आपदा
दुखद अतीत : 18 सितंबर 1880 को नैनीताल में पहले भयानक विनाशकारी भूस्खलन ने बदल दिया था भूगोल
1841 को नैनीताल की खोज व 1842 में लूसिंग्टन ने सेटलमेंट के तहत बसाया था
खो चुका है नैनीताल अपनी भार वहन क्षमता पर निर्माण कार्य अभी भी जारी
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। सरोवर नगरी को 1841 में व्यापारी पी बैरन ने खोजा था। 1842 में नैनीताल में बसासत शुरू हुई। अनियोजित निर्माणों के कारण 18 सितम्बर 1880 को नैनीताल में पहला महाविनाशकारी भूस्खलन हुआ। लगातार तीन दिन तक 50 से 60 इंच वर्षा हो चुकी थी। हल्के से भूकंप के झटके महसूस होने के बाद वर्तमान रोप-वे की आल्मा पहाड़ी आठ सेंकेड में पिघलते लावे की तरह नीचे आ गई। विशाल विक्टोरिया होटल मि. बेल की बिसातखाने की दुकान वास्तविक नैना देवी मंदिर, धर्मशाला दब गए। भूस्खलन में लगभग 151 लोगों की मौत हुई जिसमें 108 भारतीय व 43 यूरोपियन शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने 1890 तक 65 नालों का निर्माण कराया, जिन्हे शहर की धमनियां कहा गया। वर्तमान में भी वैध अवैध निर्माण व व्यावसायिक अंधेपन के कारण आधे से अधिक से नालों व सहनालों पर अतिक्रमण कर उन्हें बंद कर दिया गया है। मालूम हो कि शाहजहांपुर के अंग्रेज शराब व्यवसाई पी बैरन ने 18 नवम्बर 1841 को नैनीताल की खोज की थी। जबकि 1842 में चैथे कुमाऊं कमिश्नर जार्ज थामस लूसिंग्टन ने अधिकारिक रूप से नैनीताल को यूरोपियन सेटलमेंट के तहत बसाया था। तभी से लोग इस दिन नैनीताल का जन्मदिन मनाते है। 1841 में नैनीताल में मानव बस्तियां नहीं थी। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नैनीताल तब विशुद्ध धार्मिक स्थान था। यहां झील किनारे देवी मंदिर था। आस पास के गांवों के लोग साल में एक बार मेले में जुटते थे। नैनीताल बेलुवाखान ग्राम निवासी थोकदार नर सिंह के स्वामित्व में था। बिड़ला चुंगी के रास्ते अंग्रेज सौदागर पी बैरन जब नैनीताल पहुंचा तो वह यहां की खूबसूरती पर निहाल हो गया। उसने नैनीताल का जिक्र लेख में आगरा से प्रकाशित अखबार में किया। उसने लिखा अल्मोड़ा के पास एक खूबसूरत स्थान है, जहां स्वच्छ झील व घना वन है, जो इंग्लैंड की याद दिलाता है। इस तरह नैनीताल ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए महत्वपूर्ण बन गया। बैरन ने थोकदार नर सिंह को नैनी झील में नाव पर ले जाकर डराया और कागजों पर हस्ताक्षर करा नैनीताल को कपनी के नाम करा दिया। फिर उसने पिलग्रिम नामक भवन का निर्माण कर रहना शुरू कर दिया। इस तरह नैनीताल में मानव बस्तियों की शुरूआत हुई। लेकिन अनियोजित निर्माण के चलते नैनीताल में भारी विनाश 1880 में हुआ। लेकिन अंग्रेजों की जतन के बाद भी आज भी हालत जस के तस बने हुए है।
मानवीय भूलों का दंश झेल रहा आज भी नैनीताल
नैनीताल। विश्व के पर्यटन नक्शे अंकित नैनीताल शहर भूंकप व भूस्खलन की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। इसके बावजूद की गई माननीय भूलों का दंश शहर आज भी झेल रहा है। अंग्रेज स्वच्छ झील व खूबरसूरत शहर की जो विरासत छेाड़ गए, वह आज गायह है। शहर में रोक के बावजूद डेजर जोन तक में निर्माण हो रहे है। शहर की हरियाली व जमीवनदायिनी झील खतरे में है। 90 के दशक में वैध-अवैध निर्माण की बाढ़ आने पर नैनीताल बचाओं संघर्ष समिति के बैनर तले जबदस्त आंदोलन हुआ था। तब की उत्तर प्रदेश सरकार ने राजस्व परिषद के प्रमुख सचिव विजेन्द्र सहाय की अध्यक्षता समिति गठित की। नौ मार्च 1995 को अजय रावत बनाम यूपी सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तर्ज पर 31 मार्च 1995 को सहाय समिति ने भी रिपोर्ट दी। नैनीताल में इन निर्देशों का कोई पालन नहीं हुआ। नालों पर होटल बना दिए गए। आज भी ग्रीन बेल्ट व असुरक्षित क्षेत्रों में निर्माण जारी है। प्रो. अजय रावत 2005 में पुनः सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को पूर्व के निर्देशों का अनुपालन करने के निर्देश दिए, लेकिन उसका भी कोई असर नहीं हुआ। आज भी नैनीताल पूरी तरह खतरे की जद में हैं। हालत तो यह है कि नैनीताल अपनी भार वहन क्षमता तक खो चुका है लेकिन सरकारी व नीजि निर्माण कार्य जारी हैं।