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उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला-शक्तिपीठों में से एक है नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर

उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला-शक्तिपीठों में से एक नैनीताल पाषाण देवी मंदिर
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। नैनीताल के मल्लीताल में फ्लैट्स के किनारे माता नयनादेवी का मंदिर ठीक उस जगह पर है जहाँ से तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। इसी ठंडी सड़क पर चार-पांच सौ मीटर आगे जाने पर, झील के लगभग बीचोबीच के बिंदु के समीप दाईं तरफ सड़क से लगी पहाड़ी पर एक और महत्वपूर्ण देवी मंदिर है जिसे पाषाण देवी का मंदिर कहा जाता है। नैनीताल के पाषाण देवी मंदिर में मां भगवती के सभी रूप चट्टान पर प्राकृतिक रूप से उभरे हैं। ऐसी मान्यता है कि मां भगवती के चरण नैनी झील में है। इस स्थान पर माता के सभी 9 स्वरूपों की आकृति पत्थर पर अवतरित है। श्रद्धालु मानते हैं कि मां उनकी मांगों वो हमेशा पूरी करती हैं। यहां मां को वस्त्र के रूप में सिंदूर चढ़ाने की परम्परा है। इस मंदिर के निर्माण का प्रमाण कहीं नहीं मिलता है। माना जाता है हजारों साल से मां भगवती यहीं पर हैं और पहाड़ी इलाकों की रक्षा करती हैं। पौराणिक मिथक है कि दक्ष प्रजापति अपनी पुत्री पार्वती का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे लेकिन दैवीय आग्रह के चलते उन्हें ऐसा करना पड़ा। विवाह के कुछ समय बाद जब दक्ष प्रजापति ने अपने घर में हो रहे एक यज्ञ में सभी देवताओं को तो बुलाया लेकिन शिव को नहीं बुलाया तो इसे अपने पति का अपमान जान कर पार्वती आहत हो गईं। दुखी पार्वती ने यज्ञ के हवनकुंड में यह कहते हुए कूद लगा दी कि वे अगले जन्म में भी शिव को ही अपना जीवनसखा चुनेंगी। जब महादेव को इस घटना का पता चला वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने गणों की सेना की मदद से दक्ष प्रजापति के यज्ञस्थल को तहस-नहस कर डाला। अकारण सती हो गयी अपनी अर्धांगिनी के दग्ध शरीर को देख शिव वैरागी हो गए और पार्वती के शरीर को लेकर अंतरिक्ष में इधर-उधर भ्रमण करने लगे। माना जाता है कि पार्वती की देह से अलग होकर उनके अंग जहाँ-जहां गिरे वहां शक्तिपीठें स्थापित हो गईं। माता पार्वती के नयन नैनीताल में गिरे और उनसे निकली आंसुओं की धारा से सरोवर का जन्म हुआ। इसकी स्मृति में नैनीताल के मल्लीताल में फ्लैट्स के किनारे माता नयनादेवी का मंदिर ठीक उस जगह पर है जहाँ से तल्लीताल की तरफ जाने के लिए ठंडी सड़क आरम्भ होती है। अंतरिक्ष में भ्रमणरत शिव के कंधे पर पड़ी माता पार्वती की जली हुई देह से गिरे नेत्रों से नैनीताल सरोवर बना। मिथक यह भी है कि अयारपाटा की पहाड़ी के दक्षिण-पूर्वी तल पर उस देह से ह्रदय और अन्य हिस्से (अर्थात पाषाण) गिरे। उसी स्थान पर पाषाणदेवी का मंदिर स्थापित है। पाषाणदेवी के इस मंदिर में देवी की पूजा शिला में उभरी एक आकृति के रूप में की जाती है। आकार में विशाल इस शिला में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों का दर्शन होता है। यह एक अद्वितीय चट्टान है। माना जाता है कि इस चट्टान पर माँ का मुख दिखाई देता है जबकि उनके पैर नीचे झील में डूबे हुए हैं। मंदिर के परिसर में हनुमान की प्रतिमा के अलावा एक शिवलिंग भी है। नवदुर्गा का रूप मानी जाने वाली चट्टान को देवी के मुख का रूप देकर सुसज्जित किया गया है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु देवी को सिन्दूर अर्पित करते हैं और सिन्दूर ही से देवी की प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है। नैनीताल की आधिकारिक खोज शाहजहांपुर के रौजा के रहने वाले व्यापारी पीटर बैरन ने की थी। बैरन की किताब ‘नोट्स ऑफ़ वान्डरिंग्स इन द हिमाला’ के हवाले से कहा जा सकता है कि पाषाण देवी का मंदिर नैनीताल का सबसे पुराना मंदिर था। इस मंदिर में आसपास के गाँवों के पशुचारक लोग दूध और मट्ठा चढ़ाया करते थे। ग्रामीणों में पाषाण देवी का आज भी वही स्वरुप पूज्यनीय माना जाता है. मान्यता है कि पाषाण देवी के मुख को स्पर्श किये हुए जल को लगाने से त्वचा रोगों से तो मुक्ति मिलती ही है, प्रेतात्माओं के पाश से निकलने की राह भी खुलती है। बताया जाता है कि नव दुर्गा रूपी शिला के नीचे एक गुफा है जिसके भीतर नागों का वास है। हर वर्ष शरद की नवरात्रियों के दौरान इस मंदिर में नौ दिनों तक लगातार पूजा-आराधना चलती है। इस दौरान भगवती पूजन, हवन यज्ञ, कन्या पूजन, सुन्दर कांड का पाठ, गणेश पूजन, पंचांगी कर्म, श्री रामचंद्र परिवार का पूजन और अखंड रामायण पाठ जैसे अनुष्ठान होते हैं। पाषाण देवी मंदिर में पूजा का जिम्मा पिछली पांच पीढ़ियों से नैनीताल के ही निवासी भट्ट परिवार के पास है। फ़िलहाल मंदिर के पुजारी जगदीश चन्द्र भट्ट हैं जो पूर्व पुजारी स्वर्गीय भैरव दत्त भट्ट के सुपुत्र हैं। जगदीश चन्द्र भट्ट बताते हैं कि मंदिर की स्थापना के समय से ही यहाँ एक अखंड ज्योति प्रज्जवलित है। पुजारी द्वारा प्रतिदिन सुन्दरकाण्ड एवं दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। श्रावण और माघ के महीनों में नियमित पाठ के अतिरिक्त रुद्राभिषेक भी किया जाता है। देवी को चढ़ाए जाने वाले श्रृंगार को उनके वस्त्रों की मान्यता है. जगदीश चन्द्र भट्ट यह भी बताते हैं माता दुर्गा को चढ़ाए जाने वाले अभिमंत्रित जल को प्रत्येक दस दिन में एक बार निकाला जाता है और उसे हकलाहट और अन्य ऐसी ही व्याधियों के रोगियों को औषधि के रूप में दिया जाता है। मंदिर के परिसर में निर्मित हनुमान प्रतिमा और शिवलिंग बाद में स्थापित किये गए थे। यही बात मंदिर के समीप स्थित गोलू देवता के थान के बारे में भी सत्य मानी जाती है। लोकमान्यता के अलावा पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों की मानें तो नैनीताल का पाषाण देवी मंदिर उत्तराखण्ड के सबसे पुराने शिला-शक्तिपीठों में से एक है।
बौधाण देवी के रूप में भी पूजित है पाषाण देवी
नैनीताल की ठंडी सड़क में पौराणिक मंदिर पाषाण देवी मंदिर नाम से जाना जाता है, जिन्हें देवी के साथ ही बौधांण देवता के रूप में भी पूजा जाता है। दरअसल, पहाड़ों में खासकर गाय और भैंस के नई संतान देने के बाद उसके पहले दूध से बने उत्पाद से देवों का अभिषेक करने की परंपरा है। यह देवता बौधाण देवता कहे जाते हैं, जिन्हें जानवरों का ईष्ट देव माना जाता है, लेकिन नैनीताल में स्थित यह मंदिर एक अकेला ऐसा स्थान होगा, जहां पशुपालक अपने जानवरों का नया दूध, घी, दही, मक्खन व छांछ जैसे दुग्ध उत्पाद बौधाण देवता के बजाय बौधाण देवी के रूप में पाषाण देवी को चढ़ाते हैं। यहां ग्रामीण, ओखलकांडा, भवाली, भीमताल, मेहरागांव, जंगलिया गांव, गौलापार, हल्द्वानी और रुद्रपुर समेत अन्य ग्रामीण क्षेत्रों से मवेशियों का पहला उत्पाद लेकर पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी जगदीश  भट्ट के अनुसार नैनीताल के स्थानीय निवासी माता को पाषाण देवी के नाम से जानते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग जो पशुपालन करते हैं, वह अपने गाय और भैंस के दूध का पहला उत्पादन जैसे दूध, घी, मक्खन, दही व छाछ को मंदिर में आकर देवी को अर्पित करते हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाके के लोग पाषाण देवी को बौधांण देवता के रूप में पूजते हैं। बौधाण देवता जानवरों के इष्ट देव माने जाते हैं, जो उनकी रक्षा करते हैं। नैनीताल नगर के साथ-साथ ओखलकांडा, मेहरागांव, भीमताल, जंगलिया गांव, गौलापार और रुद्रपुर समेत कई स्थानों से लोग मां को अपने पशुओं के पहले उत्पादन का भोग लगाने के लिए मंदिर आते हैं। उन्होंने बताया कि पशुपालकों को प्रसाद के रूप में जानवर के लिए मां का टीका दिया जाता है, जिससे उनके जानवर सुरक्षित और सभी प्रकार के रोगों से दूर रहते हैं।
जब ब्रिटिश अधिकारी मां पाषाण देवी से मांगी माफी
ऐसा माना जाता है कि एक बार एक अंग्रेज अधिकारी मां पाषाण देवी मंदिर के पास से गुजर रहा था। उन्होंने पास में बने इस छोटे से मंदिर को देखा तो मजाक करने लगे। तभी अचानक उनका घोड़ा पागल सा हो गया और अंग्रेज अफसर घोड़े के साथ झील में गिर पड़ा। ब्रिटिश अधिकारी मां से माफी मांगता है, तो वह आगे बढ़ सकता है। इसके बाद उन्हें गलती का अहसास हुआ और उन्होंने स्थानीय महिलाओं की मदद से अपनी मां को सिंदूर के चोला पहनाया। तभी से यहां का मेकअप सिंदूर के छोले से किया जाता है. मां के लिए हर मंगलवार, शनिवार और नवरात्रि पर चोली पहनने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि नैनी सरोवर में स्नान करने से त्वचा के सभी रोग दूर हो जाते हैं। नैनीताल के इस मंदिर में दूर-दूर से लोग पानी लेने आते हैं। नवरात्रि में यहां पूजा करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहाँ भी अद्भुत दिव्य शक्ति का अनुभव होता है।

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