देहरादून
धरती न सिर्फ जीवित है बल्कि उसके पास अपनी बुद्धि भी है : शोध
हरीश मैखुरी, देहरादून। एक नए वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि पृथ्वी एक ‘जीवित पिंड’ है। रिसर्च के बाद एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट ने पाया है कि जिस धरती पर हमलोग रहते हैं, वो न सिर्फ जीवित है बल्कि उसके पास अपनी बुद्धि भी है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘प्लानटेरी इंटेलिजेंस’ नाम दिया है। जिसमें किसी भी ग्रह के पास सामूहिक ज्ञान से लेकर जानने-समझने की क्षमता की बात भी की गई है। इस रिसर्च को ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है। बता दें कि वेदों में ही पृथ्वी को जीवित मानते हुए इसे ‘भूदेवी’ कहा गया है। अर्थववेद में लिखा है कि पृथ्वी सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि जीवित प्राणी है। वैज्ञानिकों ने पाया कि पृथ्वी न केवल जीवित है पिंड है अपितु इसके पास अपनी बुद्धि, विवेक, प्राण और अपरिमित सृजन शक्ति भी है। रिसर्च पेपर में वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसे कई प्रमाण मिले हैं जो बताते हैं कि पृथ्वी पर फंगी का अंडरग्राउंड नेटवर्क मौजूद है। ये आपस में लगातार ‘बातचीत’ करते रहते हैं। इससे रेखांकित किया गया है कि धरती के पास अपनी ‘अदृश्य बुद्धिमत्ता’ मौजूद है। इस पेपर को तैयार करने वाले ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रोचस्टर’ के एडम फ्रैंक ने बताया कि हम सामुदायिक रूप से ग्रह के इंट्रेस्ट्स में उन्हें प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। उनका इशारा उन मानवीय गतिविधियों की तरफ था, जिससे पृथ्वी पर असर पड़ रहा है। रिसर्च के लेखकों का मानना है कि इस अध्ययन से क्लाइमेट चेंज से निपटने के तौर-तरीकों के साथ-साथ दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाएँ तलाशने में भी मदद मिलेगी। ऐसे ग्रह, जहाँ ‘जीवन’ और ‘बुद्धिमत्ता’ का विकास हो सके। ‘ग्रहीय बुद्धिमत्ता’ के कॉन्सेप्ट पर विचार करें तो पृथ्वी के पास तर्क-वितर्क की क्षमता के साथ-साथ फंगस के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान की योग्यता भी है। ये ऐसा ही है, जैसे पेड़-पौधे फोटोसिंथेसिस के माध्यम से खुद को जीवित रखते हैं। एक गणनाओं का प्रमाण विज्ञान मान रहा है।अपनी पृथ्वी को बचाना हम सभी मनुष्यों का सामुहिक और अनिवार्य दायित्व है। इसके लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव अपने नीति नियंताओं के संज्ञान हेतु रख रहे हैं। गायत्री पीठ शांतिकुंज हरिद्वार ने पाया कि यज्ञ हवन से पृथ्वी पर आक्स्जिन की मात्रा में वृद्धि होती है और वातावरण शुद्ध होता है। पद्म विभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट ने चालीस वर्षों के अपने अध्ययन में पाया कि जंगलों में भी फलदायी वृक्षारोपण से धरती की जीवनी शक्ति बढ़ती है। वन विभाग के निदेशक IFS सनातन सोनकर ने धराधाम पर निरंतर हरियाली विकसित करने की दिशा में नवग्रह वाटिका और पंचवृक्षों आम पंयां बड़ पीपल नीम रोपण का परामर्श दिया है। अगस्त्य ऋषि ने पीपल और रूद्राक्ष के वृक्षों को धरती पर क्रमशः भगवान विष्णु और शिव का स्वरूप बताते हुए इन वृक्षों को अवध्य यानी इन पर हथियार चलाने को महापातक और अक्षम्य बताया है। शास्त्रों ने सभी बच्चों गो ब्राह्मण और स्त्री प्रजाति को अबध्य बताते हुए इन्हें कष्ट पंहुचाने वाले का समूल वंश नष्ट होने के प्रमाण दिये हैं। भगवान धन्वंतरि ने कहा है कि यह पृथ्वी अमृत कलशों से भरी पड़ी है आवश्यकता उन्हें पहचानने की है।वेदों में पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सूर्य, इंद्र व वरूण की अराधना करने को कहा है। मनुष्य की दीर्घायु हेतु सोम लताओं के रस का सेवन और जौ के उत्पादन में वृद्धि करने को कहा गया है जबकि मद व मांस भक्षण को तिरोहित किया है।