धर्मक्षेत्र
पहाड़ के कलाकारों की पहली पाठशाला हैं रामलीला का मंच
पहाड़ के कलाकारों की पहली पाठशाला हैं रामलीला का मंच
सीएन, नैनीताल। इन दिनों शारदी नवरात्रों के दौरान रामलीला का मंचन की पूरे उत्तराखंड में धूम मची हुई है। रामलीला का मंचन पहाड़ में खूब होता है। पूरा दिन पहाड़ में हाड़ तोड़ने के बाद रात की हल्की ठंड में होने वाली ये रामलीलायें दिन भर की थकान को मिटाने का काम करती हैं। इन रामलीलाओं में दर्शकों की संख्या बताती है की यहां के समाज में रामलीला का कितना महत्त्व है। पहाड़ में कला के प्रति झुकाव रखने वाले हर शख्स के लिये स्कूलों में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम नींव का काम करते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं कि 15 अगस्त को होने वाला सांस्कृतिक कार्यक्रम पहाड़ के कलाकारों के मन में कला बीज बोता है। रामलीला के मंच पर यह बीज अंकुरित होता है। कला के क्षेत्र में रूचि रखने वाले पहाड़ी के जीवन में रामलीला के मंच एक उर्वरक भूमि की तरह कार्य करते हैं। रामलीला के इन मंचों से राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय स्तर के कलाकार दिये हैं। पहाड़ से जुड़े किसी भी कलाकार से पूछिये एक बात सभी के पास समान होती है कि उनकी कला में रामलीला का योगदान। अभिनय में रुचि रखने वाले कलाकारों का सफ़र तो रामलीला में बंदर से शुरु होता हैं बंदर से, रावण का सैनिक, शत्रुघ्न, भरत, लक्ष्मण और राम तक कलाकार का सफ़र उसे एक परिपक्व कलाकार बनाता हैं। रावण का किरदार अक्सर मझे हुये कलाकारों को ही मिलता है। ताड़का, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि के किरदारों के लिये कलाकारों के बीच ख़ासी होड़ रहती है। सीता स्वयंवर की रात कौन भूल सकता है। पहाड़ के मसखरे इस दिन स्वयंवर में अपनी कला का प्रदर्शन करते। पहाड़ में आज भी हजारों ऐसे किरदर हैं जिन्हें स्वयंवर के दिन अपने हास्य के लिये जीवनपर्यन्त याद रखा जाता है। वर्तमान में गुरु-शिष्य परम्परा का यह अद्भुत उदाहरण है। दशकों से चली आ रही इन रामलीलाओं में पुराने कलाकार अपने साथ नये कलाकारों को तराशने का भी काम करते हैं। नतीजतन पुराने कलाकारों के बीच नये कलाकारों की एक स्वतः पौध तैयार हो जाती है।
राम हों या रावण, यहां गाकर संवाद बोलते हैं हर किरदार
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आयोजित होने वाली रामलीलाएं अपने गायन भरे संवादों के लिए खासतौर पर पहचानी जाती हैं। उठो वीर रणवीर सेना सजाओ, अटल मार रण में मचाओ-मचाओ/आगे से महावीर जी को पठाकर/पीछे से कोसों की सेना सजाकर…..उत्तराखंड की रामलीलाओं का यह प्रसिद्ध संवाद जब मंच पर गायक सुनाया जाता है तो दर्शक भी साथ.साथ गाने लगते हैं। असल में पहाड़ी समाज में रामलीलाओं का पुरानी इतिहास रहा है। घर.घर बड़े.बूढ़ों को रामलीलाओं के ये संवाद याद रहते हैं। उत्तराखंड के जाने.माने संस्कृतिविद प्रफेसर दाताराम पुरोहित उत्तराखंड की रामलीलाओं की खूबियां बताते हुए कहते हैं, जो एक बात देश के बाकी हिस्सों से इसे अलग करती है इसकी गायिकी का अंदाज। उत्तराखंडी रामलीलाओं में राम से लेकर रावण तक, शूर्पणखा से लेकर शबरी तक को गाकर संवाद करने होते हैं। यही वजह है कि जिन कलाकारों की आवाज अच्छी होती है, अमूमन उन्हें ही चुना जाता है। एक तरह से उत्तराखंडी रामलीलाओं में अभिनय गौण रहता है। दूसरी बात कि इन रामलीलाओं में कलाकारों को बहुत कड़े अनुशासन में रहना होता है। नियमित स्नान, ध्यान, प्याज लहसुन तक का त्याग करना होता है। अल्मोड़ा में तो राम.सीता का किरदार ही 12-13 वर्ष के किशोरों से करवाया जाता है। तीसरी बात अहम बात यह है कि इन रामलीलाओं में स्थानीय धुनें बहुत होती हैं। संस्कृत के श्लोक सुनने को मिलते हैं।
काफल ट्री व नभाटा से साभार