा की तीर्थ यात्रा जीवन भर का सपना होता है। एलजी मनोज सिन्हा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि तीर्थयात्रियों के आराम और भलाई के लिए सर्वोत्तम संभव व्यवस्था की जाए. बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं में सुधार लाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में समर्पित प्रयास किए गए हैं। उन्होंने कहा कि श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की जरूरतों और आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाए। हम तीर्थयात्रियों के लिए बेहतर सुविधाओं और सेवाओं के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कहा कि 1 जुलाई से शुरू होने वाली अरनाथ यात्रा के सफल संचालन के लिए स्थानीय निवासियों का अत्यधिक योगदान है। इससे आजीविका के अवसर भी बढ़ेंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। एलजी मनोज सिन्हा ने उम्मीद जताई कि इस साल हुई भारी बर्फबारी के बावजूद सीमा सड़क संगठन तेजी से काम करते हुए हुए श्री अमरनाथ यात्रा के लिए रास्तों के समय पर ठीक करने का काम पूरा कर लेगा।
अमरनाथ यात्रा उत्तर भारत की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा
अमरनाथ यात्रा को उत्तर भारत की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है। यात्रा के दौरान भारत की विविध परंपराओं, धर्मों और संस्कृतियों की झलक देखी जा सकती है। अमरनाथ यात्रा में शिव भक्तों को कड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बेशक यह यात्रा थोड़ी कठिन है, लेकिन कश्मीर के मनोरम प्रकृति नजारों और धार्मिक तथा अध्यात्म का अनोखा पुट इससे जुड़ा है। रास्ते उबड़-खाबड़ हैं, रास्ते में कभी बर्फ़ गिरने लग जाती है, कभी बारिश होने लगती है तो कभी बर्फीली हवाएं चलने लगती हैं। फिर भी भक्तों की आस्था और भक्ति इतनी मज़बूत होती है कि यह सारे कष्ट महसूस नहीं होते और बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए एक अदृश्य शक्ति से खिंचे चले आते हैं। यह माना जाता है कि अगर तीर्थयात्री इस यात्रा को सच्ची श्रद्धा से पूरा करें तो वह भगवान शिव के साक्षात दर्शन पा सकते हैं। जून से लेकर अगस्त माह तक दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
मुसलमान गड़रिये के वंशजों को मिलता है चौथाई चढ़ावा
कई विद्वानों का मत है कि शंकर जी जब पार्वती जी को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा। अमरनाथ गुफ़ा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गड़रिये को चला। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिये के वंशजों को मिलता है। यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां फूल-माला बेचने वाले मुसलमान होते हैं। अमरनाथ गुफ़ा एक नहीं है, बल्कि अमरावती नदी पर आगे बढ़ते समय और कई छोटी-बड़ी गुफ़ाएं दिखती हैं। सभी बर्फ से ढकी हैं। मूल अमरनाथ से दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं।
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