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धर्मक्षेत्र

आज 27 नवंबर को है उत्पन्ना एकादशी : व्रत करने से श्रीहरि की कृपा से जीवन में खुशहाली आती है

सीएन, हरिद्वार। आज 27 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी से इस व्रत की शुरुआत होती है. श्रीहरि की कृपा से जीवन में खुशहाली आती है. एकादशी का व्रत श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है. वैसे तो सालभर की सभी एकादशी खास होती है लेकिन मार्गशीर्ष माह की उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है.  पौराणिक काल में यह दिन देवी एकादशी की उत्‍पत्ति से जुड़ा हुआ है। ये चातुर्मास के बाद पड़ने वाली पहली एकादशी है जब भगवान विष्णु जागृत अवस्‍था में सृष्टि का कार्यभार संभल चुके होते हैं. उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 या 27 नवंबर किस दिन रखा जाएगा, मार्गशीर्ष मास के कृष्‍ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी तिथि 25 नवंबर को मध्‍य रात्रि के बाद 1 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 27 नवंबर की सुबह 3 बजकर 47 मिनट पर होगा. एकादशी व्रत उदयातिथि से शुरू किया जाता है, ऐसे में 26 नवंबर 2024 को उत्पन्ना एकादशी की उदयातिथि प्राप्त हो रही है, व्रत इसी दिन रखा जाएगा. पौराणिक कथा के अनुसार देवी एकादशी प्राकट्य भगवान विष्णु के शरीर से हुआ था. देवी एकादशी ने मुर नामक दैत्‍य का वध कर संसार का कल्याण किया. इससे प्रसन्‍न होकर भगवान विष्‍णु ने देवी एकादशी को वरदान दिया कि जो लोग एकादशी का व्रत करेंगे उन्हें सुख और सौभाग्‍य की प्राप्ति होगी. तभी से एकादशी का व्रत रखा जाता है और मां एकादशी के साथ भगवान विष्‍णु की पूजा भी की जाती है. उत्पन्ना एकादशी मोक्ष प्राप्ति: यह दिन मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है. पापों से मुक्ति: उत्पन्ना एकादशी का व्रत पापों को समाप्त करता है। भगवान विष्णु की कृपा: एकादशी व्रत करने वालों को विष्णु भगवान का आशीर्वाद मिलता है। उत्पन्ना एकादशी के दिन तामसिक भोजन और बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। यदि आपका स्वास्थ्य खराब है तो उपवास न करें, केवल निर्देशों का पालन करें। उत्पन्ना एकादशी के दिन मिठाई का भोग लगाएं. तुलसी न तोड़ें। इस दिन चावल, अनाज और दालें नहीं खाई जातीं. सिर्फ फल, दूध और मेवे ग्रहण किए जा सकते हैं.

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