पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड: कैमरा ट्रैप और पिंजरा तक सीमित वन विभाग, आज एक और गई जान
उत्तराखंड: कैमरा ट्रैप और पिंजरा तक सीमित वन विभाग, आज एक और गई जान
सीएन, पौड़ी। घनत्व से अधिक वन्यजीवों की बढ़ती जनसंख्या का कारण वन्यजीवों का रुख अब ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की ओर हो गया है जिसके चलते आए दिनों मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ रहा है। ताजा मामला श्रीनगर में कीर्तिनगर ब्लॉक के ग्राम पंचायत नौर का है जहां बुधवार को घास लेने जंगल गई एक महिला पर गुलदार ने हमला कर दिया। इस दौरान महिला की मौके पर ही मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, यह घटना सुबह नौ बजे की है। नौर गांव निवासी लक्ष्मी देवी पुरी 55 पत्नी स्व. राजेंद्र पुरी जंगल में घास लेने जा रही थी। इस दौरा घात लगाए बैठे गुलदार ने महिला पर हमला कर दिया। घटना की सूचना मिलने के बाद मौके पर पहुंचे ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन अधिकारियों को दी। बता दें कि प्रदेश में मानव.वन्यजीव संघर्ष में इस वर्ष अब तक 40 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से 13 लोगों की जान गुलदार ने ली है। जिसमें सबसे अधिक पर्वतीय क्षेत्र के लोग प्रभावित हुए हैं वन विभाग सिर्फ पिंजरा तथा कैमरा ट्रैप लगाने तक सीमित रह गया जिससे लोगों का वन विभाग के प्रति रोष पनप रहा है।
उत्तराखंड में हर साल औसतन 32 लोग वन्यजीवों होते हैं शिकार
देश में गुलदारों की संख्या में चार सालों के अंदर 60 प्रतिशत वृद्धि से केंद्र एवं राज्य सरकारों के वन एवं पर्यावरण विभाग गदगद नजर आ रहे हैं। बड़ी बिल्ली प्रजाति के बाघ या गुलदार जैसे मांसभक्षी एक स्वस्थ वन्यजीवन और अच्छे पर्यावरण के संकेतक होते हैं। लेकिन गुलदारों के कुनबे में यह उत्साहजनक वृद्धि देश के उन राज्यों में वनों के अंदर और आसपास रहने वाले लोगों के लिए खुशी का विषय नहीं बल्कि खतरे का संकेत है। क्योंकि इस धरती पर मानवजीवन के लिए सबसे खतरनाक जीव गुलदार ही माना जाता है। अकेले उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में हर साल औसतन 32 लोग वन्यजीवों द्वारा मारे जाते हैं, जिनमें सर्वाधिक गुलदारों के शिकार होते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा की गई गणना के आधार पर जारी गुलदारों की नवीनतम संख्या भी केवल सांकेतिक ही मानी जा सकती है, क्योंकि संस्थान ने केवल बाघ संरक्षित क्षेत्रों में यह गणना की है। असली संख्या तो लाखों में होने का अनुमान है। इस रिपोर्ट में उत्तराखंड में ही मात्र 893 बताए गए हैं जबकि राज्य सरकार के वन विभाग के रिकार्ड में यह संख्या 2008 तक 2335 थी। राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री के कार्यालय के अनुसार राज्य में गुलदारों की संख्या लगभग 4 हजार पार कर चुकी है, जिनमें से 75 को मानवभक्षी घोषित किया जा चुका है। इस अनुपात में तो भारत में गुलदारों की वास्तविक संख्या लाखों में हो सकती है।
कार्बेट ने मारे 561 लोगों को खाने वाले दो गुलदार
मानव.गुलदार में अस्तित्व का यह संघर्ष नया नहीं है। भारत के लोग अभी भी शिकारी एवं वन्यजीव संरक्षक जिम कार्बेट को भूले नहीं होंगे। जिम कार्बेट ने ही दिसंबर 1910 में उत्तराखंड के चम्पावत जिले की पनार घाटी के नरभक्षी गुलदार को जिम कार्बेट ने मारा था। वह गुलदार कुमाऊं और सीमावर्ती नेपाल क्षेत्र में 436 लोगों की जानें ले चुका था। यह किसी भी नरभक्षी को सबसे बड़ा रिकाॅॅर्ड था। हैजा से मरने वाले लोगों के जहां तहां लावारिस शवों का मांस खाने से मनुष्यों के मांस का स्वाद उसके मुंह लग गया था। जिम कार्बेट का अगला निशाना रुद्रप्रयाग का खूंखार गुलदार बना था जो कि 1918 से लेकर 1926 तक लगभग 125 लोगों को मार चुका था। बीसवीं सदी में ब्रिटिश इंडिया के सेंट्रल प्रोविन्स का नरभक्षी भी एक अंग्रेज शिकारी का निशाना बना था जो कि लगभग 150 लोगों की जानें ले चुका था।