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पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन गौरी के बीच हुए दो युद्ध
सच जानने के लिए अलग-अलग इतिहासकारों के तथ्य़ों को जानना होगा
सीएन, नईदिल्ली। इतिहासकार इस तथ्य को प्रमाणिकता के साथ स्वीकार करते हैं कि पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी के बीच दो जबरदस्त युद्ध हुए थे. पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को बुरी तरह हरा दिया था और परास्त हुए गौरी को सेना समेत वापस अफगानिस्तान भागना पड़ा था. इतिहासकारों के मुताबिक दूसरे युद्ध में गौरी कि सेना जीत गई और युद्ध स्थल कुछ दूर पृथ्वीराज चौहान का पीछा कर उन्हें कत्ल कर दिया गया. प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन गौरी मोहम्मद गौरी के बीच पहला युद्ध तराइन में 1191 में हुआ. इतिहासकार हबीब के मुताबिक पहले युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई और शहाबुद्दीन गौरी पराजित होकर अपने बची कुची सेना समेत अपने मुल्क अफगानिस्तान भाग गया. फारसी में लिखी इतिहास की पुरानी पुस्तकों का हवाला देते हुए इरफान हबीब बताते हैं कि तराइन का दूसरा युद्ध 1 साल बाद 1192 में शहाबुद्दीन गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ था. फारसी कि इन किताबों के हवाले से हबीब का कहना है कि दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की शिकस्त हुई. शहाबुद्दीन गौरी की सेना ने पृथ्वीराज चौहान का पीछा किया. इतिहासकार के मुताबिक तत्कालीन पंजाब में पृथ्वीराज चौहान को घेर कर उनको मार दिया गया. इतिहास की पुस्तकों का हवाला देते हुए इरफान हबीब कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान को मारने के करीब 14 साल बाद शहाबुद्दीन गौरी की मृत्यु हुई. उन्होंने बताया कि सिंध नदी के किनारे इस्माइलियों द्वारा शहाबुद्दीन गौरी को मार गिराया गया था. इरफान हबीब कहते हैं कि इतिहास की पुस्तकों के मुताबिक तराइन युद्ध के दौरान 1192 में पृथ्वीराज चौहान मारे गए थे. इरफान हबीब के मुताबिक वहीं दूसरी ओर शहाबुद्दीन गौरी को 1206 में सिंधु नदी के किनारे मारा गया. इतिहासकार अपने इस तथ्य के माध्यम से बताते हैं कि पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी दोनों की मृत्यु के बीच कई वर्षों का अंतर था. दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हंसराज सुमन बताते हैं कि पृथ्वीराज रासो एक प्रमाणिक ग्रंथ है.सुमन के मुताबिक लंबे समय से यह दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए हिंदी में पढ़ाया जा रहा है, सुमन कहते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय में लंबे समय से छात्रों को पृथ्वीराज चौहान की इस पारंगत युद्ध कला के विषय में पृथ्वीराज रासो के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है. पृथ्वीराज रासो ग्रंथ बताता है कि पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित किया. हालांकि दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई जिसके बाद मोहम्मद गौरी उन्हें बंदी बना कर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया. अफगानिस्तान में पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गई बावजूद इसके अपने एक सहयोगी चंद्रवरदाई की मदद से पृथ्वीराज चौहान ने तीर चला कर मोहम्मद गौरी को मार दिया, लेकिन इतिहासकार इस बात से असहमत हैं.
पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ
पृथ्वीराज का जन्म चौहान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ था जहाँ उनके पिता सोमेश्वर को उनके रिश्तेदारों ने चालुक्य दरबार में पाला था। पृथ्वीराज गुजरात से अजमेर चले गए जब पृथ्वीराज द्वितीय की मृत्यु के बाद उनके पिता सोमेश्वर को चौहान राजा का ताज पहनाया गया। सोमेश्वर की मृत्यु 1177 (1234 (वि.स.) में हुई थी। जब पृथ्वीराज लगभग 11 वर्ष के थे। पृथ्वीराज, जो उस समय नाबालिग थे ने अपनी माँ के साथ राजगद्दी पर विराजमान हुए। इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार, पृथ्वीराज ने 1180 (1237 वि॰स॰) में प्रशासन का वास्तविक नियंत्रण ग्रहण किया। दिल्ली में अब खण्डहर हो चुके किला राय पिथौरा के निर्माण का श्रेय पृथ्वीराज को दिया जाता है। पृथ्वीराज रासो के अनुसार दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर ने अपने दामाद पृथ्वीराज को शहर दिया था और जब वह इसे वापस चाहते थे तब हार गए थे। यह ऐतिहासिक रूप से गलत है चूँकि पृथ्वीराज के चाचा विग्रहराज चतुर्थ द्वारा दिल्ली को चौहान क्षेत्र में ले लिया गया था। इसके अलावा ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि अनंगपाल तोमर की मृत्यु पृथ्वीराज के जन्म से पहले हो गई थी। उनकी बेटी की पृथ्वीराज से शादी के बारे में दावा बाद की तारीख में किया गया है।
तराइन में चौहान हार इस्लामी विजय में एक ऐतिहासिक घटना
पृथ्वीराज तृतीय (शासनकाल: 1178–1192) जिन्हें आम तौर पर पृथ्वीराज चौहान कहा जाता है, चौहान वंश के राजा थे। उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पारम्परिक चौहान क्षेत्र सपादलक्ष पर शासन किया। उन्होंने वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से पर भी नियन्त्रण किया। उनकी राजधानी अजयमेरु (आधुनिक अजमेर) में स्थित थी, हालाँकि मध्ययुगीन लोक किंवदन्तियों ने उन्हें भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली के राजा के रूप में वर्णित किया है जो उन्हें पूर्व-इस्लामी भारतीय शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित करते हैं। शुरुआत में पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्यों के खिलाफ़ सैन्य सफलता हासिल की। विशेष रूप से वह चन्देल राजा परमर्दिदेव के ख़िलाफ़ सफल रहे थे। उन्होंने ग़ौरी राजवंश के शासक मोहम्मद ग़ौरी के प्रारम्भिक आक्रमण को भी रोका। हालाँकि, 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में ग़ौरी ने पृथ्वीराज को हराया और कुछ ही समय बाद उन्हें मार डाला। तराइन में उनकी हार को भारत की इस्लामी विजय में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता है और कई अर्ध-पौराणिक लेखनों में इसका वर्णन किया गया है। इनमें सबसे लोकप्रिय पृथ्वीराज रासो है, जो उन्हें राजपूत राजा के रूप में प्रस्तुत करता है।