धर्मक्षेत्र
श्री हेमकुंड साहिब के कपाट 25 मई को खुलेंगे, यात्रियों में उत्साह, तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू
श्री हेमकुंड साहिब के कपाट 25 मई को खुलेंगे, यात्रियों में उत्साह, तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू
सीएन, जोशीमठ। सिख समुदाय के पवित्र तीर्थस्थल श्री हेमकुंड साहिब के कपाट आगामी 25 मई, 2025 को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब ट्रस्ट ने इस वर्ष की तीर्थयात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। इस खबर से देश और दुनिया भर के सिख श्रद्धालुओं में भारी उत्साह का माहौल है। समुद्र तल से लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित श्री हेमकुंड साहिब चमोली जिले के हिमालयी क्षेत्र में बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित है और यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण, इस तीर्थ स्थल के कपाट सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद कर दिए जाते हैं और गर्मियों में ही खोले जाते हैं। गुरुद्वारा ट्रस्ट के अधिकारियों ने बताया कि कपाट खुलने की तिथि तय होने के बाद यात्रा मार्ग पर बर्फ हटाने और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। प्रशासन भी तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए प्रतिबद्ध है। श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा एक कठिन चढ़ाई वाली यात्रा है, लेकिन श्रद्धालुओं की अटूट आस्था उन्हें इस दुर्गम रास्ते पर भी खींच लाती है। झील के किनारे स्थित गुरुद्वारे का शांत और आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को अद्वितीय शांति और सुकून प्रदान करता है। इस वर्ष भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। ट्रस्ट ने तीर्थयात्रियों से मौसम की जानकारी लेकर और उचित तैयारी के साथ यात्रा करने की अपील की है। श्रद्धालुओं को गर्म कपड़े, रेनकोट और आवश्यक दवाएं साथ रखने की सलाह दी गई है। इसके अतिरिक्त, यात्रा के दौरान स्वास्थ्य संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करने का भी अनुरोध किया गया है। श्री हेमकुंड साहिब के कपाट खुलने की खबर ने सिख समुदाय में एक नई ऊर्जा का संचार किया है और सभी बेसब्री से 25 मई का इंतजार कर रहे हैं। यह तीर्थयात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का अनुभव करने का भी एक अवसर है। मालूम हो कि हेमकुंड साहिब चमोली जिला उत्तराखंड में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर की ऊँचाई पर एक बर्फीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं। इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ रास्ता पर पड़ते गोविंदघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब सुशोभित है।
श्री हेमकुंड साहिब का इतिहास
इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं। हेमकुंड साहिब के इतिहास का पता सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह की आत्मकथा से हैं। उनकी आत्मकथा में यह स्थल लगभग दो आदिवासियों से अज्ञात और दुष्टों के बारे में बताया गया है। यहां के स्थानीय निवासी इस झील के प्रति आस्था रखते थे। संतोख सिंह 1787-1843 जो एक सिख इतिहासकार और कवि थे। उन्होंने अपनी शानदार कल्पना के साथ दुष दामन की कहानी का वर्णन किया है। जिसका अर्थ है दुष्टों का वशीकरण होता है। यह भी माना जाता है कि इसी स्थान पर गुरु गोविंद सिंह ने ध्यान किया था। सिख समुदाय के सामूहिक प्रयास से यहां एक भव्य गुरु बनाया गया था, जिसे वर्तमान में हेमकुंड में साहिब गुरु के नाम से जाना जाता है।
