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आज 29 जुलाई को तीन साल में आने वाली पुरुषोत्तम एकादशी, क्या है कथा

आज 29 जुलाई को तीन साल में आने वाली पुरुषोत्तम एकादशी, क्या है कथा
सीएन, हरिद्वार।
प्रत्येक तीसरे वर्ष पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली पुरुषोत्तमी एकादशी जिसे कमला या पद्मनी एकादशी भी कहते हैं जो इस बार 29 जुलाई, शनिवार को है। इस तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तम तिथियों में से एक कहा है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में वृद्धि होती है और भगवान विष्णु के साथ श्रीमहालक्ष्मी जी की अनुकूल कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार कमला एकादशी व्रत करने से संतान, यश और वैकुंठ की प्राप्ति होती है। इस दिन घर में जप करने का एक गुना, गौशाला में जप करने पर सौ गुना, पुण्य क्षेत्र तथा तीर्थ में हजारों गुना, तुलसी के समीप जप-तथा जनार्दन की पूजा करने से लाखों गुना, शिव तथा विष्णु के क्षेत्रों में करने से करोड़ों गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता क्षीरसागर में शेषनाग शैया पर विराजमान  भगवान श्री हरि विष्णु की उपासना करनी चाहिए। पूजा स्थल के ईशान कोण में एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान रखें एवं इस पर जल कलश स्थापित कर इसे आम या अशोक के पत्तों से सजाएं। तत्पश्चात भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर पीले पुष्प,ऋतुफल,तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप व कपूर से भगवान विष्णु की आरती करें। इस दिन विष्णुजी के मंदिर एवं तुलसी के नीचे दीपदान करना बहुत शुभ माना गया है। इस दिन हरि भक्तों को परनिंदा,छल-कपट,लालच,द्वेष की भावनाओं से दूर रहकर श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए यथाशक्ति विष्णुजी के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना चाहिए।
पुरुषोत्तम एकादशी की कथा
कथा के अनुसार उज्जयिनी नगरी में शिवशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे उनके पाँच पुत्र थे। उनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम जयशर्मा था जो धर्मभ्रष्ट होकर पाप मार्ग की ओर चल पड़ा जिसके कारण उसके माता पिता और बंधु बांधव अत्यंत दुखी रहने लगे। उसका कुमार्ग इतना प्रबल हो गया कि स्वजनों ने उसका परित्याग कर दिया। बुरे कर्मों में लीन रहने के कारण कुछ काल के पश्चात माता-पिता ने भी उसे घर से निकाल दिया। वह वन की ओर चला गया और घूमते घूमते एक दिन तीर्थराज प्रयाग जा पहुंचा। भूख से व्याकुल उसने त्रिवेणी में स्नान किया और निकट ही हरिमित्र मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। वहां पर ब्राह्मणों द्वारा सभी पापों का नाश करने वाली ‘कमला’ एकादशी की महिमा सुनी जो परम पुण्यमयी तथा भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। जयशर्मा ने भी विधि पूर्वक कमला एकादशी की कथा सुनकर मुनियों के आश्रम में ही व्रत किया जब आधी रात हुई तो भगवती श्रीमहालक्ष्मी उसके पास आकर बोलीं, हे ब्राम्हण पुत्र ! कमला एकादशी व्रत के उत्तम प्रभाव से मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं और देवाधिदेव श्रीहरि की आज्ञा पाकर बैकुंठधाम से तुम्हें वर देने आई हूँ। जयशर्मा ने कहा कि मां यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो वह व्रत बताइए जिसकी कथा में साधु संत हमेशा संलग्न रहते हैं। श्रीमहालक्ष्मी ने कहा- हे ब्राह्मण ! एकादशी व्रत का माहात्म्य श्रोताओं के सुनने योग्य सर्वोत्तम विषय है यह पवित्र वस्तुओं में सबसे उत्तम है। इससे सभी पापकर्मों का नाश होता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। जो पुरुष श्रद्धा पूर्वक इस एकादशी का व्रतपालन तथा माहात्म्य का श्रवण करता है वह समस्त महापातकों से भी तत्काल मुक्त हो जाता है।

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