नैनीताल
नैनीताल में श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस प्रजातंत्र दिवस के रूप में मनाया गया
नैनीताल में श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस प्रजातंत्र दिवस के रूप में मनाया गया
सीएन, नैनीताल। नैनीताल समाचार में आज अमर सेनानी श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस प्रजातंत्र दिवस के रूप में नफरत नहीं, रोजगार चाहिए नारे के साथ मनाया गया। इस अवसर पर प्रख्यात इतिहासकार, पर्यावरणविद एवं घुमक्कड़ प्रो. शेखर पाठक ने श्रीदेव सुमन के जीवन और टिहरी रियासत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के बारे में एक महत्वपूर्ण व जानकारीपरक वक्तव्य दिया। प्रो. पाठक व नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन साह ने कहा कि श्रीदेव सुमन ने टिहरी राजशाही के खिलाफ 84 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल की थी। श्रीदेव सुमन को कई यातनाएं दी गई थीं, फिर भी कमजोर नहीं पड़े। इतना ही नहीं उन्हें जेल में कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया। उन्होंने बहुत सारी समाज सेवी संस्थाओ की भी स्थापना की, जैसे हिमालय सेवा संघ, गढ़वाल सेवा संघ, राज्य प्रजा परिषद आदि। वह जनता पर राज्य व अंग्रेजो द्वारा लगाये गये प्रतिबंधो से हमेशा आहत रहे और उसी विषय में लगातार लोगो को जागरूक करने की कोशिश में लगे रहे। 1939 में टिहरी राज्य प्रजा मंडल जो की राज्य सरकार अत्याचारों के विरुद्ध एक संस्था थी उसका अध्यक्ष सुमन जी को बनाया गया। अपने प्रभावी कार्य और कुशल नेतृत्व के कारण वह लोगो के बीच लोकप्रिय होने लगे थे। इसी डर से की जनता राज्य के खिलाफ आन्दोलन न कर दे, उन्हें आधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और राज्य से निष्कासित कर दिया गया। उनके टिहरी आने पर पाबन्दी भी लगा दी गयी। इसी बीच टिहरी रियासत ने टिहरी की जनता के ऊपर जुल्मों की सारी हदें पार की थी। श्रीदेव सुमन टिहरी की जनता के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे। इन्होंने जनता और रियासत के बीच सम्मान जनक संधि का प्रस्ताव भी दरवार को भेजा। लेकिन रियासत ने अस्वीकार कर दिया। 29 दिसंबर 1943 को श्रीदेव सुमन को चम्बाखाल में गिरफ्तार करके 30 दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया। टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन जी के साथ, नारकीय व्यवहार किया गया, इनके ऊपर झूठा मुकदमा चला कर 31जनवरी 1944 को, इन्हें 2 साल का कारावास और 200 रुपया दंड देकर इन्हें अपराधी बना दिया गया। इसके बाद भी इनके साथ नारकीय व्यवहार होते रहे। अंत मे श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। जेल प्रशासन ने इनका मनोबल डिगाने के लिए, कई मानसिक और शारिरिक अत्यचार किये लेकिन ये अपनी अनशन पर डिगे रहे। जेल में इनके अनशन की खबर से जनता परेशान हो गई, लेकिन रियासत ने अफवाह फैला दी की श्रीदेव सुमन जी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया है और राजा के जन्मदिन पर इनको रिहा कर दिया जाएगा। यह खबर इनको को भी मिल गई, उन्होंने कहा कि वे प्रजामंडल को रेजिस्ट्रेड किये बिना मैं अपना अनशन खत्म नही करूँगा। अनशन से इनकी हालत बिगड़ गई और जेल प्रशाशन ने अफवाह फैला दी कि इनको न्यूमोनिया हो गया। इसके बाद इनको कुनेन के इंजेक्शन लगाए गए। कुनेन के इंजेक्शन के साइड इफेक्ट से इनके शरीर मे खुश्की फैल गई, जिसकी वजह से ये पानी के लिए तड़पने लगे, श्रीदेव सुमन पानी पानी चिल्लाते रहे लेकिन किसी ने इनको पानी नही दिया। अंततः तड़पते तड़पते और रियासत के जुल्मों से लड़ते हुए इन्होंने 25 जुलाई 1944 को अपने देश के लिए, अपने राज्य उत्तराखंड के लिए अपनी पहाड़ी संस्कृति के लिए अपने प्राण त्याग दिए। श्रीदेव सुमन की शहादत की खबर से जनता में एकदम उबाल आ गया, जनता ने रियासत के खिलाफ खुल कर विद्रोह शुरू कर दिया। जनता के इस आंदोलन के बाद टिहरी रियासत को प्रजामंडल को वैधानिक करना पड़ा। मई 1947 में टिहरी प्रजामंडल का पहला अधिवेशन हुआ जनता ने 1948 में टिहरी, देवप्रयाग और कीर्तिनगर पर अपना अधिकार कर लिया। और अंततः 01 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य, भारत गणराज्य में विलीन हो गया। हमें गर्व हैं श्रीदेव सुमन और उनकी शहादत पर , मात्र 29 वर्ष की छोटी सी उम्र में श्रीदेव सुमन अपने राज्य अपने पहाड़ी समाज अपने टिहरी गढ़वाल और अपने देश के लिए ऐसा कार्य कर गए, जिससे उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदा सदा के लिए अमर हो गया। इस अवसर पर नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन साह, प्रो. उमा पाठक, प्रदीप पांडे सहित अनेक संगठनों के लोग मौजूद थे।
