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आज धनतेरस व दीवाली की रात में करें कुबेर की यंत्र के रूप में  पूजा : आयेगी धन, वैभव, सुख, समृद्धि

आज धनतेरस व दीवाली की रात में करें कुबेर की यंत्र के रूप में  पूजा: आयेगी धन, वैभव, सुख, समृद्धि
सीएन, हरिद्वार।
हिंदू पौराणिक मान्यताओं में कुबेर को धन, वैभव, सुख, समृद्धि का देवता माना जाता है। कुबेर की पूजा धन और सुख.समृद्धि के लिए की जाती है। खासकर दीवाली की रात में इनकी पूजा करने का विधान है। कुबेर की पूजा आमतौर पर यंत्र के रूप में की जाती है जबकि उनकी मूर्तियाँ नहीं होतीं। कुबेर का स्वरूप पीला होता है और उनके एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में धन देने वाली मुद्रा होती है। कुबेर का निवास स्थान कैलाश पर स्थित अलकापुरी राज्य में है जहाँ वे सर्वोच्च रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। जो भी व्यक्ति धन संबंधी कार्य करता है या धन की इच्छा रखता है, उनके लिए कुबेर एक अहम देवता हैं। माँ लक्ष्मी सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं लेकिन कुबेर धन के देवता माने जाते हैं। मान्यता है कि कुबेर, यह धन के देवता होने के साथ यक्षों के भी देवता हैं और पृथ्वी के भीतर छिपे खजाने की देख.रेख भी करते हैं। भगवान कुबेर की पूजा घरों में जरूर होती हैं लेकिन इनकी मूर्तियाँ नहीं होती, बल्कि ज्यादातर यंत्र के रूप में इनकी पूजा होती है। यह यन्त्र बेहद शक्तिशाली माना जाता है और सुख.समृद्धि प्रतीक भी होता है। हिन्दू धर्म में अगर कुबेर के स्वरूप की बात करें तो कुबेर का पेट काफी बड़ा दिखाया गया है, जैसे एक संपन्न सेठ को फिल्मों में दिखाया जाता है। इनके शरीर का रंग पीला है और ये किरीट, मुकुट आदि आभूषण धारण करते हैं। इनके एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ धन देने वाली मुद्रा में रहता है। इनका वाहन पुष्पक विमान है लेकिन कई बात इन्हें पालकी पर विराजित दिखाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष माने जाते हैं। गंधमादन पर्वत पर स्थित संपत्ति का चौथा भाग इनके नियंत्रण में है और उसमें से सोलहवां भाग ही मानवों को दिया गया है। कुबेर नौ निधियों के अधिपति जो हैं, जिसके अंतर्गत पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्चस निधियां आती हैं। कथाओं के अनुसार भगवान कुबेर पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण थे। ब्राह्मण के रूप में वो न केवल कई गुणों से आभूषित थे बल्कि धर्मात्मा भी थे, लेकिन कुसंगति में पड़कर धीरे-धीरे सारे अच्छे गुण अवगुणों में परिवर्तित गये। उनके इन अवगुणों से उनके पिता अज्ञान थे, परंतु उनकी माता इस सभी कार्यों से भली.भाँति परिचित थी और जानती थी कि उनका पुत्र किस प्रकार गलत राह पर चल रहा है। लेकिन पुत्र मोह के कारण यह बात उन्होंने अपने पति को नहीं बताई। अवगुणों के कारण कुबेर जी ने ब्राह्मण के रूप में अपनी सारी पैतृक संपति का नाश कर दिया। एक दिन उनके पिता को उनके दुष्कर्मों का पता चला। पिता के क्रोध एवं भय से कुबेर घर छोड़कर भाग कर शिव मंदिर में जा छिपे। उस दिन शिवरात्रि थी, इसलिये मंदिर में शिव भक्त शिवरात्रि का पूजन और प्रसाद के साथ विधि-विधान से पूजा कर रहे थे। घर से भागने से और पूरे दिन भूख-प्यास से परेशान रहने के कारण प्रसाद देखकर कुबेर की भूख और ज्यादा बढ़ गई। रात्रि काल में शिव भक्तों के सो जाने के बाद उन्होंने बार बार दीपक जलाकर प्रसाद ढूंढने की कोशिश की। वो बार-बार दीपक जलाते, लेकिन हवा के झोंके के कारण वो बुझ जाता। उनके इस प्रयास से पास में सो रहे मंदिर के पुजारी की नींद खुल गयी और उन्होंने चोर समझकर कुबेर को पकड़ने का प्रयास किया लेकिन इस पकड़ा-पकड़ी में कुबेर की मृत्यु हो गयी। कुबेर को ले जाने जब यमदूत आये, तो शिव जी भी वहाँ पहुंचे और उन्होंने कुबेर को कहा कि तुमने बहुत पाप किये हैं लेकिन धन त्रयोदशी के दिन तुमने मेरे दीपक को बुझने से बचाया है, इसलिए अगले जन्म में तुम धन के राजा बनोगे। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि कुबेर के पिता विश्रवा एवं पितामह प्रजापति पुलस्त्य हैं। कुबेर की पत्नी का नाम भद्रा है और नाल कुबेर और मणीग्रीव उनके पुत्र हैं। कुबेर कैलाश पर स्थित अलकापुरी राज्य में सभा में सर्वोच्च रत्न जडि़त सिंहासन पर विराजते हैं और वहीं उनका निवास स्थान भी है। आपके पास श्री कुबेर की मूर्ति है तो वह पूजा में उपयोग की जा सकती है। अगर आपके पास कुबेर की मूर्ति नहीं है तो उसके बदले आप तिजोरी या गहनों के बक्से को श्री कुबेर के रूप में मानिये और उसकी पूजा कीजिये। तिजोरी, बक्से आदि की पूजा से पहले सिन्दूर से स्वस्तिक.चिह्न बनाना चाहिए और उस पर मौली बाँधना चाहिये। सर्व प्रथम निम्नलिखित मन्त्र द्वारा श्री कुबेर का ध्यान करें।
 भगवान् श्रीकुबेर का ध्यान करने के बाद तिजोरी-बक्से आदि के सम्मुख आवाहन.मुद्रा दिखाकर, निम्न मन्त्र का वाचन करें।
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी कुबेराय नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
ॐ यक्षा राजाया विद्महे, वैश्रवणाय धीमहि, तन्नो कुबेराह प्रचोदयात्ः
ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वरायः नमः
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट.लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट्  
 स्वाहा ।।
।। ॐ श्रीं गं गणाधिलक्ष्मयै कुबेराय श्रीं ॐ फट् ।।

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