नैनीताल
कैंचीधाम में जाम में फंसे मरीज की मौत, समय पर अस्पताल नही, पहुंच रहे स्वर्गधाम, कब तक चलेगा सिलसिला
कैंचीधाम में जाम में फंसे मरीज की मौत, समय पर अस्पताल नही, पहुंच रहे स्वर्गधाम, कब तक चलेगा सिलसिला
सीएन, भवाली। पहाड़ों में शासन व प्रशासन की काहिली के चलते जाम में फंस कर रोगी सड़कों में दम तोड़ रहे हैं। वही बच्चे, बूढ़े और महिलाएं घरों में कैद है। गांव, कस्बों व शहरों के स्थानीय लोग हैरान परेशान है। बीते दिल जाम ने यक और ग्रामीण की जान ले ली। सुप्रसिद्ध कैंची धाम में लगने वाला भारी जाम एक बार फिर किसी की जिंदगी पर भारी पड़ गया। रविवार को बेतालघाट ब्लॉक के धनियाकोट चौक बाजार निवासी 40 वर्षीय युवक जगमोहन सिंह की तबीयत अचानक बिगड़ गई। समय पर इलाज न मिलने और एंबुलेंस के घंटों जाम में फंसे रहने के कारण अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई। जगमोहन सिंह अपने गांव में जनरल स्टोर चलाते थे। रविवार शाम उन्हें अचानक खून की उल्टियां होने लगीं। परिजनों ने तुरंत 108 एम्बुलेंस को कॉल किया। सुयालबाड़ी से एंबुलेंस पहुंची और मरीज को गरमपानी सीएचसी ले जाया जाने लगा, लेकिन रास्ते में ही एम्बुलेंस खराब हो गई। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सीएचसी के चिकित्सा प्रभारी डॉ. सतीश पंत ने शाम 4.30 बजे एक निजी एम्बुलेंस से मरीज को हल्द्वानी रेफर किया। दुर्भाग्यवश यह एम्बुलेंस कैंची धाम के पास भयंकर जाम में फंस गई, जहां कई घंटे तक मरीज और परिजन बेबस इंतजार करते रहे। जगमोहन को रात 9.30 बजे हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। परिजनों ने इस दर्दनाक घटना के लिए प्रशासन की लापरवाही और कैंची धाम क्षेत्र में लगातार लगने वाले जाम को जिम्मेदार ठहराया है। जगमोहन के भाई लाभांशु पिनारी ने कहा, अगर समय पर रास्ता मिल जाता, तो शायद मेरे भाई की जान बच जाती। कैंची धाम क्षेत्र में लगातार बढ़ रही भीड़ और प्रशासनिक बदइंतजामी के चलते आए दिन मरीज, पर्यटक और स्थानीय लोग जाम में फंसकर परेशान हो रहे हैं। पिछले तीन वर्षों से सरकार द्वारा बायपास मार्ग की घोषणाएं की जाती रही हैं, लेकिन जमीन पर अब तक कोई ठोस काम नहीं हुआ। कब तक पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों की जानें ऐसे ही जाम में फंसकर जाती रहेंगी, क्या सरकार बायपास जैसे जरूरी प्रोजेक्ट को प्राथमिकता देगी, तीर्थ और पर्यटन स्थलों पर व्यवस्था सुधारने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाएंगे, यह घटना सिस्टम की गंभीर नाकामी की ओर इशारा करती है, जो भविष्य में और भी कई जानों पर भारी पड़ सकती है। आंखिर मैदानों से इतनी भारी संख्या में बाहरी वाहनों को पहाड़ों में क्यों भेजा जा रहा है। सरकार यह सिलसिला कब तक जारी रखेगी।
