बागेश्वर
जोशीमठ के बाद बागेश्वर में दिखने लगी दरारें, ख़तरे में 10 वीं शताब्दी की विरासत
जोशीमठ के बाद बागेश्वर में दिखने लगी दरारें, ख़तरे में 10 वीं शताब्दी की विरासत
सीएन, बागेश्वर। उत्तराखण्ड के जोशीमठ की तरह की अब बागेश्वर के कांडा में भी भूमि में लम्बी लम्बी दरारें देखने को मिल रही हैं। अनियंत्रित अवैध खड़िया खनन इसकी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। जिला प्रशासन ने सर्वे रिपॉर्ट में खनन को कारण मानते हुए तत्काल प्रभाव से मशीनों को रोक दिया है। मां काली की मूर्ति भी लगभग दो इंच खिसक गई है। मामले का संज्ञान लेते हुए बागेश्वर जिलाधिकारी अनुराधा पाल ने मंदिर पहुंचकर निरीक्षण किया और उप जिलाधिकारी से छोटी बड़ी मशीनों पर रोक लगाने को कहा है। मामले में भू वैज्ञानिकों से परीक्षण कराने को कहा गया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पहाड़ी के नीचे से खनन करने से ऊपर का हिस्सा बैठने लगा है। इसके फलस्वरूप मंदिर और आसपास दरारें दिखने लगी हैं और आने वाले वक्त में पहाड़ी में बड़े भूस्खलन और दरारें दिखींगी। 10 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस पौराणिक मंदिर को अब अस्तित्व का खतरा सताने लगा। कालांतर में आपसी सहयोग से लोगों ने मंदिर को भव्य बनाया और बाद में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग ने मंदिर को एक सुंदर स्वरूप दे दिया। बागेश्वर जिले की कांडा में प्रसिद्ध मां कालिका मंदिर के 500 मीटर के दायरे में लंबे समय से पोकलैंड और जेसीबी मशीनों से खड़िया खनन हो रहा था। इसका दुष्परिणाम अब दरारों के रूप में दिखने लगा है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित कालिका मंदिर के एक हिस्से, नींव पर दरार आने से झुकने लगा है।