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आज है श्रावण पूर्णिमा 2023 : भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ना शुभ
आज है श्रावण पूर्णिमा 2023: भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ना शुभ
सीएन, पयागराज। श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावण पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार भी मनाया जाता है। इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा का आरंभ होता है। इस दिन कई लोग भगवान सत्यनारायण की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्रवर्ष के हर माह का नामकरण उस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा की स्थिति के आधार पर हुआ है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है श्रवण। श्रावण माह की पूर्णिमा को बहुत ही शुभ और पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन की गई पूजा से भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। श्रावण पूर्णिमा का विशेष महत्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण भी किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा को हिंदू संस्कृति में अत्यधिक शुभ दिन माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा पर किए जाने वाले विभिन्न अनुष्ठानों का बहुत महत्व है। इस दिन उपनयन और यज्ञोपवीत की रस्में निभाई जाती है। इस दिन ब्राह्मण शुद्धिकरण का अनुष्ठान भी करते हैं। चंद्रदोष से मुक्ति के लिए भी यह तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है। श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाले हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं। इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है। इस दिन देशभर में विशेषकर उत्तर भारत में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस पर्व के कई नाम है। श्रावण पूर्णिमा के दिन भिखारियों को पैसे और कपड़ों का दान दिया जाता है।
श्रावण मास की पूर्णिमा पर वैसे तो विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कर्मों के अनुसार पूजा विधियां विभिन्न होते हैं। श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करके सा वस्त्र धारण किए जाते हैं। इस दिन स्नानादि के बाद गाय को चारा डालना, चीटियों, मछलियों को भी आटा, दान डालना शुभ माना जाता है। इसके बाद एक साथ चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उस पर भगवान सत्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित की जाती है। मूर्ति स्थापित करके उन्हें पीले रंग के वस्त्र, पीले फल, पीले रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं और और उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ी या सुनी जाती है। कथा पढ़ने के बाद चरणामृत और पंजीरी का भोग लगाया जाता है, इस प्रसाद को स्वयं ही ग्रहण किया जाता है और लोगों के बीच बांटा जाता है। मान्यता है कि विधि विधान से श्रावण पूर्णिमा व्रत का पालन किया जाए तो वर्ष भर वैदिक काम ना करने की भूल भी माफ जाती है और वर्ष भर के व्रतों के समान फल श्रावणी पूर्णिमा के व्रत से मिलता है।
श्रावण पूर्णिमा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक तुंगध्वज नाम का एक राजा राज करता था। एक बार राजा जंगल में शिकार करते हुए थक गया और वह बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। वहां उसने देखा कि कुछ लोग भगवान की पूजा कर रहे हैं। राजा अपने लालच में इतना चूर था कि वे सत्यनारायण भगवान की कथा में भी नहीं गया और न ही उसने भगवान को प्रणाम किया। गांव वाले उसके पास आए और उन्होंने उसे आदर से प्रसाद दिया। लेकिन राजा इतना घमंडी था कि वह प्रसाद को खाए बिना ही छोड़ कर चला गया। जब राजा अपने नगरी पहुंचा तो उसने देखा कि दूसरे राज्य के राजा ने उसके राज्य पर हमला कर सब कुछ नष्ट कर दिया। जिसके बाद वह समझ गया कि यह सब भगवान सत्यनारायण के क्रोध का कारण है। वह वापस उसी जगह पहुंचा और गांव वालों से भगवान का प्रसाद मांगा। उसे बहुत पश्चाताप भी हो रहा था, इसलिए उसने अपनी भूल की क्षमा मांग कर प्रसाद को ग्रहण किया। भगवान सत्यनारायण ने राजा को माफ कर दिया और सब कुछ पहले जैसा ही कर दिया। राजा ने काफी लंबे समय तक राजसत्ता का सुख भोगा और मरने के बाद उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
