नैनीताल
आज जल संसाधन दिवस : देश भर में पानी को सुरक्षित रखने और उसे बचाने का उद्देश्य
आज जल संसाधन दिवस : देश भर में पानी को सुरक्षित रखने और उसे बचाने का उद्देश्य
सीएन, नैनीताल। जल संसाधन दिवस भारत में 10 अप्रैल को मनाया जाता है। यह एक खास दिन देश भर के पानी के भंडार को सुरक्षित रखने और उसे बचाने के उद्देश्य से तय किया गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की 2021 की स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2002-2021 के मध्य स्थलीय जल संग्रहण में 1 सेमी प्रति वर्ष की दर से गिरावट दर्ज की गई है। भारत में संग्रहण में कम-से-कम 3 सेमी प्रति वर्ष की दर से गिरावट रिकॉर्ड की गई है। यह भविष्य के लिहाज से बहुत खतरनाक संकेत हैं। देश के कुछ क्षेत्रों में तो यह गिरावट 4 सेमी प्रति वर्ष से भी ज्यादा दर्ज की गई है। जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मनुष्य के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की सम्भावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से अधिकतर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का 75 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल 25 प्रतिशत ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असन्तुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवण्टन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ़्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे सम्बन्धित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। धरातलीय जल या सतही जल पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाला पानी है जो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ढाल का अनुसरण करते हुए सरिताओं या नदियों में प्रवाहित हो रहा है अथवा पोखरों, तालाबों और झीलों या मीठे पानी की आर्द्रभूमियों में स्थित है। किसी जलसम्भर में सतह के जल की प्राकृतिक रूप से वर्षण और हिमनदों के पिघलने से पूर्ति होती है और वह प्राकृतिक रूप से ही महासागरों में निर्वाह, सतह से वाष्पीकरण और पृथ्वी के नीचे की ओर रिसाव के द्वारा खो जाता है। हालाँकि किसी भी क्षेत्रीय जल तंत्र में पानी का प्राकृतिक स्रोत वर्षण ही है और इसकी मात्रा उस बेसिन की भौगोलिक अवस्थिति और आकार पर निर्भर है। इसके अलावा एक जल तंत्र में पानी की कुल मात्रा किसी भी समय अन्य कई कारकों पर निर्भर होती है। इन कारकों में शामिल हैं झीलों, आर्द्रभूमियों और कृत्रिम जलाशयों में भंडारण क्षमता; इन भण्डारों के नीचे स्थित मिट्टी की पारगम्यता; बेसिन के भीतर धरातलीय अपवाह के अभिलक्षण; वर्षण की अवधि, तीव्रता और कुल मात्रा और स्थानीय वाष्पीकरण का स्तर इत्यादि। यह सभी कारक किसी जलतंत्र में जल के आवागमन और उसके बजट को प्रभावित करते हैं। जल संकट और जल तनाव की अवधारणा सरल है: सतत विकास के लिए विश्व व्यापार परिषद के अनुसार यह उन परिस्थितियों पर लागू होता है जहां सभी उपयोगों के लिए पर्याप्त पानी नहीं उपलब्ध है चाहे वे औद्योगिक, कृषि या घरेलू उपयोग हों। प्रति व्यक्ति उपलब्ध जल तनाव को परिभाषित करना जटिल है, तथापि यह धारणा है कि जब प्रति व्यक्ति वार्षिक अक्षय मीठे पानी की उपलब्धता 1700 घनमीटर से कम हो, तो देश अल्पावधिक या नियमित रूप से पानी तनाव का अनुभव करने लगते हैं। 1,000 घन मीटर से कम जल उपलब्धता आर्थिक विकास और मानव स्वास्थ्य और समृद्धि में बाधा डालती है। सन् 2000 में, दुनिया की आबादी 6.2 अरब थी। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है की सन् 2050 तक जनसँख्या में 3 अरब की वृद्धि हो जायेगी और इसका ज्यादातर हिस्सा विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि करेगा जो पहले से ही जल तनाव से ग्रस्त हैं। इस लिए जल की माँग और बढेगी जब तक इस महत्वपूर्ण संसाधन में जल संरक्षण और पुनर्प्रयोग द्वारा अनुकूल वृद्धि नहीं होती। गरीबी उन्मूलन दर की वृद्धि हो रही है खासकर चीन और भारत जैसे दो जनसंख्या दिग्गजों में। बहरहाल, बढ़ती समृद्धि का मतलब है निश्चित रूप से अधिक पानी की खपत। 24 घण्टे, 7 दिन मीठे पानी की आवश्यकता और बुनियादी स्वच्छतासे ले कर उद्यान सिंचाई और गाड़ी धोने के लिए पानी की माँग करने से ले कर जकुज्जी या निजी तरणताल की चाहत तक यह समृद्धि जल की माँग में वृद्धि ही करेगी।