अल्मोड़ा
एक यादगार शाम सीबीसी टीम सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के नाम
एक यादगार शाम सीबीसी टीम सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के नाम
अमृता पांडे, अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा मेरी जन्मस्थली, मेरे बचपन का शहर। लगभग हर गली मोहल्ले से परिचित। वहां पर घूमना फिरना और लोगों से मिलने का अलग ही आनन्द है। तो बस फिर क्या था ? चल दी मैं भी सीबीसी टीम के द्वारे। सीबीसी- कैपेसिटी बिल्डिंग सेंटर यानि क्षमता संवर्धन केंद्र जहां पर बच्चों को तरह तरह की एक्टिविटीज कराई जाती हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि जिस बच्चे की रुचि जिस दिशा में हो, उसे उसी दिशा में आगे बढ़ने में मदद की जाती है। भारती और रुचिका रावत की शानदार और जानदार पेंटिंग्स देखने को मिली। इन चित्रकारों की कल्पना जब कागज़ में उतरती है और खूबसूरत रंगों का सानिध्य पाती है, तब वे बेमिसाल बन जाती हैं। उनसे कई कविताओं और कहानियों के सोते फूट पड़ते हैं। वास्तव में ये पेंटिंग्स मात्र कैनवास और रंगों का खेल नहीं हैं। ये जीवन के मर्म से जुड़ी हैं और बिन बोले भी कई कहानियां कह जाती हैं, जिन्हें समझने के लिए पारखी और संवेदनशील नज़र चाहिए। बड़ी बात यह है कि कुमाऊं यूनिवर्सिटी की छात्रा भारती एक ऐसी लड़की है, जिसके हाथों में दोनों पंजे नहीं हैं, फिर भी दोनों कलाइयों को मिलाकर न जाने कैसे अनुपम चित्रकारी करती हैं। वह आर्ट टीचर हैं। संस्था में आने वाले बच्चों को और जगह-जगह घूमकर ग्रामीण बच्चों को कला के गुर सिखाती हैं। इस तरह के उदाहरण देखकर गर्व की अनुभूति होती है। इन्हीं लोगों के द्वारा बनाई गई 3 डी पेंटिंग भी देखने का मिली जो बेजोड़ थी। कोविड संकट के दौरान यहां के बच्चों के हाथों बनी लाखों की पेंटिंग बिकी हैं जो अपने आप में एक उदाहरण है। जगमोहन बंगानी जी की चित्रकला पर आधारित पुस्तक भी देखने को मिली। बंगानी जी बेहतरीन चित्रकार है, जिन्होंने विदेश में रहकर चित्रकला की बारीकियां सीखी हैं। समय-समय पर कला कार्यशाला लगाते रहते हैं। कल्याण मनकोटी जी के मार्गदर्शन में कई युवा इस संस्था से जुड़े हैं जो इन बच्चों के संरक्षण और संवर्धन का काम करते हैं। इस संस्था में बच्चों को विभिन्न एक्टिविटीज़ ही नहीं कराई जाती बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी तैयारी करायी जाती है। मैंने वहां पर बहुत ही व्यवस्थित पुस्तकालय देखा। यहां पर आईआईटी, मेडिकल, कला, इतिहास से लेकर हर तरह की पुस्तक उपलब्ध थी। एक बात यह पता चली कि यहां पुस्तक इकट्ठा करने का प्रचलन नहीं है। बच्चों की ज़रूरत के अनुसार ही किताब मंगाई जाती है और बच्चे उसका समुचित उपयोग करते हैं। पुस्तक पढ़ने के बाद उस पर चर्चा भी होती है जो अध्ययन का एक महत्वपूर्ण और ज़रूरी हिस्सा है। संस्थान से जुड़े कई बच्चे विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से वजीफा भी पा रहे हैं। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की बात हो और तबला, ढोलक, हारमोनियम का साथ ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। सी बी सी में एक तरफ तबला और हारमोनियम रखा भी दिखाई दिया। गिर्दा सम्मान पुरस्कार प्राप्त हमारे युवा कुमाऊनी लोक गायक और वादक भास्कर भौर्याल भी इस केन्द्र से जुड़े हैं। हालांकि उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। केंद्र में रखे गए जूतों के ढेर सारे डिब्बे देखकर एक बार मन में कुछ शंका पैदा हुई , दुकान का जैसा भाव आया। तभी मेरी अनकही जिज्ञासा को शांत करते हुए केंद्र के ही एक ज़िम्मेदार सहयोगी ने बताया कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए खरीदे गए हैं। यहां पर बता दूं कि अल्मोड़ा स्थित सीबीसी केंद्र कल्याण मनकोटी जी के घर के ऊपरी मंज़िल में दो बड़े हाॅलनुमा कमरों में चलता है। आज के व्यवसायिक युग में यह भी बहुत बड़ी बात है। केंद्र में कुछ प्रतिभाशाली युवाओं से मुलाकात और बात करने का अवसर मिला। जिनमें हर्ष काफर का नाम सबसे पहले लूंगी। हर्ष अपना परिचय प्रोफाइल में कुछ इस तरह देते हैं- एक व्यवस्थित पागल, कल्पनाओं की मशाल से वास्तविकता को जलाता हुआ…. और यही सब दिखाई देता है हर्ष की रचनाओं में। उनकी कविताओं के मर्म को समझने के लिए अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ती है और उसी तरह के भाव मन में जगाने होते हैं। उनकी कविताओं में पहाड़ों के लिए फिक्र है, प्यार है। वे शब्दों के जादूगर ही नहीं बल्कि पहाड़ की चिंता उनके जीवन का हिस्सा है। पहाड़ी जीवन की केमिस्ट्री और समस्याओं के गणित से वे भलीभांति परिचित हैं। इसी क्रम में राहुल जोशी सभी मुलाक़ात हुई। राहुल मास काॅम के छात्र रहे हैं और अपना चैनल चलाने के साथ ‘सोच’ नाम से एक संस्था भी चलाते हैं। जहां पर सेनिटरी नैपकिंस भी बनाते जाने की योजना है। फ़िलहाल संस्था द्वारा बाज़ार से खरीद कर इन्हें दूरदराज गांव की महिलाओं और छात्राओं तक पहुंचाया जा रहा है। राहुल अपने साथियों के साथ मिलकर अवेयरनेस कार्यक्रम चलाते हैं, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से महावारी के दौरान साफ सफाई और विभिन्न तरह के कैंसर से बचाव के बारे में उपयोगी जानकारी देना होता है। शाम के समय भ्रमण का कार्यक्रम था तो मैं भी घुमक्कड़ी में शामिल हो गयी। सूर्योदय और सूर्यास्त तो पहाड़ों के करीब से देखते ही बनता है। जाखन देवी से लौटते समय सूर्यास्त का विहंगम दृश्य देखकर हर्ष बोला, ” मैम सूरज की फोटो ले लीजिए।” मेरे फोटोग्राफी के शौक को शायद हर्ष की पारखी नजरें परख गईं थीं। मगर सूरज को घर जाने की जल्दी थी। जब तक बैग से मोबाइल फोन निकालकर कैमरा सेट किया, वह छिपने की तैयारी में था मगर फिर भी थोड़ा बहुत कैंद कर ही लिया।
हरदा की दुकान में बैठकर चाय पर चर्चा भी यादगार रही।
इसी क्रम में संगीत संस्थान भी जाना हुआ, जहां पर तबला और हारमोनियम के साथ गायन चल रहा था। एक ग़ज़ल सभी ने साथ मिलकर गुनगुनाई और जब मुझे गाने का ऑफर दिया गया तो अल्मोड़ा और लाला बाजार के अलावा कुछ याद ही नहीं आया और बेडू पाको बारो मासा…. यही सदाबहार गीत गुनगुना दिया। सीबीसी द्वारा समर कैंप भी लगाए जाते हैं। गर्मी आ रही है, पहाड़ों में मौसम सुहावना है। उम्मीद है पहाड़ों की वादियां हमेशा इन बच्चों की कला, गीत, संगीत और चित्रकला से और अधिक सजीव और रंगीन हो उठेंगी। नवाचारी गतिविधियां बनी रहें। इस दुष्कर समय में हमारे बच्चे नशे और मोबाइल जैसी चीज़ों से बचे रहें। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहें, इंसानियत जज्बा कायम रखते हुए जीवन में आगे बढ़ने के गुर सीखें। एक छोटा सा शहर जो सुविधाओं के मामले में आज भी बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाया है पर इसने देश और दुनिया को तमाम प्रतिभाएं दी हैं, वहां इस तरह के प्रयास सराहनीय हैं। इस तरह के कार्यक्रम सहभागिता से ही सुचारू रूप से चल पाते हैं। यह सुखद है कि सीबीसी का कारवां बढ़ा चला जा रहा है। हमारे पहाड़ और पहाड़ियों की संवेदनशीलता बची रहे। काफल ट्री से साभार