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आज है संकष्टी चतुर्थी, अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत 2023, पूजा विधि, महत्व, कथा

आज है संकष्टी चतुर्थी, अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत 2023, पूजा विधि, महत्व, कथा
सीएन, प्रयागराज।
माता पार्वती के पुत्र गणपति को पूरी दुनिया में प्रथम पूजनीय का दर्जा प्राप्त है। कोई भी शुभ कार्य के लिए सबसे पहले गणेश जी की ही आराधना की जाती है। गणेश जी संकटमोचन, विघ्नहर्ता है। कहते है कोई भी परेशानी, तकलीफ, संकट में इनकी आराधना करने से परेशानियों का अंत हो जाता है। गणेश जी का व्रत बहुत फलदायी होता है, ये हर चतुर्थी को रखा जाता है। हिन्दू पंचाग के अनुसार हर महीने में 2 चतुर्थी आती है विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी। हर महीने के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन विनायक चतुर्थी आती है, एवं हर महीने के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन संकष्टी चतुर्थी आती है, संकष्टी चतुर्थी का व्रत भारत में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिमी व दक्षिणी भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी को संकट चौथ, संकटहरा चतुर्थी और गणेश संकष्टी चौथ भी कहते है। वैसे कुछ लोग हर महीने की संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते है, लेकिन हिन्दू मान्यता के अनुसार भादों माह की संकष्टी चतुर्थी का बहुत महत्व है। क्योकि भादों माह की आने वाली संकष्टी चतुर्थी को बहुला चौथ कहा जाता है, जिसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। साथ ही भादों माह में आने वाली विनायक चतुर्थी देश भर में गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जिसे गणेश चतुर्थी भी कहते है। संकष्टी नाम से ही पता चलता है, इसका मतलब है संकट हरने वाली। इस व्रत के रहने से किसी भी तरह की परेशानी दूर होती है, जीवन में सुख शांति आती है। इस व्रत को कोई भी गणेश जी का विश्वासी रख सकता है। इस व्रत को रखने वाले को अच्छी बुद्धि, जीवन में सुख सुविधा मिलती है। सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर लें। इस दिन पूरा दिन का उपवास रखा जाता है, शाम की पूजा के बाद भोजन ग्रहण करते है। स्नान के बाद गणेश जी की पूजा आराधना करेंए गणेश जी के मन्त्र का उच्चारण करें। पूरा दिन बिना पानी व खाने के उपास रखा जाता हैए जो ये कठिन उपवास नहीं कर सकते हैं, वे दिन में साबूदाना, आलू मूंगफली, मिठाई खा सकते है। शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा की जाती है, अगर बादल के चलते चंद्रमा नहीं दिखाई देता है तो, पंचाग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें। शाम की पूजा के लिए गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति बनायें। गणेश जी के बाजु में दुर्गा जी की भी फोटो रखें। इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी जाती है।इसे धुप, दीप, अगरबत्ती, फूल से सजाएँ। प्रसाद में केला, नारियल रखें। साथ ही गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर रखें। इस दिन गुड़ व तिली के मोदक बनाये जाते है। गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ मिनट का ध्यान करें व कथा सुने, फिर आरती करके, प्राथना करें। इसके बाद चन्द्रमा की पूजा करें उसे जल अर्पण कर, फूल, चन्दन चढ़ाएं। चन्द्रमा की दिशा में चावल चढ़ाएं। पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है। गरीबों को दान भी किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
शिव पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। पार्वती को चोपड़ खेलने का मन किया, उस समय उन दोनों के अलावा वहां कोई नहीं था, तो खेल में हार जीत का फैसला कौन करेगा यह सोच कर, पार्वती ने मिट्टी, घास से एक मूरत बनाई और उसमें जान फूंक दी। उन्होंने उस बालक से बोला कि तुम खेल का फैसला करना। खेल शुरू हुआ 3-4 बार खेलने के बाद हर बार जीत पार्वती की हुई। लेकिन भूलवश बालक ने शिव का नाम ले लिया। पार्वती जी क्रोधित होकर उसे लंगड़ा बना देती है। बालक उनसे माफ़ी मांगता है और उपाय पूछता है। ममतामयी माता पार्वती उसे बताती है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन यहाँ कुछ कन्यायें गणेश की पूजा करने आती है, तुम उनसे व्रत की पूजा विधि पूछना और इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रखना। कुछ समय बाद संकष्टी व्रत के दिन वहां कन्यायें आती है, जिनसे वो बालक व्रत की विधि पूछकर व्रत रखता है। व्रत के कुछ समय बाद गणेश जी उसे दर्शन देकर वरदान मांगने को बोलते है। बालक अपने माता पिता शिव पार्वती के पास जाने को बोलता है। गणेश जी तथास्तु बोलकर चले जाते है। बालक तुरंत शिव के पास पहुँच जाता है। उस समय पार्वती शिव से रूठकर कैलाश छोड़ कर चली जाती है। शिव उस बालक से श्राप मुक्त कैसे हुआ ये पूछते है। वो सब बताता है, तब शिव भी पार्वती को वापस बुलाने के लिए यह व्रत रखते है। कुछ समय बाद पार्वती का मन में अचानक से वापस जाने की बात आ जाती है, और वे खुद वापस कैलाश आ जाती है। इस तरह ये कथा ये बताती है कि गणेश व्रत किस तरह हमारी मनोकामना पूरी होती है और सारे संकट दूर होते है।

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