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उत्तराखंड का सिद्धबली मंदिर : भंडारे के लिए 2026 तक की सभी तारीखें बुक

उत्तराखंड का सिद्धबली मंदिर : भंडारे के लिए 2026 तक की सभी तारीखें बुक
सीएन, कोटद्वार। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में कोटद्वार के पास एक नदी बहती है खोह. खोह के विषय में मान्यता है कि यह वही कौमुदी नदी है जिसके तट पर स्न्नान और तपकर चन्द्रमा ने शिव को प्रसन्न किया. इस खोह नदी के किनारे पर स्थित है सिद्धबली मंदिर. सिद्धबली के जागर आज भी पूरे गढ़वाल में गाये जाते हैं. सिद्धबली मंदिर न केवल गढ़वाल बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े मान्यता प्राप्त मंदिरों में है.सिद्धबली मंदिर के प्रति लोगों की साथ का अंदाज केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि भक्तजन को मन्नत पूरी होने पर कराए जाने वाले भंडारे के लिये अगले आठ-दस साल का इंतजार करना पड़ता है. यह स्थिति तब है जब मंदिर समिति द्वारा एक दिन में जो जगह पर भंडारे आयोजित करने की व्यवस्था की गई है. मंदिर में शनिवार, मंगलवार और रविवार को होने वाले विशेष भंडारे के लिये अगले आठ दस साल तक कोई तारीख उपलब्ध नहीं है. एक रिपोर्ट के अनुसार मंदिर में प्रतिदिन भंडारे का आयोजन होता है. वर्तमान में स्थिति यह है कि भंडारे के आयोजन हेतु वर्ष 2026 तक की सभी तारीखें बुक हो चुकी हैं. सिद्धबली मंदिर के विषय में नाथ देवता सिद्ध गोरखनाथ और बंजरंगबलि हनुमान पूजे जाते हैं. इन दोनों के एक साथ पूजे जाने के कारण ही इसे सिद्धबलि मंदिर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सिद्ध गोरखनाथ ने भगवान हनुमान को वचनबद्ध किया था कि वह क्षण-प्रतिक्षण श्रीसिद्धबलि धाम के प्रहरी के रूप में विद्धमान रहेंगे. स्कंद पुराण के अध्याय 119 के छठे श्लोक में सिद्धबली मंदिर का वर्णन किया गया है. एक अन्य मान्यता अनुसार सिद्धबली कत्युर वंश के राजा के पुत्र थे, जिन्हें गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से सिद्धि प्राप्त हुई थी. इस कथा को उत्तर नारी नामक वेबसाईट में शीतल बहुखंडी कुछ इसप्रकार लिखती हैं–कत्युर वंश के राजा कुंवर की छह रानियां थी लेकिन संतान नहीं होने पर दुखी था. अपने ईष्ट गोरखनाथ से संतान प्राप्ति की मन्नत के लिए वह गोरछपीठ जा रहा था. रास्ते में उनको दो बड़ी भैंसें लड़ती नजर आई जिसे कोई छुड़ा नहीं पा रहा था. कुंवरपाल ने एक झटके में दोनों भैंसों को अलग-अलग दिशा में फेंक दिया. जिसकी वह भैंसें थी उसकी लड़की विमला ने भी पहले इन भैंसों की लड़ाई छुड़ाने के लिए उनको इसी तरह इधर-उधर फेंक दिया था. कहा जाता है कि उसी वक्त विमला के पिता ने इतने ही ताकतवर वर से उसका विवाह कराने की कही थी. विमला को राजा कुंवर को दे दिया गया. कुछ दिनों बाद विमला ने पुत्र को जन्म दिया. कहा जाता है कि छह रानियों ने ईर्ष्यावश साजिश रचकर रानी को पुत्र के साथ घर से बाहर निकलवा दिया. काफल ट्री से साभार

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