देहरादून
अधिक हाथों को रोजगार देने की बड़ी चुनौती, उत्तराखंड की अपने स्रोतों से राजस्व प्राप्ति मात्र 41 प्रतिशत
सीएन, देहरादून। उत्तराखंड में बेरोजगारी की स्थिति काफी चिंताजनक है। पर्वतीय क्षेत्रों से युवाओं का रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाने का सिलसिला लगातार चिंता का कारण बना हुआ है।सीएमआइई के डेटानुसार उत्तराखंड की साल 2022 में जनवरी से अप्रैल के दौरान बेरोजगारी दर 4.4 प्रतिशत और मई से अगस्त के दौरान 4.7 प्रतिशत रही, हालांकि औसतन रूप में देश के बेरोजगारी के आंकड़ों से ये कम हैं, परन्तु जून 2022 में उत्तराखंड की बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत पहुंच गई जो देश की औसत बेरोजगारी दर से भी करीब 1 प्रतिशत अधिक थी। उत्तराखंड में साल 2021 में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर 6.2 प्रतिशत अगस्त में, 6.0 प्रतिशत अप्रैल और 5.5 प्रतिशत मई में रही। कोरोना महामारी में उत्तराखंड में बेरोजगारी दर मार्च में 19.9 प्रतिशत, अप्रैल में 6.5 प्रतिशत, मई में 8 प्रतिशत, जून में 8.6 प्रतिशत, जुलाई में 12.4 प्रतिशत, अगस्त में 14.3 प्रतिशत, सितम्बर में 22.3 प्रतिशत, अक्टूबर में 9.2 प्रतिशत, नवंबर में 1.5 प्रतिशत और दिसम्बर में 5.2 प्रतिशत बताई गई। परन्तु बेरोजगारी के आंकड़े पूरी तरह से यह नहीं बता रहे हैं कि वास्तव में कार्यशील जनसंख्या में कितने लोग सक्रिय तौर पर उत्पादन की प्रक्रिया से जुड़े हैं और कितने उससे बाहर हैं।बेरोजगार में श्रम शक्ति भागीदारी की कुल जनसंख्या में से वही भाग गिना जाता है जो बेरोजगार है और सक्रिय तौर पर रोजगार की तलाश कर रहा है, इसका अर्थ यह हुआ कि कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में से यदि कोई रोजगार नहीं करता और नाही रोजगार की तलाश करता है तो उसकी गिनती बेरोजगार में नहीं की जाएगी। यह बात समझनी जरूरी है कि उत्तरांड की श्रम शक्ति (15 वर्ष और इससे अधिक आयु की कुल जनसंख्या) की उत्पादन प्रक्रिया में भागीदारी की दर देश के राज्यों में सबसे कम है। श्रम शक्ति भागीदारी की दर का 30-31 प्रतिशत के आस-पास होना राज्य के आर्थिक विकास की दृष्टि से घाटे की बात है। सेंटर फॉर मानीटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआइई)के मई से अगस्त, 2022 के डेटा से पता चलता है कि उत्तराखंड की श्रम शक्ति भागीदारी दर(लेबर फोर्स पार्टिशिपेशन रेट) 30.4 प्रतिशत है। इसका अर्थ ये है कि कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या में से प्रत्येक 100 लोगों में से केवल 30-31 लोग ऐसे हैं जो रोजगार पर हैं, या बेरोजगार हैं और सक्रिय तौर पर रोजगार की तलाश कर रहे हैं। वहीं बाकी करीब 70-69 लोग ऐसे हैं जो ना तो रोजगार कर रहे हैं और नाही रोजगार की तलाश में लगे हैं। इन 70 लोगों में पूर्ण कालिक विद्यार्थी, गृहिणियां और 64 साल से ज्यादा के लोग शामिल हैं। इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जिन्हें प्रचलित मजदूरी आकर्षित नहीं करती या जो रोजगार मिलने की आशा नहीं कर रहे और वे रोजगार बाजार की संभावना से निराश हैं इसलिए कोई काम-धंधा नहीं होने पर भी रोजगार नहीं ढूंढ रहे। इसी तरह जनवरी से अप्रैल, 2022 के दौरान उत्तराखंड की श्रम शक्ति भागीदारी दर 30.9 प्रतिशत है। यह 31 प्रतिशत के करीब है। मई से अगस्त, 2022 के दौरान उत्तराखंड की तुलना में हिमाचल प्रदेश की श्रम शक्ति भागीदारी दर 33.6 प्रतिशत और बेरोजगारी दर 9.5 प्रतिशत, त्रिपुरा की श्रम शक्ति भागीदारी दर 52.4 प्रतिशत और बेरोजगारी दर 14.1 प्रतिशत, असम की श्रम शक्ति भागीदारी दर 48.1 प्रतिशत व बेरोजगारी दर 9.3 प्रतिशत, जम्मू एवं कश्मीर की श्रम शक्ति भागीदारी दर 36.7 प्रतिशत और बेरोजगारी दर 19.1 प्रतिशत है। राजस्थान की श्रम शक्ति भागीदारी दर 44.1 प्रतिशत और बेरोजगारी दर 25.7 प्रतिशत है। इन राज्यों में ऊंची श्रम शक्ति भागीदारी दर का अभिप्राय: यह है कि कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या के अधिक भाग आर्थिक क्रियाओं में संलग्न है। यह राज्य की जीडीपी के लिए तुलनात्मक तौर पर बेहतर आर्थिक विकास की संभावना व्यक्त करता है।उत्तराखंड में अधिक लोगों को आर्थिक क्रियाओं से जोडऩे के लिए सरकार जो करने के दावे कर रही है उसके अनुरूप परिणाम दिखाई नहीं दे रहे।प्रदेश के आर्थिक सेहत की बात करें तो यह ध्यान देने योग्य है कि जून 2022 में जारी भारतीय रिजर्व बैंक का बुलेटिन चेतावनी दे रहा है कि आने वाले सालों में देश के कई राज्यों की तरह उत्तराखंड पर कर्जे का बोझ और बढ सकता है। बुलेटिन के अनुसार उत्तराखंड का ऋण और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात जो 2019-20 में 26.6 प्रतिशत था वह वित्तीय वर्ष 2026-27 में 32.2 प्रतिशत हो जाने का आकलन है। 2022 से गणना करें तो आरबीआइ के बुलेटिन के मुताबिक आज से 4 साल बाद यानी अगले विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ इस तरह होगा कि उससे आगे देश में केवल पंजाब, राजस्थान, केरल, बंगाल और आंध्र प्रदेश ही होंगे।उत्तराखंड बजट 2022-23 के अनुमान के मुताबिक कुल राजस्व प्राप्ति 51,474 करोड़ में उत्तराखंड के अपने स्रोतों से राजस्व प्राप्ति 41 प्रतिशत (20,891 करोड़) मात्र है जबकि बाकी 59 प्रतिशत (30,583 करोड़) राजस्व केन्द्र से केन्द्रीय करों में राज्यांश ( कुल राजस्व का 18 प्रतिशत) और अनुदान सहायता (कुल राजस्व का 42 प्रतिशत) के तौर पर प्राप्त होगा। इस बारे में यह याद रखना होगा कि बजट 2021-22 में केन्द्रीय अनुदान के अनुमान को बजट 2021-22 के संशोधित अनुमान में 17 प्रतिशत कम किया गया है, यानी केन्द्र सरकार से राज्य को अनुमान से कम अनुदान प्राप्त हुआ है।मसले और भी हैं जिनमें नवगठित राज्य की पहली निर्वाचित सरकार, कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल में राज्य की सरकारी नौकरियों में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण और राज्य की मूल निवासी महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की गई थी परन्तु इन प्रावधानों के खिलाफ विभिन्न समय पर उच्च न्यायालय में दाखिल की गई याचिकाओं के बाद न्यायालय ने अलग-अलग आदेशों में दोनों व्यवस्थाओं पर रोक लगाई। इस मामले में सरकार काफी समय से हाथ पांव मारने पर लगी है परन्तु अध्यादेश लाने या विधानसभा में विधेयक पारित कराने जैसे अधिक कारगर समाधान करने में सफल नहीं है। ताजा खबर है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड की स्थाई निवासी महिलाओं को की गई 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था पर उच्च न्यायालय के पिछले दिनों दिए गए आदेश पर रोक लगा दी है। इसके बावजूद इस विषय में अगर सरकार वाकई चिंतित है तो सरकार को बिल पारित करना पड़ेगा। 22 साल के उत्तराखंड के सामने मुद्दों की भरमार है जिन पर सरकारों को अब तक गंभीरता से काम कर लेना चाहिए था, अब देखने वाली बात होगी कि धामी सरकार प्रदेश के सामने मौजूद तमाम चुनौतियों से आगे आने वाले समय में कैसे निबटती है।विशेषज्ञों के मुताबिक अर्थव्यवस्था को राजस्व की दृष्टि से सुदृढ करने के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्रों में बजट आवंटन बढाने के साथ ही उसका पूरा और सही उपयोग करने के अलावा अधिकतम रोजगार पैदा करने वाली नीतियों को क्रियान्वित करने से गरीबी कम होगी, उत्पादकता बढेगी और लोगों के जीवन स्तर में उल्लेखनीय सुधार होगा। उत्तराखंड देश का अव्वल राज्य बनकर सामने आए इसके लिए सरकार चाहे किसी भी दल की हो उसे बुनियादी काम तो करने ही होंगे। दून विनर से साभार