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धर्मक्षेत्र

लाखामंडल का महाभारतकालीन शिव मंदिर : मरा हुआ इंसान भी हो जाता है जिन्दा

लाखामंडल का महाभारतकालीन शिव मंदिर : मरा हुआ इंसान भी हो जाता है जिन्दा
सीएन, चकराता।
लाखामंडल स्थान यमुनोत्री मार्ग पर पड़ता है और यह स्थान देहरादून जिले की चकराता तहसील के अंतर्गत आता है। लाखामंडल से यमुनोत्री की दूरी मात्र 75 किलोमीटर है। समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लाखामंडल, जौनसार-बावर क्षेत्र में पड़ता है। लाखामंडल, ठीक यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। यह स्थान महादेव शिव के अनोखे मंदिर के लिए जाना जाता है और यहां जगह-जगह पर शिवलिंग और मूर्तियां देखने को मिल जाती हैं। समय-समय पर यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा खुदाई में हज़ारों अवशेष मिले हैं। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर नगर शैली में बना हुआ है। माना जाता है कि लाखामंडल में स्थित मुख्य शिव मंदिर का निर्माण बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में हुआ था। लेकिन मंदिर परिसर में ही प्राप्त छठी शताब्दी के एक अभिलेख के अनुसार मंदिर का निर्माण सिंहपुर राजघराने की राजकुमारी ईश्वरा ने करवाया था। यह मंदिर राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति जो जालंधर के राजा के पुत्र थे, के निधन पर उनकी सद्गति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए बनवाया था। कहा जाता है कि इसी जगह दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह अर्थात लाख का मंदिर बनाया था। इसके बाद पांडव देव कृपा से एक गुफा में होते हुए इस लाक्षागृह से बाहर निकले थे। जहाँ से पांडव बाहर निकले वह चित्रेश्वर नाम की वह गुफा शिव मंदिर से 2 किमी की दूरी पर ही लाखामंडल गाँव के निचले हिस्से में मौजूद है। किवदंती है कि इसी लिए युधिष्ठिर ने इस जगह पर मंदिर बनवाया ताकि शिव-पार्वती की शक्तियों का शुक्रिया अदा कर सकें। लाखामंडल में आज भी महाभारत काल के अवशेष, चिन्ह और दुर्लभ मूर्तियां देखने को मिल जाती है। इसके साथ ही माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग को एक गाय ने खोजा था। गाय यमुना नदी पार कर हर रोज शिवलिंग पर आकर दूध की धार से अभिषेक करती और शिवलिंग की परिक्रमा करती थी। मंदिर में दो मूर्तियां हैं जिनके पीछे की पौराणिक कथा यह है कि जब राजा दक्ष द्वारा आयोजित विशाल हवन में मां सती का अपमान हुआ था तब मां सती ने हवन में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। जिसके बाद क्रोधित महादेव शिव ने आने शरीर को मला, जिससे वीर और भद्र प्रकट हुए थे। सतयुग में ये वीर-भद्र माने गए। त्रेतायुग में ये जय-विजय माने गए। द्वापरयुग में ये द्वार-पाल नाम से जाने गए और कलयुग में ये देव-दानव का रूप हैं। जिन्हें आज उनके माथे के निशान और मुकुट से पहचाना जा सकता है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि इस ग्राम पट्टी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी हस्तियों के मरने पर उनके मृत शरीर को यहां लाकर देव-दानव की मूर्तियों के बीच रखा जाता था। इसके बाद पंडित जी मंत्र जाप के बाद पवित्र जल मृत शरीर पर छिड़कते जिससे मृत शरीर में भी थोड़ी देर के लिए जान आ जाया करती। फिर पंडित जी अपने हाथ से उन्हें दूध-भात खिलाते, जिसके बाद वह शरीर मोक्ष की प्राप्ति करता। यही वजह थी की इस स्थान का नाम पहले “मणा” हुआ करता था। बाद में यहाँ खुदाई के बाद कई शिवलिंग और मूर्तियां मिलीं, जिसके बाद यहाँ का नाम लाखामंडल पड़ा। मंदिर के पश्चिमी हिस्से में मौजूद 2 मूर्तियाँ द्वारपालों, जय, विजय, की कही जाती हैं। इस बारे में मान्यता है कि इन मूर्तियों के सामने किसी मृतक व्यक्ति को रख देने पर पुजारी उसके ऊपर गंगाजल छिड़क देते थे और वह व्यक्ति जी उठता था। जीवित होते ही वह शिव का नाम लेता था और उसके मुंह में गंगाजल डाला जाता और वह पुनः शरीर त्यागकर स्वर्ग चला जाता था। कहते हैं कि एक दफा एक स्त्री ने जिंदा हो चुके अपने पति को यहाँ से ले जाने की कोशिश की उसका बाद से यह चमत्कार नहीं हुआ है। केदारनाथ की ही शैली में बने इस शिवमंदिर के गर्भगृह में शिव, पार्वती के अलावा काल भैरव, कार्तिकेय, सरस्वती, गणेश, दुर्गा, विष्णु, सूर्य, हनुमान आदि भगवानों की मूर्तियाँ मौजूद हैं। इसके अलावा यहाँ पर युधिष्ठिर समेत पंचों पांडवों की भी मूर्तियाँ मौजूद हैं। इस मंदिर में मौजूद मूर्तियों को देखकर इसके भव्य संग्रहालय होने का भान होता है। मंदिर के विशाल परिसर में भी ढेरों मूर्तियाँ, लघु शिवालय और शिवलिंग बिखरे हुए हैं। संरक्षण के अभाव में कई मूर्तियाँ नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी हैं और कई खंडित होकर बिखरी हुई हैं। आज यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है लेकिन हालत बुरे ही कहे जायेंगे।

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