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धर्मक्षेत्र

पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है चंपावत का बालेश्वर मंदिर

पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है चंपावत का बालेश्वर मंदिर
अमृता पांडे, चंपावत।
उत्तराखंड का एक बहुत ही सुंदर शहर जिसे प्रकृति ने अद्भुत सौंदर्य से नवाजा है। सुन्दर चौरस खेत हैं। चम्पावत के रास्ते में विभिन्न प्रकार की वनस्पति प्रजातियां विद्यमान हैं। इसे कूर्म नगरी भी कहते हैं। भगवान विष्णु का कूर्म अवतार कूर्म पर्वत के शिखर पर ही होना बताया जाता है। वर्तमान में बोला जाने वाला शब्द कुमाऊं संस्कृत के कूर्म का ही अपभ्रंश है। कुमाऊ शब्द का जन्म चंपावत में ही हुआ था। 1560 तक चंद शासकों की राजधानी यहीं पर थी और फिर इसे अल्मोड़ा स्थानांतरित किया गया। कत्यूरी और गोरखाओं के शासन के बाद चंद राजवंश सत्ता में आया था। इस वंश के राजा कला और संस्कृति के प्रेमी थे अतः उनके शासनकाल में काफी कलात्मक और सांस्कृतिक बदलाव आए। चंपावत क्षेत्र का संबंध रामायण और महाभारत यानि द्वापर और त्रेता युग से भी रहा है। प्राचीन प्रतिष्ठित शिव मंदिरों के लिए जाने जाने वाले चंपावत में अनेक मंदिर हैं जो भगवान शिव और विष्णु को समर्पित हैं। यहां पर सात स्वर प्रतिष्ठित हैं। जिनमें सबसे पहला नाम आता है बालेश्वर का। अनुमानतः दसवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य बनाया गया यह मंदिर चंद्र शासकों की देन है। इसे कीर्ति चंद ने बनवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु और शिव को समर्पित है। यह बस स्टेशन के पास बाज़ार के मध्य में स्थित है जो भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित है। मंदिर के पास एक नौला भी है। शिखर शैली पर आधारित इस मंदिर का निर्माण बलुवा और ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है। बताया जाता है कि महाभारत काल में बाली के द्वारा यहां असुरों से सुरक्षा के लिए तप किया गया और तभी यह बालेश्वर कहलाया। मुख्य मंदिर में विष्णु जी की प्रतिमा है और साथ ही शिवलिंग का पूजन किया जाता है। इसके अलावा यहां पर छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। इस प्रांगण में चंपावती देवी का मंदिर भी है, जहां देवी की प्रतिमा हाथ में तलवार और त्रिशूल लिए हुए विराजमान है। चंपावती देवी को कत्यूरी राजाओं की अंतिम संतान माना जाता है। उनके पिता राजा अर्जुन देव ने काली कुमाऊं का यह क्षेत्र उन्हें उपहार में दिया था। वह साहसी और वीरांगना थीं। देवी को श्रंगार पिटारी अर्पित की जाती है। मंदिर की बाहरी दीवारों में ब्रह्मा,विष्णु, महेश और अन्य देवी देवताओं के चित्र गढ़े हुए हैं। बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान भीम ने इसका जीर्णोद्धार भी करवाया था। पौराणिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर स्थापत्य कला का भी अद्भुत नमूना है।
काफल ट्री से साभार

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