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30 जून से हैं चातुर्मास 2023 तिथियां और 23 नवंबर को समाप्त हो रही

30 जून से हैं चातुर्मास 2023 तिथियां और 23 नवंबर को समाप्त हो रही
सीएन, हरिद्वार।
चातुर्मास व्रत चार महीने की अवधि के लिए मनाया जाता है और यह आषाढ़ महीने में देवशयनी एकादशी के अगले दिन से शुरू होता है और कार्तिक महीने में देवोत्थान एकादशी पर समाप्त होता है। आषाढ़ मास 5 जून से लग रहा है और इस मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्‍णु श्रीर सागर में 5 महीने की योग निद्रा में चले जाते हैं। उसके बाद कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जाग जाते हैं। इस 5 महीने की अवधि में कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि नहीं किए जाते हैं। 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर चातुर्मास का समापन होगा। चातुर्मास 2023 तिथियां 30 जून से हैं और 23 नवंबर को समाप्त हो रही हैं। कई हिंदू समुदायों के लिए इसका बहुत महत्व है। महीने प्रार्थना, अनुष्ठान और पूजा के लिए समर्पित हैं और इसलिए विवाह, गृहप्रवेश और अन्य समान कार्य नहीं देखे जाते हैं। चातुर्मास आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन शुरू होता है और कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष में एकादशी पर समाप्त होता है। चातुर्मास में शुभ कार्य करने की मनाही होती है। इस बार सावन महीने में अधिक मास लगने के कारण सावन 59 दिनों का होगा। इस तरह सावन सोमवार भी 4 की जगह 8 होंगे। 5 महीने के लंबे चातुर्मास के कारण लोगों को मांगलिक कार्य करने के लिए भी 5 महीने का इंतजार करना होगा। चातुर्मास में शुभ कार्य करने की मनाही है। जैसे शादी-विवाह, मुंडन-जनेऊ, गृह-निर्माण, गृह-प्रवेश, नया वाहन खरीदना, नई प्रॉपर्टी खरीदना, नया व्यापार या काम शुरू करने जैसे शुभ कार्य नहीं होंगे। चातुर्मास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ, भूमि पूजन, तिलोकोत्सव समेत अन्य शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। ऐसे में इस बात का ध्यान रखना चाहिए। चातुर्मास में थाली में भोजन ना करके पत्तल में भोजन करना शुभ माना गया है।  इस मास में भूमि पर सोना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इसके भगवान की कृपा प्राप्त होती है। चातुर्मास के दौरान तुलसी की पूजा करनी चाहिए। साथ ही शाम के समय तुलसी के नीचे घी का दीया जलाना भी शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक चातुर्मास के दौरान तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दौरान इन चीजों का सेवन करने से अशुभ फल प्राप्त होता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु की उपासना अत्यधिक फलदायी होती है। माना जाता है कि चातुर्मास में श्रीहरि की उपासना करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। चातुर्मास में झूठ नहीं बोलना चाहिए। इस दौरान किसी से लड़ाई-झगड़े भी नहीं करने चाहिए। मान्यता है कि इस दौरान ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त नहीं होती है। चातुर्मास के दौरान तेल, बैंगन, साग, शहद, मूली, परवल, गुड़ इत्यादि खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
पौराणिक कथा-बालि संग पाताललोक में करते हैं निवास
एक मत यह है कि वे क्षीर सागर में ही निंद्रा में होते हैं और दूसरा मत यह है कि वो पाताललोक में बालि के यहां निवास करते हैं जिन्हे संकर्षण विष्णु कहा जाता है। दरअसल जब विष्णु ने वामन अवतार लिया तो बालि से उन्होंने तीन पग भूमि मांगी। दो पग में उन्होंने पूरा संसार मापकर तीसरा पग बालि के सिर पर रखकर उसे पाताल भेज दिया, लेकिन वरदान के रूप में बालि ने विष्णु को ही मांग लिया। वरदान के कारण स्वयं विष्णु जब पाताल में बालि के साथ चले गए तो सभी मंगल कार्य बंद हो गए। इसके बाद खुद लक्ष्मी ने बालि को राखी बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन लिया। तभी से विष्णु चार महीने बालि के पास निवास करने लगे और उन चार महीनों को चार्तुमास कहा जाने लगा। माना जाता है कि इन चार महीनों में शिव स्वयं सृष्टि की देखभाल करते हैं। एक दूसरी कथा के अनुसार योग माया जोकि सृष्टि का संचालन करती हैं, उन्होंने श्रीविष्णु से कहा कि आप मुझे भी अपने शरीर में स्थान दें। योग निंद्रा भगवान विष्णु के सृष्टि संचालन में उनकी सहायता करती हैं तो श्रीविष्णु उनसे मना नहीं कर पाए। श्रीविष्णु ने योग निंद्रा को आँखों में स्थान दे दिया और इसी मत के अनुसार इन महीनों में श्रीविष्णु रहते तो क्षीर सागर में ही है लेकिन वो योग निंद्रा में चले जाते है जिसके कारण कोई भी मांगलिक कार्य संभव नहीं है।

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