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नैनीताल

अब दुर्लभ नहीं होगी बहुमूल्य वनस्पति औषधि प्रजाति रिकदालमनी

वन वर्धनिक ने विलुप्त प्रजाति की बीज व वर्धी प्रबन्धन से की नर्सरी विकसित
चन्द्रेक बिष्ट,नैनीताल।
हिमालयी क्षेत्र में निरतंर अवैज्ञानिक दोहन से बहुमूल्य वनस्पति विलुप्ति की कगार पर है। यह औषधि के लिए तो महत्वपूर्ण है और कुछ वनस्पति परिस्थितिकीय तन्त्र के लिए भी महत्वपूर्ण मानी गई है। इन्हीं में से रिकदालमी यानि धानी वनस्पति भी शामिल है। वनों की परिस्थतिकीय तन्त्र में सुधार लाने के साथ ही रिकदालमी जैव विवधिता के दृष्टिाकोण से भी महत्वपूर्ण है। निरतंर दोहन के कारण यह वनस्पति वनों में लगातार कमी आ रही है। इसके संरक्षण के लिए उत्तराखंड वन वर्धनिक द्वारा वर्ष 2014 से परियोजना शुरू की है। विभागीय सूत्रों के अनुसार अनुसंधान रेंज कालसी के देववन पौधालय में इसकी प्रबन्धन तकनीक विकास कार्य बीज बुआई प्रबन्धन व वर्धी प्रबन्धन से किया गया है। जिसमें 66.67 प्रतिशत सफलता हासिल हुई है। इसके बाद इसके पौंधों को इसके मूल वास स्थलों में रोपण किया जायेगा। इस योजना का उद्देश्य उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियों में रिकदामनी की नर्सरी तकनीक कामानकी कारण करता भी है। रिकदामनी या धानी का वैज्ञानिक नाम माईरेशीन अफरिकाना है। यह सदाबहार झाड़ी है। यह सामान्यतया दो से चार फीट तथा कभी-कभी आठ फीट तक ऊंचाई प्राप्त करता है इसकी पत्तियां सुगंधित होती है। पर्वतीय क्षेत्र में इसका उपयोग परम्परिक रूप से सुगंध के लिए किया जाता है। हिमालयी क्षेत्र के 900 से 2700 मीटर तक बंाज वनों के उत्तरी ढालों में बहुतायत से पाया जाता है। यह धीमी गति से वृद्धि करता है। इसका पुष्पण मार्च से मई तथा फल दिसम्बर तक परिपक्व होता है। यह काला व बैगनी रंग में पाया जाता है। इसके फल, पत्तियां व छाल कई औषधि के रूप में प्रयुक्त होते है। आयुर्वेद दवा उद्योग में इकी मांग अधिक है। इन गुणों के अलावा इसका महत्वपूर्ण वनों के विकास में अधिक है। एक शोध में पाया गया कि रिकदालमी पारिस्थितिकीय तंत्र में सुधार करने एवं जैवविविधता के दृष्टिकोण से एक महत्व पूर्ण वनस्पति है। मानव हस्तक्षेप व अति दोहन के कारण यह निरंतर वनों से कम होती जा रही है। जिससे इसके पुनरूत्पादन में कमी आती जा रही है। इसके वास स्थलों में इसकी दुर्लभता के कारण जैवविधिता में प्रभाव देखा गया है। उत्तराखण्ड वन वर्धनिक द्वारा इसके संरक्षण के लिए कालसी के देववन पौधालय में वर्धी व बीज प्रबन्धन से नर्सरी तैयार करने में सफलता हासिल की है। पुनरूत्पादन में कमी आने के कारण इसके पौध को वास स्थलों में रोपण कर विस्तारित किया जायेगा। वर्धी प्रबन्धन के तहत मिस्ट चैम्बर में रोपित करने पर 66.67 प्रतिशत कटिंग में रूटिंग आठ माह में प्राप्त हुई। बीज प्रबन्धन के तहत मिस्ट चैम्बर बीज बुआन के बाद सात माह में अंकुरण प्राप्त हुआ। इसकी पौधालय विकसित रूप में प्राप्त हुई है।

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