धर्मक्षेत्र
आज है गंगा सप्तमी : संतान और दांपत्य सुख के लिए विधिपूर्वक करें पूजा, जाने क्या है कथा
आज है गंगा सप्तमी : संतान और दांपत्य सुख के लिए विधिपूर्वक करें पूजा, जाने क्या है कथा
सीएन, हरिद्वार। गंगा सप्तमी पर मां गंगा की पूजा का विशेष विधान है, इसी दिन गंगा धरती पर आई थीं. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा सप्तमी मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 26 अप्रैल 2023 को सुबह 11 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 27 अप्रैल 2023 को दोपहर 01 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी। पंचांग के अनुसार गंगा सप्तमी पर शुभ मुहूर्त 26 अप्रैल 2023 को है ऐसे में इस दिन मां गंगा की पूजा की जाएगी। चूंकी शास्त्रों में तीर्थ स्नान ब्रह्म मुहूर्त में शुभ माना गया है इसलिए 27 अप्रैल 2023 को गंगा स्नान करना उत्तम फलदायी होगा। गंगा सप्तमी पर पर गंगा के किनारे श्राद्ध करने से पितृ दोष खत्म होता है और अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। इस दिन मां गंगा ने अपने जल से भगवान विष्णु की चरण वंदना कर उनके लोक में अपना स्थान पाया था। यही वजह है कि जो इस दिन गंगा में आस्था की डूबकी बगाई जाती है. इस दिन स्नान-दान और पूजा से दांपत्य जीवन सुखमय होता है और संतान सुख भी प्राप्त होता है।
इस मंत्र से करें आह्वान
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
गंगा पूजन विधि
सूर्योदय से पूर्व नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान कर लें फिर पहले जल सूर्य देव को समर्पित करें, इसके बाद हर हर गंगे का उच्चारण करते हुए गंगा जल खुद पर छिड़क लें या गंगा में डुबकी लगा लें। इसके बाद मां गंगा का पूजन करें। गंगा पूजन में हर चीज को 10 की संख्या में रखें। जैसे- 10 दीपक, 10 फूल, 10 पान के पत्ते, 10 फल और 10 प्रकार के नैवेद्य आदि मां को अर्पित करें। जल में खड़े होकर गंगा स्तोत्र एवं गंगा मंत्रों का जाप करें। इसके बाद जरूरतमंदों को किन्हीं 10 चीजों का सामर्थ्य के अनुसार दान दें।
मां गंगा का मंत्र –ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः’ मंत्र का जाप करें। गंगा सप्तमी पर पर गंगा के किनारे श्राद्ध करने से पितृ दोष खत्म होता है और अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। इस दिन मां गंगा ने अपने जल से भगवान विष्णु की चरण वंदना कर उनके लोक में अपना स्थान पाया था। यही वजह है कि जो इस दिन गंगा में आस्था की डूबकी बगाई जाती है। इस दिन स्नान-दान और पूजा से दांपत्य जीवन सुखमय होता है और संतान सुख भी प्राप्त होता है।
गंगा की उत्पत्ति कथा :
कहते हैं कि गंगा देवी के पिता का नाम हिमालय है जो पार्वती के पिता भी हैं। जैसे राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के नाम से जन्म लिया था उसी तरह माता गंगा ने अपने दूसरे जन्म में ऋषि जह्नु के यहां जन्म लिया था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। गंगा अवतरण हेतु ऋषि भागीरथ की तपस्या ने घोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शंकर ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। बाद में भगीरथ की आराधना के बाद उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर धरती पर उतार दिया। यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा प्रकट हुई अतः उसे विष्णुपदी कहा जाता है। पुराणों अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से सबसे पहले शिवशंकर की जटाओं में पहुंची और फिर गंगा दशहरा के दिन धरती पर उतरीं। जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा ने राजा शांतनु से विवाह करके 7 पुत्रों को जन्म दिया और सभी को नदी में बहा दिया। तब आठवां पुत्र हुआ तो राजा शांतनु ने पूछ लिया कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो। यह सुनकर गंगा ने कहा कि विवाह की शर्त के मुताबीक तुम्हें ऐसा नहीं पूछना था। अब मुझे पुन: स्वर्ग जाना होगा और यह आठवीं संतान अब तुम्हारे हवाले। वही आठवीं संतान आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुई।
