धर्मक्षेत्र
ऋषि पंचमी आज : भारत के ऋषियों का सम्मान के लिए समर्पित
ऋषि पंचमी आज: भारत के ऋषियों का सम्मान के लिए समर्पित
सीएन, हरिद्वार। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत रखा जाता है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस साल ऋषि पंचमी का यह पर्व 20 सितंबर को है। मान्यता के अनुसार यह दिन विशेष रूप से भारत के ऋषियों का सम्मान के लिए समर्पित है। ऋषि पंचमी के दिन ब्राह्मणों को दान.दक्षिणा देने का बड़ा महत्व है। साथ ही ऋषि पंचमी के दिन व्रत करने से जाने.अनजाने में हुई गलतियों से भी माफी मिल जाती है। ऋषि पंचमी का दिन मुख्य रूप से सप्तऋषियों को समर्पित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार ये सात ऋषि हैं, वशिष्ठ कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। साथ ही मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और सप्तऋषियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि की शुरुआत 19 सितम्बर, दिन मंगलवार को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से होगी। इस तिथि का समापन 20 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत 20 सितंबर को रखा जाएगा। ऋषि पंचमी की पूजा का मुहूर्त सुबह 11 बजकर 19 मिनट से 01 बजकर 45 मिनट तक है।
ऋषि पंचमी की पौराणिक कथा
सतयुग में वेद.वेदांग जानने वाला सुमित्र नाम का ब्राह्मण अपनी स्त्री जयश्री के साथ रहता था। वे खेती करके जीवन.निर्वाह करते थे। उनके पुत्र का नाम सुमति था, जो पूर्ण पंडित और अतिथि.सत्कार करने वाला था। समय आने पर संयोगवश दोनों की मृत्यु एक ही साथ हुई। जयश्री को कुतिया का जन्म मिला और उसका पति सुमित्र बैल बना। भाग्यवश दोनों अपने पुत्र सुमति के घर ही रहने लगे। एक बार सुमति ने अपने माता.पिता का श्राद्ध किया। उसकी स्त्री ने ब्राह्मण भोजन के लिए खीर पकाई, जिसे अनजान में एक सांप ने जूठा कर दिया। कुतिया इस घटना को देख रही थी। उसने यह सोच कर की खीर खाने वाले ब्राह्मण मर जायेंगे, स्वयं खीर को छू लिया। इस पर क्रोध में आकर सुमति की स्त्री ने कुतिया को खूब पीटा। उसने फिर सब बर्तनों को स्वच्छ करके दुबारा खीर बनाई और ब्राह्मणों को भोजन कराया और उसका जूठन जमीन में गाढ़ दिया। इस कारण उस दिन कुतिया भूखी रह गयी। जब आधी रात का समय हुआ तो कुतिया बैल के पास आई और सारा वृतान्त सुनाया। बैल ने दुःखी होकर कहा. ष्आज सुमति ने मुँह बाँधकर मुझे हल में जोता था और घास तक चरने नहीं दिया। इससे मुझे भी बड़ा कष्ट हो रहा है। सुमति दोनों की बातें सुन रहा था और उसे मालूम पड़ गया कि कुतिया और बैल हमारे माता.पिता हैं। उसने दोनों को पेट भर भोजन कराया और ऋषियों के पास जाकर माता.पिता के पशु योनि में जन्म लेने का कारण और उनके कल्याण का उपाय पूछा। ऋषियों ने उनके उद्धार के लिए ऋषि पंचमी का व्रत करने को कहा। ऋषियों की आज्ञा के अनुसार सुमति ने विधिपूर्वक श्रद्धा के साथ ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके फल से उसके माता.पिता पशु योनि से मुक्त हो गए।
ऋषि पंचमी व्रत विधि
20 सितंबर को ऋषि पंचमी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाए। इसके बाद घर और मंदिर की अच्छे से सफाई करें। इसके बाद पूजन की सामग्री जैसे धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि एकत्रित करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। चौकी पर सप्तऋषि की तस्वीर रखें। आप चाहें तो इस दिन अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं। अब उन्हें फल.फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद आरती करें और प्रसाद सभी में वितरित करें।