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धर्मक्षेत्र

आज 7 जून  को द्वादशी तिथि में निर्जला एकादशी का पारण भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की बनी रहती कृपा 

आज 7 जून  को द्वादशी तिथि में निर्जला एकादशी का पारण    भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की बनी रहती कृपा 
सीएन, हरिद्वार।
आज 7 जून दिन शनिवार को द्वादशी तिथि में निर्जला एकादशी का पारण किया जाएगा। निर्जला एकादशी का पारण व्रत का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम चरण होता है। अगर व्रत का पारण सही विधि से नहीं किया गया, तो व्रत अधूरा माना जाता है और उसका फल भी कम हो जाता है। निर्जला एकादशी की व्रत विधि इस दिन सुबह स्नानादि के बाद पीले कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति विधि विधान के साथ निर्जला एकादशी के व्रत की शुरुआत से लेकर पारण तक करता है, उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। साथ ही उस व्यक्ति को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है और मृत्यु उपरांत बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी का पारण व्रत का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। पारण का अर्थ है. व्रत का विधिवत समापन यानी उपवास समाप्त करना। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में उचित समय पर, शुभता और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए, तभी व्रत पूर्ण फलदायी होता है। शास्त्रों के अनुसार अगर व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सही समय पर नहीं किया गया तो व्रत अधूरा और निष्फल माना जाता है। भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं कि द्वादशी को समय पर पारण न करने से पुण्य नष्ट हो जाता है। पारण से व्रती को व्रत का पूर्ण फल, पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है। द्वादशी तिथि प्रारंभ 6 जून शाम 6 बजकर 33 मिनट से। पारण का शुभ मुहूर्त 7 जून सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजकर 30 मिनट तक। पारण द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को निर्जला एकादशी तिथि का पारण किया जाएगा और यह शुभ तिथि 7 जून दिन शनिवार को है। द्वादशी तिथि को प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु को प्रणाम करके पारण की भावना करें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत रूप से पूजा अर्चना करें और पीले फूल, तुलसी पत्र, चंदन, अक्षत, जल अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को फल, दूध, मिष्ठान्न और तुलसी पत्र सहित भोग लगाएं फिर तुलसी माला के साथ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जप करें और विष्णु सहस्त्रनाम और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें और प्रणाम करें। भगवान से कहें कि हे ईश्वर, हे परमात्मा, अगर व्रत में मुझसे जो भी गलती हुई हो, उसको क्षमा करें और मेरे व्रत को स्वीकार करें। निर्जला एकादशी के पारण में दान करने का महत्व है इसलिए इस दिन किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को जल, अन्न, वस्त्र, पंखा, छाता, शक्कर, दक्षिणा आदि का दान करें। विशेषकर एक जल से भरा हुआ कलश, इस व्रत में दान करने की परंपरा है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान व जप करके प्रभु के सामने ही ॐ विष्णवे नमः मंत्र का जप करते हुए तुलसी दल मुंह रख लें। इसके बाद आप गंगाजल पी सकते हैं। पारण के बाद हमेशा सात्विक और पवित्र भोजन ही करना चाहिए।

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