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इस ज्येष्ठ माह में करें भगवान विष्णु के अवतार भगवान त्रिविक्रम की पूजा, जलदान सबसे श्रेष्ठ पुण्य कार्य

इस ज्येष्ठ माह में करें भगवान विष्णु के अवतार भगवान त्रिविक्रम की पूजा, जलदान सबसे श्रेष्ठ पुण्य कार्य
सीएन, नैनीताल।
विष्णु पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ माह में भगवान विष्णु के अवतार भगवान त्रिविक्रम की पूजा करते हैं। इस माह को न्याय के देवता शनिदेव से जोड़कर भी देखा जाता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। ज्येष्ठ मास में सूर्य की प्रखरता और गर्मी अत्यधिक होती है। ऐसे में प्यासे जीवों के लिए जलदान सबसे श्रेष्ठ पुण्य कार्य माना गया है। ताम्र, मिट्टी या पीतल के पात्र में शीतल जल भरकर राहगीरों के लिए प्याऊ लगवाएं या किसी मंदिर, गौशाला, सार्वजनिक स्थान में जल की व्यवस्था करें। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को व्रत रखकर भगवान त्रिविक्रम की पूजा करता है, उसके अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत मथुरा में करें तो और अच्छा होगा। इसका वर्णन विष्णु पुराण में है। त्रिविक्रम रूप को भगवान विष्णु का एक प्रमुख रूप माना जाता हैए जिसमें विष्णु भगवान अपनी विशाल विक्रम कद द्वारा तीन लोकों का विस्तार करते हैं। इस रूप में विष्णु भगवान की विद्या शक्ति और महानता प्रकट होती है। इसे ज्येष्ठ मास में पूजा जाता है ताकि भक्त विष्णु भगवान के शक्तिशाली रूप का आदर कर सके और उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सके। त्रिविक्रम रूप पूजा का महत्वपूर्ण दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा होती है। इस दिन भक्त त्रिविक्रम रूप के दर्शन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। त्रिविक्रम रूप पूजा के पीछे कई महत्वपूर्ण कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो हमें विष्णु भगवान के महानता और अद्भुत लीलाओं के बारे में बताती हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच एक महायुद्ध हुआ। इस महायुद्ध में देवताओं को विजय मिली और असुरों को पराजित होना पड़ा। इस युद्ध के बाद भगवान विष्णु ने अपना त्रिविक्रम रूप धारण किया और तीनों लोकों का विस्तार किया। भगवान विष्णु ने एक चरण से आकाश छू लिया, दूसरे चरण से पृथ्वी को स्थिर किया और तीसरे चरण से पाताल को नीचे धकेला। इस रूप में विष्णु भगवान का महानताए शक्ति और महत्व प्रकट होता है। दूसरी कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु ने देवताओं के लिए नीलकंठ महादेव के साथ मिलकर शरीर धारण किया। भगवान विष्णु ने मृत्यु के रूप में अपना शरीर धारण किया और देवताओं को सुरक्षा प्रदान की। इसलिए भगवान विष्णु का यह रूप त्रिविक्रम रूप कहलाया। तीसरी कथा के अनुसार एक बार देवताओं ने ब्रह्माजी से उच्चारण किया कि वे समस्त लोकों में प्रकाश बने रहें और सुरक्षा प्रदान करें। इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु ने उनके रूप में उत्पन्न होकर समस्त लोकों का संरक्षण किया है। यही कारण है कि त्रिविक्रम रूप पूजा में भगवान विष्णु का वंदन किया जाता है। त्रिविक्रम रूप पूजा के दौरान भगवान विष्णु की कथाओं को सुनने से भक्त की श्रद्धा और आस्था मजबूत होती है। इस पूजा में भक्त विष्णु भगवान के समीप आते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। यह पूजा उनके धार्मिकता, भक्ति और समर्पण को बढ़ाती है। इसके अलावा, यह पूजा भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाती है और धार्मिकता के गुणों को स्थापित करती है। त्रिविक्रम रूप पूजा भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है, जिसे विशेष आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पूजा में भक्त भगवान विष्णु के प्रतिमा को समर्पित करते हैं और उनके चरणों की पूजा करते हैं। यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव होता है जो भक्त को शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। त्रिविक्रम रूप की पूजा में आराधना करने के लिए विधिवत तरीका अनुसरण किया जाता है। पूजा की शुरुआत में भक्त त्रिविक्रम रूप के मूर्ति को एक पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं। मूर्ति को पवित्र पानी से स्नान कराया जाता है और उसे सुगंधित चंदन और रोली से सजाया जाता है। इसके बाद भक्त द्वारा पूजन के लिए धूप, दीप, फूल, फल, सुपारी, नारियल आदि उपचार प्रदान किए जाते हैं। इन उपचारों को मूर्ति के आगे रखकर उन्हें अर्चना की जाती है। आरती के दौरान भक्त त्रिविक्रम रूप की महिमा को गाते हैं और उनकी आरती करते हैं। पूजा के अंत में प्रसाद का वितरण किया जाता है जो भक्तों को दिया जाता है। त्रिविक्रम रूप की पूजा के दौरान भक्तों को विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु स्तोत्र, विष्णु चालीसा और अन्य प्रमुख मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे भक्त की आत्मिक एवं मानसिक शुद्धि होती है और उन्हें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। भक्त ध्यान और धारणा की स्थिति में जाकर त्रिविक्रम रूप के आभास का अनुभव करते हैं और भगवान के समीप महसूस करते हैं। त्रिविक्रम रूप की पूजा एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक उत्सव है जो भक्तों को विष्णु भगवान की महिमा और शक्ति का अनुभव कराता है। इस उत्सव में भक्त विष्णु भगवान के सानिध्य में आकर शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति की कामना करते हैं। यह पूजा भक्तों के जीवन में आनंद, शांति, एकाग्रता और ध्यान की स्थापना करती है और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर ले जाती है। त्रिविक्रम रूप की पूजा का महत्वपूर्ण दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा होती है। इस दिन भक्त त्रिविक्रम रूप के दर्शन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा विधि के अनुसार आठवें दिन को समाप्त होती है और उसके बाद पूजा सामग्री को नदी में विसर्जन किया जाता है। ज्येष्ठ मास में त्रिविक्रम रूप की पूजा करने से भक्त विष्णु भगवान के कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। इस पूजा में श्रद्धा और समर्पण रखकर भक्त आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलते हैं और धार्मिकता के गुणों को स्थापित करते हैं।

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