नैनीताल
एक आर्टिस्ट के तौर पर अमित अपनी प्रतिभा के चरमोत्कर्ष पर था…लेकिन नियति…
एक आर्टिस्ट के तौर पर अमित अपनी प्रतिभा के चरमोत्कर्ष पर था…लेकिन नियति…
अशोक पाण्डे, नैनीताल। 2013 की सर्दियों का वाक़या है मेरे अन्तरंग मित्र दिवंगत सुनील शाह उन दिनों अमर उजाला के कुमाऊँ संस्करण के सम्पादक थे। मोबाइल फोन को आए बहुत समय नहीं हुआ था। और कैमरे वाले मोबाइल तो और भी नई चीज़ थे। फोटो बहुत कम रेज़ोल्यूशन की आती थी लेकिन आम जन के लिए कैमरा सुलभ होता जा रहा था। शाह जी ने एक शाम मुझे बताया कि उन्होंने अपने अखबार में पाठकों द्वारा मोबाइल से खींचे गए फोटो छापने का फैसला किया है। अगले दिन के अखबार में इस बाबत सूचना जारी की गई और शाम तक अखबार का मेलबॉक्स सैकड़ों फोटुओं से अट गया। पाठकों के इस रिस्पांस से उत्साहित सुनील शाह मुझे दिखाने को उनमें से एक फोटो विशेष रूप से लेकर आए। नैनीताल के एक तीस वर्षीय युवा अमित साह के उस फोटो में पतझड़ के मौसम में नैनीताल की मॉल रोड को कैद किया गया था। जिस कोण से फोटो लिया गया था। मैंने बीसियों बरसों में नैनीताल को कभी वैसे नहीं देखा था। बेहद साधारण फोन से खींची गई वह तस्वीर बताती थी कि फोटो खींचने वाले के पास विजुअल इमेज को पकड़ने की असाधारण कला.दृष्टि है। ज़ाहिर है अमर उजाला ने उस सीरीज की शुरुआत अमित की उसी फोटो से ही करनी थी। यह अमित और उसकी कला से पहला परिचय था। फिर एक दफा सुनील शाह और मैं ख़ास उसी से मिलने नैनीताल गए। फ्लैट्स किनारे जनवरी की धूप में चाय पीते हुए वह एक बेहद शर्मीला और संकोची युवा नज़र आया। जब उससे मॉल रोड वाली फोटो के बारे में पूछा तो उसने बताया कि एक सुबह जिम की तरफ जाते हुए उसने अपने फोन से वह फोटो यूं ही क्लिक कर लिया था। अखबार से मिले प्रोत्साहन के बाद उसने अपना पहला कैमरा खरीदा और अगले दस सालों में वह इलाके के सबसे शानदार फोटोग्राफरों में शुमार हो गया। वह नैनीताल से बेपनाह प्यार करता था सो शुरू के सालों में उसने केवल नैनीताल की तस्वीरें खींचीं। जब वह हर रोज़ नैनीताल की तस्वीरें सोशल मीडिया में लगाता। मैं अक्सर सोचता था कि बित्ते भर के नैनीताल की तस्वीरें कोई आखिर कितने कोनों.कोणों से खींच सकता है। एक न एक दिन ऐसा आएगा कि नैनीताल को कैमरे में दर्ज करने को कोई नया फ्रेम मिलेगा ही नहीं। अमित ने मेरे इस विचार को झूठा साबित करते हुए इस शहर की ऐसी.ऐसी अकल्पनीय तस्वीरें निकालीं कि उसके जीनियस को देख कर सिर्फ हैरानी होती थी। जन्मजात कलाकार अमित की नैनीताल की तस्वीरें बताती हैं कि वह ऐसी आँखें लेकर जन्मा था जो लाखों में एक के पास होती है। उसे अपनी कला के लिए विषय चाहिए ही नहीं था। उसकी निगाह जहां जिस चीज पर पड़ी वह उसकी कला का विषय बन गई। फिर उसने यात्राएं करनी शुरू कीं। वह अक्सर कुमाऊँ.गढ़वाल के सुदूर इलाकों की तरफ निकल जाता था और हर बार अपने काम से चमत्कृत कर दिया करता। उसके काम को मोहब्बत करने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही थी और देश.विदेश के सम्मान उसकी झोली में आ रहे थे। अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुरूप उसने हर सफलता को विनम्रता से ग्रहण किया। 15 जनवरी 1982 के दिन नैनीताल में जन्मे अमित साह ने नैनीताल के ही सीआरएसटी इंटर कॉलेज और उसके बाद डीएसबी कैंपस से अपनी पढ़ाई पूरी की। बीकॉम और एमए की डिग्रियां हासिल कीं। कुल दस बरस की अवधि में बिना किसी तरह की पेशेवर ट्रेनिंग के उसने अपनी कला के बूते एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया था जिस पर कोई भी गर्व करेगा। अमित ने अपनी कला के माध्यम से बताया कि अच्छी फोटो खींचने के लिए महँगा कैमरा या लेंस नहीं चाहिए होते। उसके लिए आँख में पानी और दिल में मोहब्बत की दरकार होती है। कभी उसके खींचे गरीबों के पोर्ट्रेट्स देखिये। उन सबकी निश्छल आँखों में आपको अमित की आँख दिखेगी। ज्यादा गौर से देखेंगे तो उन आँखों का पानी आपकी अपनी आँखों में उतरता महसूस होगा। एक आर्टिस्ट के तौर पर वह अपनी प्रतिभा के चरमोत्कर्ष पर था। उसने अपने यूट्यूब चैनल पर नैनीताल में जाड़े के आगमन की खबर दी थी। शाम ही एक कार्यक्रम में उसे उसके काम के लिए फिर से सम्मानित किया गया था। रात को उसकी तबीयत बिगड़ी और सुबह के किसी शुरुआती पहर में उसकी आख़िरी सांस आई। स्तब्ध कर देने वाली इस खबर से समूचा नैनीताल ग़मज़दा है। लिखने की हिम्मत तो मेरी भी नहीं पड़ रही थी पर किसी न किसी ने तो लिखना ही होगा। ज़माना बहुत तेज़ी से खराब हुआ है। लोग बहुत जल्दी भूलने लगे हैं। सो वीरेन डंगवाल की पंक्तियाँ दोहराता हूँ और अमित से कहता हूँ-
घाट से नाव खुल रही है भाई
हम रुलाई दबाते हुए हाथ हिलाएंगे
और जहाँ तक होगा
किनारे.किनारे तेरे साथ दौड़े चले जाएंगे
अभी तुमने नैनीताल की दस लाख तस्वीरें और खींचनी थी। काम अधूरा छोड़कर ऐसे कौन जाता है! यह तुम्हारे जाने की उम्र नहीं थी अमित, मेरे भाई। फिर भी अलविदा।