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आज 22 जून को है आषाढ़ मास का अंतिम चतुर्थी व्रत, जानिए तिथि, कथा

आज 22 जून को है आषाढ़ मास का अंतिम चतुर्थी व्रत, जानिए तिथि, कथा
सीएन, प्रयागराज। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत 22 जून 2023, गुरुवार के दिन रखा जाएगा। विनायक चतुर्थी व्रत के दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा करने का विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन गणपति जी की पूजा करने से जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं, विनायक चतुर्थी व्रत के दिन पूजा का शुभ समय और महत्व।
चतुर्थी व्रत 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 21 जून को दोपहर 03:09 पर होगी और इस तिथि का समापन 22 जून को शाम 05:27 पर हो जाएगा। ऐसे में विनायक चतुर्थी व्रत 22 जून 2023 के दिन रखा जाएगा। बता दें कि इस दिन हर्षण योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही इस विशेष दिन पर रवि योग भी बन रहा है।
हर्षण योग- 23 जून सुबह 03:32 तक
रवि योग- शाम 06:01 से जून 23 सुबह 04:18
पूजन विधि-

विनायक चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें। पूजन के समय अपने सामर्थ्यनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित शिव-गणेश प्रतिमा स्थापित करें। संकल्प के बाद विघ्नहर्ता श्री गणेश का पूरे मनोभाव से पूजन करें। फिर अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र चावल आदि चढ़ाएं। ‘ॐ गं गणपतयै नम: मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। अब श्री गणेश को मोदक का भोग लगाएं। इस दिन मध्याह्न में गणपति पूजा में 21 मोदक अर्पण करते हुए, प्रार्थना के लिए निम्न श्लोक पढ़ें-
विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक। कार्यं मे सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि।’ पूजन के समय आरती करें। गणेश चतुर्थी कथा का पाठ करें। अपनी शक्तिनुसार उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें। इस दिन श्री गणेश चालीसा, गणेश पुराण, गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, श्री गणेश स्तोत्र, संकटनाशक गणेश स्त्रोत, गणपति अथर्वशीर्ष आदि का पाठ करें।
चतुर्थी की कथा-
चतुर्थी की कथा के अनुसार एक दिन भगवान शिव स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती जी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं, किसी को भी अंदर नहीं आने देना। भोगवती में स्नान कर जब भोलेनाथ अंदर आने लगे तो बालस्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वे घर के अंदर चले गए। शिव जी जब घर के अंदर गए तो वे बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वे नाराज हैं इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। दो थालियां लगीं देखकर शिव जी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब पार्वती जी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया है। इतना सुनकर पार्वती जी दु:खी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने शिव जी से पुत्र गणेश का सिर पुन: जोड़ कर जीवित करने का आग्रह किया। तब शिव जी ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ से काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं।
 मंत्र-
 1. ‘ॐ वक्रतुंडा हुं।’
2. ‘श्री गणेशाय नम:’। ।
3. ‘ॐ गं गणपतये नम:।’
4. वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा।
5. ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।’
6. एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
7. ‘ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा।’
 महत्व-

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी और अमावस्या के पश्चात की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। श्री गणेश विघ्नहर्ता है, यानी सभी दुखों को हरने वाले देवता। अत: गणपति देव की कृपा से जीवन के असंभव कार्य भी सहजता से पूर्ण हो जाते हैं। मान्यतानुसार इस दिन व्रत रखने तथा गणेश पूजन करने तथा चतुर्थी कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। किसी भी चतुर्थी के दिन विधिपूर्वक गणेश आराधना एवं पूजन करने से वे प्रसन्न होकर शुभाशीष देते हैं। इसीलिए चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता हैं। इस दिन मध्याह्न के समय में श्री गणेश का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गणेश उपासना से सुख-समृद्धि, धन-वैभव, ऐश्वर्य, संपन्नता, बुद्धि की प्राप्ति एवं वाणी में मधुरता आती है तथा गणेश के मंत्र जाप से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है।

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