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बागेश्वर

कैसे पांच साल से कागज़ों में अटका प्रधानमंत्री आवास तीन महीने में बना

कैसे पांच साल से कागज़ों में अटका प्रधानमंत्री आवास तीन महीने में बना
हेमा रावल, बागेश्वर।
आधुनिक तकनीक ने दुनिया को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. इस डिजिटल युग में हर एक चीज़ एक क्लिक में उपलब्ध हो जाती है. इसके बावजूद अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है कलम की ताकत. उर्दू के प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी ने बिल्कुल सही है कि ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’, क्योंकि इससे निकले एक एक शब्द न केवल भ्रष्टाचार रुपी बाधा को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं बल्कि जनता को जागरूक करने में भी वरदान साबित हो रहे हैं. इसकी एक मिसाल स्वयं मैं हूँ. मेरे लिखने और जागरूकता के कारण पिछले पांच साल से कागज़ों में अटका प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मेरा घर तीन महीने में बन कर तैयार हो गया. मैं उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक के गनीगांव की रहने वाली हूँ. यह गांव पहाड़ों की वादियों में बसा हुआ है. इस गांव की आबादी लगभग 800 लोगों की है. बरसात के दिनों में यह पहाड़ी क्षेत्र बहुत सुंदर दिखाई देता है. मगर इस दौरान होने वाली प्राकृतिक आपदा गांव वालों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होती है. यहां के निवासियों को बरसात के दिनों में किन किन कठिनाईयो का सामना करना पड़ता है, इसका अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है. बरसात के दिनों में इस गांव पर पहाड़ से मिट्टी या चट्टान गिरने का हर समय खतरा बना रहता है. इस दौरान कई बार ऐसे हादसे होते रहते हैं. ज्यादा बारिश के कारण बहुत से परिवार इस प्रकार के हादसे का शिकार हो चुके हैं. कच्चे घर होने की वजह से उन्हें जान माल की हानि होती है. हमने भी अपने घर को लेकर बहुत ही कठिनाइयों का सामना किया है. एक ही कमरे के बने कच्चे घर में हमने कई वर्ष गुजार दिया. हर बरसात में डर लगता था कि कहीं छत टूट कर हम पर गिर न जाए? कहीं मलबे के नीचे दबकर हम सब मर ना जाएं? एक दिन वास्तव में हमारा डर सच साबित हो गया. जब बगल के पहाड़ से एक बड़ा मलबा हमारे घर पर गिरा. ज्यादा बारिश होने की वजह से हमारी छत पूरी तरह से टूट कर गिर गई. जैसे तैसे हमने अपने घर को दोबारा से रहने लायक बनाया. इस दौरान प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत घर बनाने के लिए पंचायत में आवेदन भी दिया. लेकिन 5 साल से अधिक का समय हो गया और हमें मकान की कोई सुविधा नहीं मिली. दो वर्ष पूर्व मैं किशोरियों को लेखन के माध्यम से सशक्त और जागरूक बनाने की दिशा में काम कर रही चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क, दिल्ली की दिशा प्रोजेक्ट से जुड़ी. जहां मैंने न केवल विभिन्न मुद्दों पर लिखना सीखा बल्कि सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में भी जाना. हमने जाना कि एक आम नागरिक किस प्रकार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान पाने का हकदार है? इसके बाद मैं चरखा की जिला संयोजक नीलम ग्रैंडी के साथ ब्लॉक ऑफिस, गरुड़ गई, जहां मैंने आवेदन लिखा और उसे ब्लॉक ऑफिस में जमा करा दिया. तकरीबन 3 महीने के बाद मेरी आवाज रंग लाई और हमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने के लिए पैसा मिला. आज हमारे पास 2 कमरे का पक्का मकान है. अब हमलोग अपने घर में सुरक्षित हैं. हमें बरसात का भी डर नही है. मेरे 41 वर्षीय पिता आनंद सिंह कठिनाई भरे उन दिनों की याद को साझा करते हुए कहते हैं कि “हमारे पास एक ही कमरा था, वह भी कच्चा मकान था. हर रात हमेशा इसी डर में गुजरती थी कि कब बरसात के दिनों में पहाड़ खिसक जाए और मलबा हमारे मकान पर न गिर जाए, ऐसे में मेरे परिवार का क्या होगा?” वह कहते हैं कि “बहुत सी चीज़ों को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है. बारिश का पानी और मलबा को घर के अंदर आते देखा है. एक दिन हम उस आपदा का शिकार भी हो गए. जब साल 2022 की एक रात अचानक बारिश का कहर हम पर टूट पड़ा. उस रात मैं अपने बच्चों के साथ, मेरे बुज़ुर्ग पिताजी और मेरा परिवार सोये हुए थे कि अचानक घर के पीछे का हिस्सा तोड़ते हुए मलबा का ढ़ेर आ गया. इस हादसे में घर के पीछे बंधे हमारे जानवर और बकरियां सब दब कर मर गए. खाने के बर्तन, हमारा राशन, कपड़े सब पानी में तैरने लगे. शुक्र है कि मेरे परिवार के सभी सदस्य बच गए. रात भर हम बारिश बंद होने का इंतजार करते रहे. सुबह फिर से नई तरीके से अपने घर को बनाने की कोशिश की. झाड़-फूंस से हमने अपने घर की छत को तो ढंक लिया लेकिन दोबारा कब आपदा का कहर हम पर फिर से टूट पड़ेगा यह मालूम नहीं था.” इस संबंध में गांव की ग्राम प्रधान हेमा देवी का कहना है कि “पंचायत की ओर से सभी ज़रूरतमंदों का आवेदन जमा करा दिया गया है, हम पूरी कोशिश भी करते हैं कि उनके मकान का नंबर जल्द आ जाए, लेकिन इस प्रक्रिया में कई वर्ष बीत जाते हैं. वहीं दूसरी ओर गांव के कुछ लोगों का आरोप है कि पंचायत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है. नाम नहीं बताने की शर्त पर गांव की एक महिला पंचायत पर आरोप लगाती है कि “जो लोग ग्राम प्रधान को थोड़ा बहुत पैसा या घूस देते हैं, उन्हीं की मदद पहले की जाती है. जो जरूरतमंद हैं, उनकी जरूरत के अनुसार उनके काम नहीं होते हैं.” वह महिला आरोप लगाती है कि “हमारे पास अभी सिर्फ एक ही कमरा है. वह भी पहाड़ खिसकने से पत्थरों के नीचे दब गया था, जिसके नीचे हमारे जानवर भी दब गए थे. मैंने भी कई वर्ष पहले प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए पंचायत को आवदेन दिया था, लेकिन अभी तक मुझे उसका कोई लाभ नहीं मिला है.” इस संबंध में नीलम ग्रैंडी कहती हैं कि “सरकार के द्वारा गरीब लोगों को आवासीय योजना के तहत मकान दिए जाते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि गांव के ग्राम प्रधानों की लापरवाही की वजह से लोगों को इन सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. जिसके कारण उन्हें काफी कष्टों का सामना करना पड़ता है. कई बार यह भी होता है कि ग्राम प्रधान जागरूक नहीं होते हैं, वह जरूरतमंदों की जरूरतों को प्राथमिकता नहीं देते हैं. वास्तव में, पहाड़ों में आपदा के शिकार वही लोग होते हैं जिनके घर कच्चे होते हैं और वह मकान पहाड़ से बिलकुल करीब हों. कई ऐसे परिवार इस प्रकार के प्राकृतिक हादसों का शिकार हो चुके हैं.” बहरहाल, सरकार सभी को समान रूप से शिक्षित करने का प्रयास करती है क्योंकि शिक्षा ही समाज को बदलने की ताकत रखती है. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से बुज़ुर्ग भी शिक्षित होकर समाज को बदल सकते हैं. शिक्षा ही समाज की चेतना को जगा कर उसे जागरूक बना सकती है. मेरी कहानी इस बात की गवाह है कि ‘जागरूकता और लिखने की ताकत से बदलाव मुमकिन है.’ चरखा फ़ीचर से साभार

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